ताज को शिव मंदिर बताने के दावे की याचिका कोर्ट ने स्वीकारी
आगरा। दुनिया के सात अजूबों में शामिल ताजमहल को शिव मंदिर होने का दावा करने वाली याचिका को स्वीकार करते हुए एक स्थानीय अदालत ने केन्द्र सरकार से इस संबंध में छह मई तक जवाब देने को कहा है।
छह वकीलों द्वारा दायर याचिका में दावा किया गया है कि ताजमहल शिवमंदिर (तजो महालय) है इसे हिन्दू श्रद्धालुओं के लिए खोला जाना चाहिए। याचिका पर अगली सुनवाई आगामी 13 मई को है। कल दायर इस याचिका पर जवाब देने के लिए अदालत ने केन्द्रीय संस्कृति मंत्रालय,भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और गृह मंत्रालय को छह मई तक का समय दिया है।
इससे पहले सिविल जज (सीनियर डिवीजन) जया पाठक की ही अदालत ने वकीलों की उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें ताजमहल के मालिकाना हक का दावा किया गया था। याचिका दायर करने वाले वकील हरिशंकर जैन और उनके सहयोगियों का कहना है कि ताजमहल में मंदिर होने की वजह से हिन्दुओं को पूजा करने की अनुमति दी जाए। दिलचस्प है कि याचिका में वकीलों ने लार्ड आग्रेश्वर महादेव नाग नागेश्वर विराजमान होने का दावा करते हुए याचिका में अपने को उनका “नेक्स्ट फ्रेण्ड” बताया है।
जैन ने कहा कि जिस जमीन पर ताजमहल बना है वहां कभी कब्रिस्तान था ही नहीं तो उसे अब कैसे कब्रगाह कहा जा सकता है। वहां हिन्दुओं को पूजा करने से रोकना संविधान के खिलाफ है। याचिका में जैन ने कहा है कि 1212 ई में राजा परमादी देव ने तेजोमहालय मंदिर बनाया था, जिसे अब ताजमहल कहा जा रहा है। इसके बाद जयपुर के राजा मान सिंह ने और 1632 तक राजा जय सिंह ने उसकी देखभाल की। बाद में शाहजहां ने उसका विस्तार कराया।
वकीलों का दावा है कि मुमताज महल की मृत्यु के बाद शाहजहां ने उसे अपनी पत्नी की स्मारक के रूप में परिवर्तित करा दिया। स्मारक के स्वामित्व का मामला अक्तूबर 2011 से उच्चतम न्यायालय में लम्बित है। इसी बीच 1998 में उत्तर प्रदेश सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड ने फिरोजाबाद के इरफान बदर ने ताज महल को वक्फ संपत्ति के रूप में पंजीकृत कराने की मांग उठायी थी।
इस विवाद को सबसे पहले लेखक और इतिहासकार पी एन ओक ने अपनी पुस्तक ताज महल दी ट्रू स्टोरी ने दावा किया था कि ताजमहल वास्तव में मंदिर है और एक राजपूत पैलेस है जिसे तेजोमहालय कहा जाता है। सन 2000 में उच्चतम न्यायालय ने ओक की उस याचिका को खारिज किया था जिसमें ताजमहल को हिन्दू राजा द्वारा बनाए जाने का दावा किया गया था। उच्चतम न्यायालय ने टिप्पणी की थी इस मामले को छेड़ना मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डालने जैसा है।