क़ानूनी जंग में खर्च होती है बीसीसीआई की भारी रक़म
नई दिल्ली। भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) आज दुनियाभर में सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड है। लेकिन जितना पैसा इस बोर्ड के पास आता है लगभग उतना ही पैसा बीसीसीआई को अपने आप को बचाने के लिए कानूनी खर्च के रूप में भी देना पड़ता है। पिछले साल 2013 में हुए आईपीएल स्पॉट फ्किसिंग स्कैंडल के बाद से बीसीसीआई को कानूनी खर्च के रूप में 23 करोड़ रूपए खर्च करने पड़े हैं, जोकि प्रतिदिन छह लाख रूपए खर्च से भी ज्यादा है।
बीसीसीआई अधिकारियों को लगता है कि इस साल कानूनी खर्च के रूप में खर्च होने वाली ये राशि दुगुनी हो जाएगी, क्योंकि आईपीएल स्पॉट फ्किसिंग गाथा के जल्द खत्म होने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं। बीसीसीआई वर्किंग कमेटी के सदस्य ने कहा, “हमे 23 करोड़ रूपए देने पड़े, लेकिन ये आईपीएल स्कैम और फैलने के साथ बढ़ गया। इस साल हमे इस राशि का दुगुना देना पड़ सकता है। बीसीसीआई सुप्रीम कोर्ट में कई लोगों के लिए लड़ रही है, क्योंकि हमारे प्यारे प्रेसीडेंट के सन-इन-लॉ आईपीएल मैचों के दौरान मैच फ्किसिंग के आरोपों का सामना कर रहे हैं।”
वहीं पिछले साल 28 खिलाडियों को आठ टेस्ट, 34 वनडे और एक टी20 मैच खेलने के लिए मैच फीस के रूप में 19.38 करोड़ रूपए देने पड़े थे। यही नहीं ये कानूनी लड़ाई सुप्रीम कोर्ट के अलावा मुंबई और राजस्थान हाई कोर्ट में लड़ी जा रही है, जहां आईपीएल के पूर्व कमिश्नर ललित मोदी के खिलाफ मामला चल रहा है। इसके अलावा बीसीसीआई विदेशी मुद्रा उल्लंघन के आरोपों से भी लड़ाई लड़ रहा है। इसके तहत प्रवर्तन निदेशालय 1600 करोड़ की जांच कर रहा है।
1995-96 में बीसीसीआई ने कोर्ट के मामलों में महज 2.01 लाख रूपए ही खर्चे थे, लेकिन 2014-15 में इस बजट में बहुत बड़ी बढ़ौतरी देखने को मिली और ये खर्च बढ़कर 334.55 करोड़ रूपए हो गया।