सोनिया के हाथों में कांग्रेस ज़्यादा सुरक्षित: संदीप दीक्षित
नई दिल्ली : राहुल गांधी के शीघ्र कांग्रेस अध्यक्ष बनने की चर्चा के बीच पार्टी प्रवक्ता संदीप दीक्षित ने रविवार को कहा कि सोनिया गांधी ‘99 फीसदी’ पार्टी कार्यकर्ताओं की नेता हैं और पहले से कहीं अधिक उनके पार्टी की बागडोर थामे रखने की आवश्यकता है।
उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा, ‘‘97 से 99 फीसदी कांग्रेस कार्यकर्ताओं के लिए उनकी नेता सोनिया गांधी हैं और इस तथ्य को लेकर कोई संदेह नहीं है।’’ उन्होंने कहा कि वह व्यक्तिगत हैसियत से यह बात बोल रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘‘मैं किसी के खिलाफ नहीं हूं। हमें अपने नेता के तौर पर सोनिया गांधी की आवश्यकता है।’’
दो बार सांसद रहे दीक्षित का कहना था कि ‘‘सोनिया गांधी पार्टी की अध्यक्षता किसी को भी सौंप सकती हैं, वह जिसे चाहें उसे अध्यक्षता का अंतरण कर सकती हैं लेकिन वह अपना नेतृत्व जिसे चाहें उसे नही सौंप सकतीं।’’ दीक्षित ने कहा, ‘‘जब विपक्ष को शक्तियों के गठबंधन की आवश्यकता है तो वह सर्वाधिक भरोसेमंद नेता हैं।’’ कांग्रेस अध्यक्ष ने हाल में भूमि अधिग्रहण विधेयक के मुद्दे पर राष्ट्रपति भवन तक विपक्षी नेताओं के मार्च का नेतृत्व किया था।
इसके अलावा, दीक्षित ने कहा कि किसी ने उनकी धर्मनिरपेक्ष और वाम की ओर झुकाव वाला मध्यमार्ग की विश्वसनीयता पर संदेह नहीं किया। दीक्षित ने कहा, ‘‘2014 के चुनाव में हार के बाद, उन्होंने राजनीति के लोकप्रिय स्वरूप की ओर लौटाया है। एक ऐसे विषय के साथ सड़क राजनीति लगभग सभी भारतीयों की कल्पनाओं को ग्रहण करती है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘कांग्रेस में आज सोनिया की तरह किसी में भी समय की समझ, संगठित करने की क्षमता, हर किसी के साथ घुलने-मिलने की क्षमता नहीं है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘जब कांग्रेस में चुनाव होते हैं तो हमें उनकी आवश्यकता है और कांग्रेस अध्यक्ष और नेता के तौर पर उनकी आवश्यकता है। आज उनकी आवश्यकता 1998 की तुलना में कहीं अधिक है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘वह मेरी नेता हैं।’’ फिलहाल, सोनिया गांधी ही एकमात्र नेता है जिनमें कांग्रेस को राजनैतिक इकाई के तौर पर खड़ा करने की क्षमता है।
उन्होंने कहा, ‘‘कांग्रेस की सोच और विचारधारा से उनका कहीं अधिक तालमेल है। ज्यादातर कांग्रेस सदस्य किसी और की बजाय उनके साथ काम करने को लेकर सहज हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘वह समझती हैं और राजनैतिक मुद्दों को पकड़ने में सक्षम हैं। वह समझती हैं कि क्या राजनैतिक मुद्दा है और क्या पार्टी का मुद्दा है। उनमें घुलने-मिलने और चीजों को एकसाथ रखने की जबर्दस्त क्षमता है और आप उनतक पहुंच सकते हैं।’’ वर्ष 1998 में जब पार्टी चरमराने की स्थिति में थी तब पार्टी की बागडोर संभालने के बाद से उनके योगदान को याद करते हुए दीक्षित ने कहा कि उन्होंने लगभग अकेले 2004 का चुनाव जिताया।