नौ संशोधनों के साथ लैंड बिल फिर जारी
दिल्ली। सरकार ने भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को नौ संशोधनों के साथ पुन: जारी कर दिया है। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने मोदी सरकार द्वारा दोबारा लाए गए भूमि अधिग्रहण अध्यादेश पर आज हस्ताक्षर किए। राष्ट्रपति भवन के एक प्रवक्ता ने इस बात की पुष्टि की।
मंत्रिमंडल ने गत मंगलवार को इसे मंजूरी देकर राष्ट्रपति के पास भेजा था। सरकार ने गत वर्ष दिसंबर में 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन कर अध्यादेश जारी किया था और संसद के बजट सत्र के पहले चरण के दौरान इसके स्थान पर लोकसभा में भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक पेश किया था। इस विधेयक को सदन ने नौ संशोधनों के साथ पारित किया था, लेकिन विपक्ष के कड़े विरोध को देखते हुए सरकार ने इसे राज्यसभा में पेश नहीं किया था।
कानूनन कोई भी अध्यादेश छह महीने के लिए होता है, लेकिन इस दौरान संसद का सत्र शुरू होने पर इसे छह सप्ताह के अंदर पारित कराना जरूरी होता है। ऐसी स्थिति में पिछला अध्यादेश पांच अप्रैल को समाप्त हो रहा था। कांग्रेस, वामपंथी दल, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, जनता दल (यू) समेत अधिकतर विपक्षी दल भूमि अधिग्रहण अध्यादेश तथा उसके स्थान पर लाए गए भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक का कड़ा विरोध कर रहे हैं। इन दलों के सांसदों ने बजट सत्र के पहले चरण के अंतिम दिन संसद से राष्ट्रपति भवन तक विरोध मार्च भी निकाला था और राष्ट्रपति को एक ज्ञापन सौंपा था।
विपक्षी दलों का कहना है कि 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन कर मोदी सरकार किसानों का अहित कर रही है और उसने मनमोहन सरकार द्वारा 1894 के कानून में बदलाव करके बनाए गए नए कानून की आत्मा ही मार दी है। कांग्रेस इस मुद्दे पर सरकार को घेरने के लिए 19 अप्रैल को राजधानी में एक विशाल किसान रैली का आयोजन भी कर रही है। कुछ अन्य विपक्षी दल भी देश के विभिन्न हिस्सों में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।
दूसरी ओर, सरकार का कहना है कि देश में विकास कार्यो को गति देने के लिए 2013 के कानून में संशोधन करना जरूरी हो गया था और इसमें किए गए संशोधन किसी भी तरह किसानों के खिलाफ नहीं है। उसका दावा है कि कई राज्य 2013 के कानून को बदलने के पक्ष में रहे हैं। सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने हाल ही में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को इस संबंध में एक पत्र लिखकर इस मुद्देे पर खुली बहस की चुनौती भी दी थी। इसके जवाब में गांधी ने अपने पत्र में कहा था कि इस संबंध में बहस की कोई गुंजाइश नहीं है और इस अध्यादेश के जरिए सरकार किसानों का पूरी तरह अहित कर रही है।