नफरत फैलाने वाले संगठन मुसलमानों के ही नहीं देश के दुश्मन: मौ0 अरशद मदनी
जमीअतुलउलमा के अधिवेशन में सपा सरकार को वार्निंग, मुसलमानों से किये वादे पूरे करे वरना होना पड़ेगा शर्मिंदा
(तौक़ीर सिद्दीकी)
लखनऊ: अगर देश में धर्म के आधार पर नफरत फैलाई जायेगी और बहुसंख्यक व अल्पसंख्यक के बीच धार्मिक आधार पर घृणा की दीवारें खड़ी की जाएंगी तो हमारा यह देश टुकड़ों में विभाजित हो जाएगा, शांति नष्ट हो जाएगी और विकास का मार्ग अवरुद्ध हो जायेगा। यह विचार लखनऊ के रिफाए आम क्लब में जमीअतुलउलमा उत्तर प्रदेश के अधिवेशन में भारी संख्या में जमा हुए मुसलमानों को सम्बोधित करते हुए जमीअतुल उलमा हिन्द के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी ने व्यक्त किये।
उन्होने कहा कि जो सांप्रदायिक संगठन नफरत की राजनीति को हवा देकर अपनी सत्ता को मजबूत करना चाहती हैं वह केवल अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों की ही दुश्मन नहीं हैं बल्कि वह देश की भी दुश्मन हैं। मौलाना अरशद मदनी ने राज्य सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि चुनावी घोषणापत्र में किए गए वादों को तीन वर्ष बीतने के बावजूद पूरा न करना पार्टी के भविष्य पर ग्रहण लगा सकता है, इससे अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों का विश्वास उठ सकता है और पार्टी को भरपाई न कर पाने वाला नुकसान पहुंच सकता है इसलिए सरकार को चाहिए कि तत्काल वादों पर ध्यान दे। मुसलमानों को आरक्षण देकर उनके विकास का मार्ग खोलेए एंटी कम्यूनल टेरारिज्म बिल पर जी ओ लाकर राज्य में शांति बहाली के लिए गंभीर प्रयास करे।
इससे पहले प्रदेश अध्यक्ष मौलाना सैयद अशहद रशीदी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि सांप्रदायिक ताकतें खुले आम मुसलमानों को निशाना बना रही हैं कभी श्श् घर वापसी श्की बात की जाती है तो कभी ‘लव जेहाद’ का शोशा उठाया जाता मगर सरकार नफरत फैलाने वालों के खिलाफ कानूनी तौर पर कोई व्यावहारिक कदम नहीं उठा रही है जिसकी वजह से देश का वातावरण खराब हो रहा है और शांति के लिए ख़तरे पैदा होते जा रहे हैं जिसकी पेशबंदी के लिए जमीअत उलेमा राष्ट्रीय एकता के संदेश को फैलाना आवश्यक समझती है ताकि भारत के सभी जाति और सम्प्रदायों के बीच भाईचारा व प्रेम को बढ़ावा देकर सौहार्द को बढ़ाया जाए और आपसी विश्वास को बहाल किया जाए।
मौलाना अंशहद रशीदी ने कहा कि समाजवादी पार्टी ने चुनाव के दौरान मुसलमानों से वादे करके वोट हासिल किए लेकिन तीन वर्ष की अवधि बीतने के बाद अभी तक कई वादे पूरे नहीं किए गए। हम राज्य सरकार को याद दिलाना चाहते हैं कि अगर आने वाले चुनाव में शर्मिंदगी से बचना है तो वादों को जल्द से जल्द पूरा किया जाए अन्यथा पार्टी को भारी नुकसान का सामना करना पड़े गाद्य मौलाना रशीदी ने मुसलमानों को समाज में फैल रही बुराइयों की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा कि आज मुस्लिम समाज विभिन्न पापों और गलत कामों का शिकार होता जा रहा हैए सुन्नतों को तोड़ा जा रहा है। कर्तव्यों से किनारा किया जा रंहा है और गैर इस्लामी रीति.रिवाज को बढ़ावा दिया जा रहा हैए अगर मुस्लिम समाज की यही हालत रही तो दुनिया की कोई ताकत हमें सम्मान नहीं दिला सकती और मुसीबतों के बादल कभी नहीं छट सकते इसलिए जमीअत उलेमा.ए हिन्द समाज सुधार को जरूरी मानते हुए मुसलमानों को व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से पापों से बचने की हिदायत दी जाती है।
बैठक में समाज सुधार, सांप्रदायिक दंगा बिल, मुस्लिम आरक्षण, निर्दोष मुसलमानों की रिहाई, हाशिमपुरा और राशन कार्ड पर बतौर मुखिया महिलाओं की फोटो आदि से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रस्ताव भी पेश किये गये जिन पर मौलाना सैयद असजद मदनी सदस्य कार्यकारिणी जमीअत उलेमा.ए.हिंद, मौलाना अब्दुल हादी महासचिव, मुफ्ती अशफाक अहमद उपाध्यक्ष, मौलाना अज़हर मदनी आदि ने अपनी राय रखी और भीड़ से हाथ उठवाकर समर्थन प्राप्त किया। अधिवेशन में मौलाना सैयद अखलद रशीदी मदीना मुनव्वरा, मौलाना नबी मोहम्मद, मौलाना महफूजुर्रहमान, मौलाना नज़र मोहम्मद, मौलाना सिराज हाशमी, मौलाना अब्दुल्ला नासिर, हाफिज अब्दुल कुद्दूस हादी, जी एम मुस्तफा, मुफ्ती अबरार अहमद आदि शामिल हुए।
जमीअतुलउलमा के अधिवेशन में पास किये गए रिजूलेशन
राष्ट्रीय एकता और आपसी भाईचारे के सम्बन्ध मंे।
जमियत उलमा उ0प्र0 की वर्किंग कमेटी अपने इस उद्गार को सामने लाकर अपने देश और समाज का दायित्व समझता है। देश के अगुवा नेता जिन्हांेने अपने अनथक परिश्रम से जो कुर्बानियाँ दी हैं उसकी मिसाल मिलना असम्भव है। देश की गुलामी की गहरी खाईं से निकाल कर इस देश को ऊँचाई तक पहुंचाया। प्यारे वतन के इन सपूतों ने मुल्क की एकता अखण्डता बनाये रखने के लिये यहां की सरकारी व्यवस्था मंे लोकतंत्र और सेक्यूरिज्म की बुनियादों पर खड़ा किया जिसमें मुल्क में तमाम धर्मों का समान आदर एवं देश के सभी नागरिकांे को अपने धार्मिक एवं सांस्कृति की स्वतन्त्रता का अधिकार दिया गया।
जमियत उलमा उ0प्र0 की वर्किंग कमेटी का यह अधिवेशन इस बात से परिचित है कि देश के बदले हुये राजनैतिक वातावरण में एक मुख्य अपने अगुवा नेताओं के स्थापित किये रास्ते से हटकर, जनबूझ कर मुल्क में साम्प्रदायिकवादता, हिंसा और अराजकता को बढ़ावा दे रहा है। और सरकार में बैठे अधिकार प्राप्त लोग अनदेखी कर इनकी हिम्मत को बढ़ा रहे हैं जिससे देश की लोकतान्त्रिक व धर्मनिरपेक्ष छवि की अधिक हानि हो रही है।
जमियत उलमा उ0प्र0 की वर्किंग कमेटी का यह अधिवेशन जूनूनी भावना को आगे बढ़ाने के लिये आवश्यक समझता है। देश की आपसी भाई-चारे प्यार व मोहब्बत की पुरानी रीति में नया जीवन पैदा करने के लिये मानवता की नीव पर एकता और पारम्परिक मेलमिलाप की देश व्यापी स्तर पर आन्दोलन चलाया जाये इस सिलसिले मंे छोटी बड़ी कांफ्रेंस की जायें जिसमें अनेकों धर्मों के धर्मनिरपेक्ष व्यक्तियों को दोस्त बनाया जाये और भाईचारा का सन्देश मुल्क के कोने-कोने में पहुंचाया जाये। इस सिलसिले में हमारे मदारिस और इससे सम्बद्ध आलिम मुख्य भूमिका अदा कर सकते इस लिये मानवता के इस सन्देश को आम करने के लिये उन्हंे आगे आना चाहिये क्योंकि प्रकृति का कानून यही रहा है आपसी भाईचारा और एकता से ही देश और समाज को उत्थान मिलता है और आपसी उथल-पुथल मनमुटाव के परिणाम में समाज को बर्बादी के गहरी खाईं में धकेल देती है।
साम्प्रदायिक दंगा बिल के सम्बन्ध में
जमियत उलमा उ0प्र0 की वर्किंग कमेटी अपनी इस सोच को बताये बिना नहीं रह सकती कि साम्प्रदायिक दंगा देश की लोकतन्त्र और इसके सेक्यूलर छवि के लिये एक खुला चैलेंज है इन दंगों से न केवल दुर्बल अल्पसंख्यक समुदाय की जान-माल की हानि होती है न कि यह देश के जड़ों को खोखला कर रही है। इससे सामाजिक, आर्थिक उन्नति और आपसी भाईचारे के रास्ते में सबसे बड़ी रूकावट है।
वर्किंग कमेटी की यह सोच है कि सरकारें जानबूझ कर इस बिन्दु की अनदेखी कर रही हैं। जमियत उलमा की यह दीर्घकालीन मांग है कि जहां दंगा भड़कता है उस जगह के प्रशासन को कानूनी रूप से उत्तरदायी बनाया जाये और इस सम्बन्ध में मजबूत बिल लाया जाये। जमियत उलमा उ0प्र0 की वर्किंग कमेटी का यह अधिवेशन शोक व्यक्त करता है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने पिछले जमियत के अधिवेशन के अवसर पर वादा किया था कि जी0ओ0 लाकर प्रशासन को कानूनी रूप से उत्तरदायी बनाया जायेगा। मगर सरकार अपना यह वादा पूरा करने में असफल रही एक बार फिर वर्किंग कमेटी का यह अधिवेशन उत्तर प्रदेश सरकार से मांग करता है कि साम्प्रदायिक दंगा बिल के सम्बन्ध मंे जी0ओ0 लाकर व्यवहारिक कदम उठाये ताकि देश के समस्त नागरिकों मुख्यतयः मुस्लिम अल्पसंख्यकों की जान-माल की रक्षा का एहसास बहाल हो सके और देश को अराजकता से बचाया जा सके।
मुसलमानों के आरक्षण के सम्बन्ध में
मुसलमानों के आरक्षण के विषय पर संयुक्त आवाज बनकर पूरे देश में आजादी के पश्चात् से गूूज रहा है। तमाम सेक्यूलर पार्टियाँ मुसलमानांे के आरक्षण की जाहरी तौर पर समर्थन कर रही हैं मगर गम्भीरता का परिचय नहीं। जमियत उलमा उ0प्र0 की वर्किंग कमेटी याद दिलाती है कि उत्तर प्रदेश की समाजवादी सरकार अपना वादा पूरा करने में असफल हुई है जबकि चुनाव घोषणा पत्र में 18 प्रतिशत मुसलमानों के आरक्षण का वादा किया गया था। इसी बुनियाद पर मुसलमानों ने दो तिहाई बहुमत से हुकूमत करने का अवसर प्रदान किया। तीन साल व्यतीत हो जाने के बाद भी खेद का विषय है कि मुसलमानों को एक प्रतिशत भी आरक्षण नहीं मिल सका। उत्तर प्रदेश सरकार का यह रवैय्या बेहद निराशाजनक और हतोस्ताहित करने वाला है। हम यह कहने पर बाध्य हैं कि पूरी सरकार मुसलमानों को आरक्षण देने के लिये गम्भीर नहीं है और व्यवहारिक कदम नहीं उठाना चाहती जिसका परिणाम उसको भुगतना पड़ेगा।
निर्दोष गिरफ्तार मुसलमानों की रिहाई के सम्बन्ध में
आतंकवाद के जुर्म में निर्दोष मुस्लिम युवाओं की रिहाई की समस्या अति गम्भीर मुद्दा है। साम्प्रदायिक शक्तियाँ योजनाबद्ध होकर इस साजिश के द्वारा सूचना तन्त्र और युवाओं की जिन्दगियाँ तबाह व बर्बाद कर रही हैं। उच्च शिक्षा से वंचित होने के कारण इनका भविष्य अंधेरे में है और इनके बाल बच्चों के लिये रोजी-रोटी कठिन हो रही है। जमियत उलमा हिन्द इनकी रिहाई के सम्बन्ध में लगातार प्रयत्न कर रही है। उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में इनकी रिहाई का वादा किया था मगर आतंकवाद के आरोप में गिरफ्तार एक व्यक्ति को भी रिहा नहीं कर सकी। लोकसभा चुनाव के बाद तो सरकार का रवैय्या और भी मायूस करने वाला है। जमियत उलमा उ0प्र0 की वर्किंग कमेटी का यह अधिवेशन उत्तर प्रदेश सरकार से मांग करता है कि आतंकवाद से सम्बद्ध मुकदमात को फास्ट ट्रेक अदालतों के सुपुर्द करेके प्रतिदिन सुनवाई करके जल्द उनके फैसले को सुनिश्चित करे और निर्दोष मुस्लिम नौजवानों के मुकदमात को वापस लेने का अपना वादा पूरा करे।
अपमानजनक और घृणा फैलाने वाले भाषणों के सम्बन्ध में।
आर0एस0एस0 की अस्सी साल का इतिहास यह बता रहा है कि उसने अपने अस्तित्व के साथ देश के अल्पसंख्यक मुख्यतः मुसलमानों और ईसाईयों के विरूद्ध नफरत फैलाने और देश में आग लगाने का काम किया है। कौन नहीं जानता कि आर0एस0एस0 एक फासीवादी और आतंकी संगठन है जिसके हाथ राष्ट्र पिता महात्मा गांधी के खून से रंगे हुये हैं और बाबरी मस्जिद के विध्वसं में सम्मिलित है।
हिन्दुस्तान एक लोकतान्त्रिक देश है यहां पर हर नागरिक को संवैधानिक अधिकार है कि अपने धर्म पर स्वतन्त्रता के साथ चलने का अधिकार प्राप्त है। आज देश में साम्प्रदायिक शक्तियों ने केन्द्र में सत्ता प्राप्त करने में सफलता प्राप्त कर ली है इस लिये भगवा साम्प्रदायिक संगठनों के हौसले बुलन्द हैं और उत्तेजात्मक बयान देने वाले लीडर पर कोई अंकुश लगाने मंे असफल हैं। केन्द्रीय सरकार मूकदर्शक बनी हुई है जिससे देश की लोकतान्त्रिक ताना-बाना बिखर रहा है। देश कानून और न्याय की राह से हटकर फासिज़्म और अराजकता की राह पर लाने की भरसक कोशिश की जा रही है। प्रान्तीय सरकारें भी गूंगी-बहरी बनी हुई है इनके विरूद्ध कार्यवाही करने की हिम्मत और शक्ति नजर नहीं आ रही है।
जमियत उलमा उ0प्र0 वर्किंग कमेटी का यह अधिवेशन आर0एस0एस0 और इससे सम्बद्ध हिन्दू संगठनों की आतंक और घृणा पर आधारित नफरत फैलाने और अपमानजनक बयानात पर अपनी गहरी चिन्ता करता है और यह अधिवेशन प्रान्तीय सरकार से मांग करता है कि साम्प्रदायिक संगठनों पर प्रतिबन्धित किया जाये। मुख्यता अपमानजनक और घृणात्मक बयान देने वाले के विरूद्ध कानूनी कार्यवाही करके उचित सजा दी जाये।
हाशिमपुरा में सामूहिक हत्या के फैसले के सम्बन्ध में
हाशिमपुरा मेरठ के मुसलमानांे का पी0एस0सी0 के हाथों सामूहिक हत्या के सम्बन्ध से 28 वर्षों बाद दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट का फैसला मुसलमानों के लिये निराशाजनक है और सरकार के रवैये से मुसलमान फिकरमन्द हैं। जमियत उलमा उ0प्र0 की वर्किंग कमेटी यह इजलासे आम अफसोस और दुख प्रकट करता है और कासिमपूरा के मजलूम मुसलमानांे के साथ इजहार हमदर्दी और ऊपर की अदालत से न्याय मिलने की आशा रखता है। जमियत उलमा इस मुकद्में में हर प्रकार का सहयोग देने के लिये तैयार है।
राशन कार्ड में मुखिया के तौर पर औरतों का नाम दर्ज करने के सम्बन्ध में
हिन्दुस्तान की सरकार से राशन की सुविधा प्राप्त करने के लिये शहर के राशन कार्ड की व्यवस्था वर्षांे से चली आ रही है और घर का राशन कार्ड अब तक परिवार के मुखिया मर्द के नाम होता था और राशन कार्ड का मुखिया इसको माना जाता था, मगर अब नये कानून के अनुसार मुखिया की जगह औरत का नाम लिखा जाता है जिसके कारण परिवार वाले मुख्यतः मुसलमानों को कठिनाईयां आ रही हैं। मुसलमान औरतें पर्देदार होती हैं इस लिये राशन कार्ड से सम्बन्धित दायित्व को पूरा करना वस्तुतः कठिन और शरीहन दंगे का कारण बन सकता है।