—और शहरों में कोई फिरता था घबराया हुआ
प्रख्यात समाजवादी मनीषी डाॅ. राममनोहर लोहिया की जयंती 23 मार्च पर विशेष
-लोग मेरी बातें सुनेंगे जरूर, शायद मेरे मरने के बाद मगर सुनेंगे जरूर: डॉ. लोहिया
-डॉ. लोहिया के संघर्ष की बदौलत ही ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति बन सके
-सर्वधर्म समभाव से सामाजिक यकजयती के सहारे देश को सबल, समृद्ध और विश्वगुरू बनाना था उनका सपना
विश्व के राजनीतिक क्षितिज पर ध्रुवतारा बन चमके डॉ. राम मनोहर लोहिया का जन्म अविभाजित स्वरूप वाले फैजाबाद जिले के अकबरपुर कस्बे में हुआ था। उन्होंने न केवल देश में बल्कि विश्व स्तर पर गैर बराबरी और भेदभाव के खिलाफ संघर्ष किया। तत्समय लंदन, अमेरिका सहित कई देशों में काले-गोरे का भेद था। अनेक सार्वजनिक प्रतिष्ठानों में काले लोगों के प्रवेश, राजनीति में काले लोगों की भागीदारी पर प्रतिबंध था। डॉ. लोहिया ने इस गैर बराबरी और मानव-मानव में भेद के खिलाफ विदेशों में अनेक बार सत्याग्रह किया। लोगों को झकझोरा नतीजतन यह भेद समाप्त हुआ। इंसानियत के हर पहलू पर व्यापक सोच के धनी डॉ. लोहिया अपने जीवनकाल में जो कहा करते थे वह सब धीरे-धीरे सामने आता गया। आत्मविश्वास से लबरेज डॉ. लोहिया कहा करते थे लोग मेरी बातें सुनेंगे जरूर शायद मेरे मरने के बाद मगर सुनेंगे जरूर। डॉ. लोहिया की सीख व भविष्य के प्रति चिंता के बाबत उस समय के शायरों ने लिखा था आग जंगल में लगी थी सात दरियाओं के पार और शहरो में कोई फिरता था घबराया हुआ।
वर्ष 1960 के दशक में ही उन्होंने देश की भावी समस्याओं को बखूबी समझ लिया था। इसीलिए ‘गरीबी हटाओ’, ‘दाम बांधों’, ‘हिमालय बचाओ’, ‘नदियां साफ करो’, ‘पिछड़ों को विशेष अवसर दो’, ‘बेटियों की शिक्षा व विकास का समुचित प्रबंध हो’, गरीबों के इलाज का इंतजाम हो, किसानों को उपज का लाभकारी मूल्य मिले, खेती और उद्योग में समन्वय बनाकर विकास का एजेंडा तय हो, गरीबी के पाताल और अमीरी के आकाश का फासला कम करने के जतन हों, मानव-मानव में भेद पैदा करने वाले हर कारक यथासंभव दूर किए जाएं, देश की आधी आबादी नारी की बेबसी दूर कर उन्हें प्रगति व विकास के समान अवसर दिए जाएं……आदि।
डॉ. लोहिया कहा करते थे ”धर्म अल्पकालिक राजनीति है और राजनीति दीर्घकालीन धर्म”। धर्म का काम है मानवीय संबंधों में अच्छाई स्थापित करे और राजनीति का काम है बुराई से लड़े। धर्म जब स्तुति तक सीमित हो जाता है, मानवीय संबंधों में अच्छाई नहीं स्थापित करता तो निष्प्राण हो जाता है और राजनीति जब बुराई से लड़ती नहीं तो कलही हो जाता है। उनकी इस सीख को बीते कालखंड की सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों का विश्लेषण कर भलीभांति समझा जा सकता है।
वह कहा करते थे कि हिंदुस्तान के सामाजिक परिवेश में हिंदू और मुसलमान के बीच उभरी दरार को सियासत करने वाले खाई बनाने में लगे हैं यह दुखद है। इस खाई के सहारे राजनीति की रोटी तो सेंकी जा सकती है पर इंसानियत के जख्म नहीं भरे जा सकते। इंसानी यकजयती के सहारे सामाजिक मजबूती, सामाजिक मजबूती के सहारे विकास, विकास के सहारे समृद्धि और समृद्धि के सहारे देश को न केवल सबल बल्कि विश्वगुरू बनाया जा सकता है।
डॉ. लोहिया कहा करते थे कि मेरा बस चले तो हर हिंदू को समझाऊं कि रजिया, रसखान और जायसी मुसलमान नहीं बल्कि उनके पुरखे थे। ठीक इसी के साथ मुसलमानों को भी समझाऊं कि गजनी, गोरी और बाबर उनके पुरखे नहीं बल्कि हमलावर थे।
डॉ.लोहिया मानव रूप में ऐसे पारस थे कि जो संपर्क में आया गुण और ज्ञान से हीरा बन चमका। उस जमाने के समाजवादी आंदोलन से जुड़े वे लोग जो डॉ. लोहिया की सरपरस्ती में आगे बढ़े, कालांतर में तारा बन चमके। अनेक ऐसे मौके आए हें जब डॉ. लोहिया ने लोकसभा में सरकार की घोषणा को चुनौती दी। बाद में सच वही निकला जो डॉ. साहब ने कहा और सरकार ने लोकसभा में क्षमा मांगा। तीन आना बनाम पंद्रह आना की बहस काफी चर्चित हुई थी।
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डॉ. लोहिया की पसंद हैं मुलायम
डॉ. लोहिया विद्वान, दूरदृष्टा होने के साथ ही व्यक्ति में निहित गुणों के बड़े पारखी थे। मौजूदा समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव भी उनकी पसंद थे। 1967 में मुलायम सिंह यादव ने किसानों की समस्या को लेकर इटावा जिले में आंदोलन छेड़ा था। तब वह किसी पार्टी से नहीं जुड़े थे। उस समय डॉ. लोहिया की पार्टी का नाम संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (संसोपा) था। इटावा के ही प्रो. रामगोपाल यादव, कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया आदि डॉ. लोहिया के वरिष्ठ सहयोगी थे। लेकिन डॉ. लोहिया की मुलाकात मुलायम सिंह से हुई और उन्होंने बातचीत में मुलायम के मन में बसी व्यथा और छिपी हसरतों को महसूस किया। नतीजतन पार्टी के पुराने लोगों से कहा कि इसे (मुलायम को) विधानसभा चुनाव लड़ाओ। उस जमाने के रामशरण दास संसोपा के प्रदेश सचिव थे। डॉ. साहब के आदेश पर उन्होंने मुलायम सिंह को पार्टी की सदस्यता दिलायी और विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी घोषित किया।
यही वह समय था जब डॉ. लोहिया की सरपरस्ती में मुलायम सिंह यादव सियासी रथ पर सवार हो लिए। 1967 की विधानसभा में 21 वर्षीय मुलायम सिंह यादव सबसे युवा विधायक चुनकर सदन पहुंचे। कालांतर में मुलायम सिंह यादव का सियासी रथ हालात के थपेड़े खाता हुआ आगे बढ़ता रहा। डॉ. लोहिया की सीख पर सामाजिक और राजनीतिक परिस्थतियों के अनुसार मजबूती से अमल करते हुए यह रथ आगे बढ़ा और अब कहां है सभी जानते हैं।
डॉ. राम मनोहर लोहिया के जीवन का हर पल, हर बात प्रेरणादायी है। 12 अक्टूबर 1968 में देहावसान होने के बाद भी डॉ. लोहिया की सीख और प्रेरणा आज भी जिंदा है। तब से लेकर मौजूदा समय तक केंद्र सरकार हो या प्रदेश सरकार सभी के एजेंडे में वह बातें आती गयीं जो डॉ. लोहिया तब कहा करते थे। वह समस्यसाएं सामने आयीं जिनके प्रति वह उस समय ही सचेत किया करते थे।