किसानों की आत्महत्या पर जांच आयोग का गठन करे अखिलेश सरकार
किसानों की आत्महत्या और फसलों की तबाही पर रिहाई मंच ने मुख्यमंत्री को भेजा पत्र
लखनऊ। रिहाई मंच ने बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि के कारण फसलों की बर्बादी से आहत किसानों द्वारा की जा रही आत्महत्या, दिल का दौरा पड़ने व सदमें से हो रही मौतों और मुआवजे के संदर्भ में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को मांग पत्र भेजा है। 11 सूत्रीय सवालों और 14 सूत्रीय मांगों वाले इस पत्र के माध्यम से प्रदेश सरकार की फसलों की बर्बादी की मुआवजा नीति और किसानों की आत्महत्या के बाद प्रदेश सरकार के गैरजिम्मेदाराना कार्यशैली पर सवाल उठाया गया है।
रिहाई मंच ने फसलों की बर्बादी के बाद प्रदेश के 18 जिलों में 13 आत्महत्या और 49 दिल का दौरा पड़ने व सदमें से हुई मौतों के संज्ञान में आए मामलों को रखते हुए कहा है कि प्रदेश में इससे कहीं ज्यादा किसानों की मौतों के मामले हैं। जालौन में 10, हमीरपुर में आठ समेत पूरे बंदेलखंड में 17 दिनों में 29 किसानों के आत्महत्या व दिल का दौरा पड़ने से हुई मौतों के जो मामले सामने आए हैं वे साफ करते हैं कि बुंदेलखंड समेत पूरा सूबा गंभीर कृषि संकट से जूझ रहा है। मंच ने तथ्यों को दबाने, गलत तथ्य प्रस्तुत कर अपने दायित्वों के निर्वहन के प्रति झूठा गैरजिम्मेदाराना कार्यशैली वाले अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है। मंच ने किसान आत्महत्या, दिल का दौरा व सदमें से हो रही मौतों की बढ़ती प्रवृत्ति के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक समेत विभिन्न परिदृश्यों को समझने व इसके एक नियत हल के लिए एक जांच आयोग के गठन की मांग की है।
रिहाई मंच कार्यकारी समिति के सदस्य अनिल यादव, हरे राम मिश्र, मसीहुद्दीन संजरी और लक्ष्मण प्रसाद द्वारा मुख्यमंत्री को संबोधित पत्र में कहा गया है कि एक तरफ ‘किसान वर्ष’ घोषित है वहीं दूसरी तरफ फसलों की बर्बादी व किसान आत्महत्या जैसे सवालों पर सरकार ‘किसान वर्ष’ की नीतियों और उद्देश्यों के खिलाफ खड़ी है। फसलों की बर्बादी के बाद जहां प्रदेश सरकार को किसानों के साथ खड़ा होकर उनके आर्थिक नुकसान की भरपाई करनी चाहिए थी उस वक्त वह उसे आंकड़ों के जरिए झुठलाने का प्रयास कर रही थी। प्रदेश सरकार अपनी जिम्मेदारी व जवाबदेही से बचने के लिए किसान आत्महत्या के सवाल पर झूठ बोलती रही कि किसी किसानों ने आत्महत्या नहीं की, और जब प्रदेश के मुख्यमंत्री ने किसानों की असामयिक मृत्यु के शिकार किसानों को आर्थिक सहायता देने की घोषणा की तब तक दर्जनों किसानों की मौत हो चुकी थी। पत्र में मुख्यमंत्री द्वारा नुकसान की भरपाई पर जारी 200 करोड़ रुपए का प्रति हेक्टेयर का आकलन करते हुए बताया गया है कि पहले चरण की बारिश के अगर किसान पीडि़तो में यह सिर्फ बांटी जाए तो 740 रुपए प्रति हेक्टेयर होगी वहीं अगर पूरे फसल बर्बादी वाले किसानों में बांटा जाएगा तो यह 200-300 रुपए प्रति हेक्टेयर और छोटी जोत के किसानों तक पहुंचते-पहुंचते यह राशि 100-50 रुपए के रूप में आ जाएगी। मंच ने उत्पादन को आधार मानकर प्रति हेक्टेयर मुआवजा देने की मांग की है।
रिहाई मंच ने 60000 रुपए प्रति हेक्टेयर मुआवजा, गेहूं के समर्थन मूल्य पर राज्य सरकार द्वारा सात सौ रुपए प्रति क्ंिवटल का बोनस, 50 प्रतिशत फसल बर्बाद होने पर ही मुआवजा देने के मानदंड को समाप्त करते हुए, किसान को ईकाई मानते हुए उसके फसल की बर्बादी का मूल्यांकन, नई मुआवजा नीति, फसल की बर्बादी के कारण आत्महत्या, दिल का दौरा पड़ने व सदमें से मरने वाले किसानों के परिवार को बीस लाख रुपए व परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी, जिससे फिर से परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार हो सके, खेत-खेत या प्लाट-प्लाट के सर्वे से फसलों के नुकसान का आकलन, फसलों की ताबाही के बाद जिस तरह से किसानों की आत्महत्या, दिल का दौरा पड़ने व सदमें से मौतों के मामले सामने आए हैं, ऐसे में किसानों के अल्पावधि ऋण समाप्त करते हुए मृत किसानों के सभी प्रकार के ऋणों को तत्काल समाप्त करने, निजी ऋण दाताओं के खिलाफ किसानों की शिकायतों पर तत्काल कार्रवाई, आत्महत्या किए बटाईदार किसान को भूमि की गांरटी, फसलों की बर्बादी के बाद आत्महत्याओं के सिलसिले को देखते हुए 1 माह के भीतर गन्ना किसानों के भुगतान की गारंटी, बर्बाद हुई नगदी फसलों के भी नुकसान की भरपाई, किसानों का एक साल का बिजली बिल माफ करने, उन्हें मुफ्त बिजली उपलब्ध कराने और बेमौसम बारिश व ओलावृष्टि से बर्बाद हुए मकानों के एवज में प्रदेश सरकार द्वारा पीडि़त किसानों को लोहिया आवास योजना के तहत आवास आवंटित करने की मांग प्रदेश सरकार से की है।