पूर्व नौकरशाहों ने तब्लीगी जमात की हो रही आलोचना पर सवाल उठाया
नई दिल्ली: देश के पूर्व नौकरशाहों ने कोविड-19 को लेकर सोशल डिस्टेंसिंग के सिद्धांत के मामले में तब्लीगी जमात की हो रही आलोचना पर सवाल उठाया है। इस मामले में पूर्व नौकरशाहों द्वारा गठित संस्था कॉन्स्टीट्यूशन कंडक्ट ग्रुप ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों और केंद्रशासित प्रदेशों के उपराज्यपाल को पत्र लिखा है। उनका कहना है कि जिस तरह देश में अलग-अलग हिस्सों में वायरस फैलाने में जमात के इरादों को जिम्मेदार ठहराया गया और मीडिया ने कोविड-19 को एक सांप्रदायिक रंग देने में जल्दबाजी की, वह गैर-जिम्मेदाराना और निंदनीय है। उन्होंने हाल के घटनाक्रमों पर चिंता जताते हुए कहा कि हमें अपनी गैर-भेदभावपूर्ण कार्रवाई और राहत उपायों के माध्यम से यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अल्पसंख्यकों को भारत में डरने की कोई बात नहीं है।
101 पूर्व नौकरशाहों ने पत्र में कहा है कि देश के कुछ हिस्सों में फलों और सब्जियों पर मुस्लिम विक्रेताओं की थूकते हुए नकली वीडियो क्लिप जानबूझकर वायरल हुई, जिससे यह लगता है कि कथित तौर पर कोविड-19 के मामले बढ़ाने में इनकी भूमिका रही है। ऐसे मामले सामने आए हैं जिसमें सब्जी विक्रेताओं से उनके धर्म के बारे में पूछा गया है और जब वे मुस्लिम का उल्लेख करते हैं तो उन पर हमला तक किया गया है। इस समय सोशल मीडिया पर ऐसी घटनाएं चल रही हैं। महामारी में भय और असुरक्षा को लेकर मुस्लिम समुदाय को सार्वजनिक जगहों से दूर रहने के लिए कहा गया है।
पत्र में कहा गया है कि होशियारपुर से ऐसी रिपोर्ट्स आई हैं कि पंजाब से अपने मवेशियों के साथ हिमाचल प्रदेश आए प्रवासी मुस्लिम गूर्जरों को मॉब द्वारा तनाव की आशंका के चलते पुलिस ने उन्हें प्रवेश करने से ब़ॉर्डर पर ही रोक दिया। इस तरह की तस्वीरें सामने आई हैं कि पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को स्वान नदी के तट पर शरण लेने के लिए मजबूर किया गया और इस नाकेबंदी के बाद सैकड़ों लीटर दूध डंप कर दिया गया। नालंदा जिले के बिहार शरीफ के एक बाज़ार की तस्वीरें दिखाती हैं कि गैर-मुस्लिम विक्रेताओं की गाड़ियों पर झंडे लगे हैं ताकि लोग इनसे खरीदारी कर सकें। इन घटनाओं को मुस्लिमों को अलग-थलग करने के तौर पर देखा जा रहा है।
संस्था का कहना है कि विभिन्न स्थानों पर अस्पतालों और स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में मुस्लिमों के साथ भेदभाव की खबरें परेशान करने वाली हैं। बताया गया है कि 8 अप्रैल को वाराणसी के मदनपुरा के मुस्लिम बहुल इलाके की एक बुनकर फौजिया शाहीन को लगातार दर्द की शिकायत के बावजूद बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के सर सुंदरलाल अस्पताल से निकाल दिया गया। इसके बाद उसने अस्पताल के बाहर एक बच्चे को जन्म दिया। सोशल मीडिया में आक्रोश को देखते हुए, पुलिस ने मेरठ में एक कैंसर अस्पताल के प्रबंधन के खिलाफ मामला दर्ज किया, जिसमें उसने एक विज्ञापन में कहा गया था कि वह मुसलमानों का इलाज केवल कोरोना की जांच रिपोर्ट निगेटिव दिखाने पर ही करेगा। अहमदाबाद में तो कोरोनवायरस के मुस्लिम रोगियों के लिए अलग वार्ड नामित किए गए हैं।
पत्र में कहा गया है कि पूरा देश अभूतपूर्व आघात से गुजर रहा है। हम उन चुनौतियों को सहन कर सकते हैं, उनसे बच सकते हैं और उन पर काबू पा सकते हैं, जिन्होंने इस महामारी में एक दूसरे को सहयोग और मदद करने के लिए मजबूर किया है। हम उन मुख्यमंत्रियों की सराहना करते हैं, जो महामारी के मामले में सामान्य तौर पर और विशेष रूप से अपने दृष्टिकोण में बिल्कुल धर्मनिरपेक्ष रहे हैं। हमें याद रखना चाहिए कि पारंपरिक रूप से भारत ने मुस्लिम देशों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखे हैं और उन्हें उनके दोस्त के रूप में देखा गया है। हमारे लाखों नागरिक इन देशों में रहते हैं और काम करते हैं। हाल के घटनाक्रमों को लेकर इन देशों में गंभीर चिंता व्यक्त की गई है। हमें अपनी गैर-भेदभावपूर्ण कार्रवाई और राहत उपायों के माध्यम से यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अल्पसंख्यकों को भारत में डरने की कोई बात नहीं है। यह इन देशों की गलतफहमी को दूर करने में मदद करेगा और वह प्रवासी भारतीयों के लिए अहम होगा।