कोरोना के काले साये में रमज़ान
ज़ीनत शम्स
आगामी 24 या 25 अप्रैल से मुसलमानों के सबसे पवित्र महीने रमज़ान की शुरुआत हो रही है| वैसे तो दुनिया भर के लगभग 180 करोड़ मुसलमान रमज़ान की तैयारियां बड़े ज़ोरशोर से करते आये हैं लेकिन इस बार ऐसा नहीं है| दुनिया इस वक़्त कोरोना वायरस के शिकंजे में जकड़ी हुई है| चीन के वुहान शहर से निकला यह वायरस पूरी दुनिया के 24 लाख से ज़्यादा लोगों पर वार कर चूका है और इस महामारी से अबतक डेढ़ लाख से ज़्यादा लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है |
इस वायरस के फैलने से ख़ौफ़ज़दा दुनिया के लगभग सभी देशों को लॉकडाउन की घोषणा करनी पड़ी है| लॉकडाउन ने दुनिया को समेटकर उनके घरों में क़ैद कर दिया है| तमाम तरह की पाबंदियां लगाईं गयी हैं जिनमें यात्रा करना, सामाजिक समारोहों का आयोजन, किसी भी ऐसे काम की मनाही है जिनमें लोग इकठ्ठा हों|
रमज़ान एक ऐसा महीना जिसमें सबकुछ सामूहिक रूप से होता है, चाहे फिर वह इफ्तार हो, सहरी हो या तरावीह | इसीलिए जो लोग अपने घरों से दूर दूसरे देशों या शहरों में रहते हैं वह भी रमजान में छुट्टी लेकर अपने घर आ जाते हैं और घर पर ही अपने परिवार के साथ सहरी और इफ्तार करते हैं | यक़ीनन इस वर्ष यह संभव नहीं है क्योंकि लॉकडाउन के कारण मस्जिदों में इज्तेमाई नमाज़ नहीं हो रही इसलिए तरावीह भी नहीं होगी| जुमा की नमाज़ पहले से ही बंद है | घरों में भी लोगों को साथ में इफ्तार करने या सेहरी करने के लिए मना किया जा रहा है| धर्मगुरुओं की ओर से इस बारे में मुस्लिम समुदाय के लोगों को अपील जारी की जा रही हैं| देश के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मुख्तार अब्बास नक़वी ने भी मुसलमानों से अपील की है कि रमज़ान के महीने में लॉकडाउन के नियमों का सख्ती से पालन करें|
रमज़ान का महीना एक ऐसा महीना होता कि जिसमें आर्थिक रूप से संपन्न है मुसलमान ज़कात निकालता है जिससे गरीब परिवारों की मदद होती है| इसके अलावा भी ग़रीबों को कपड़ा खाना आदि भी बांटा जाता है ताकि गरीब लोग भी ईद का त्यौहार ख़ुशी से मना सकें| ज़कात एक इस्लामिक टैक्स है जिसे मुसलमानों को अपनी धन सम्पदा के हिसाब से देना होता है| लेकिन इस बार मुश्किल यह है कि कारोबार बंद है, देश में आर्थिक रूप से स्लोडाउन पहले से ही चल रहा था| अब ऐसे में साधन संपन्न मुसलमान कितनी ज़कात निकाल पाएंगे यह देखने वाली बात होगी| इसके अलावा जो लोग ग़रीबों को ज़कात का पैसा पहुँचाना चाहते है वह लॉकडाउन नियमों को तोड़े बिना कैसे उन ग़रीबों तक पहुँच पाएंगे, एक बड़ा सवाल है |
एक और बात, कोरोना महामारी के कारण लोगों के मन में सवाल है कि कहीं रोज़ा रखने से कोई नुक्सान तो नहीं होगा| बीमार लोग जो डॉक्टर से सलाह लेकर रोज़े रखते थे वह डॉक्टरों से कैसे सलाह लें| सोशल मीडिया पर इस बात को लेकर काफी बातें हो रही हैं| अल अज़हर फ़तवा सेंटर ने कहा है कि रोज़ा रखने से कोरोना वायरस के हमले का कोई खतरा नहीं है | यह फतवा WHO के दिशानिर्देशों पर आधारित है जिसमें दुनिया की सबसे बड़ी हेल्थ आर्गेनाईजेशन ने कहा है कि पानी पीने और ग़रारा करने का कोरोना वायरस के प्रसार का कोई सम्बन्ध नहीं है |
तो आप लोग अपने घरों पर रहकर रोज़ा रखें, इबादत करें और अल्लाह से इस महामारी से दुनिया को बचाने की दुआ करें| साथ ही लॉकडाउन के नियमों का पालन ज़रूर करें | एक दूसरे के शरीरों से दूरी ज़रूर बनाये रखें मगर दिलों से नहीं | इंशाअल्लाह कोरोना महामारी भी ख़त्म होगी और हम सभी अगला रमज़ान पहले की तरह साथ में मिलकर मनाएंगे | आमीन