प्रवासी मजदूरों की बेबसी, न खाना न पानी न छत
नई दिल्ली: कोरोना वायरस के बीच लॉकडाउन के चलते प्रवासी मजदूरों के सामने बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई है। उनके पास ना रोजगार है ना खाने और रहने के लिए मकान। मजदूर देश के अलग-अलग इलाके में दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं। ऐसी ही कुछ तस्वीर दिल्ली के यमुना बैंक में नजर आई है। जहां यमुना नदी के किनारे पुल के नीचे सैंकड़ो मजदूर रहने को मजबूर हैं। यमुना बैंक पुल के नीचे रह रहे इन मजदूरों की स्थिति दयनीय है। इनके पास ना खाने का ठिकाना है और ना पानी का। भरी दोपहरी में तेज गर्म हवाओं के बीच अपने-अपने सामान लिए ये लोग जमीन पर लेटने को मजबूर हैं।
स्क्रॉल डॉट इन की खबर की मुताबिक मजदूर कई दिनों से भूखे हैं। कभी-कभार उन्हें एक वक्त का खाना लंगर के जरिए मिल जाता है।
एक मजदूर ने बताया कि वह दो दिन से सिर्फ पानी पीकर जिंदा है उसे दो दिन से खाने को कुछ नहीं मिला है। बीते शनिवार 11 अप्रैल को इनके लिए बनाए गए शेल्टर में कुछ शरारती तत्वों ने आग लगा दी। यहां हजारों लोगों का खाना बनता था। लेकिन एक दिन खाना कम पड़ने के विवाद के बाद किसी ने शेल्टर में आग लगा दी।
अधिकारियों के मुताबिक यहां 104 मजदूर लॉकडाउन के बाद से रह रहे थे। आगजनी के बाद मजदूर इस हालत में रहने को मजबूर हैं। बीस साल के एक युवक ने कहा कि आज तीन दिन बाद हमें खाना नसीब हुआ है। कुछ सिख समुदाय के लोग हमें खाना दे जाते हैं। लेकिन ज्यादातर लोग भूखे ही हैं।
मजूदरों का कहना है कि उन्हें इंतजार है कि कब लॉकडाउन खत्म होगा और वह अपने घर जा सकेंगे।यहां देश के अलग-अलग राज्यों से लोग फंसे हुए हैं। उनका कहना है कि वह सरकार की मदद पर पूरी तरह से निर्भर हैं और सभी को मदद भी नहीं मिल पा रही है।