खेती- कहीं देर ना हो जाए
राजीव त्यागी
राष्ट्रीय प्रवक्ता, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
औद्योगिक इकाइयों से लेकर सभी संस्थाएं अपना मुकम्मल पाने के लिए इंतजार कर सकती हैं परंतु खेती इंतजार नहीं कर सकती। कोरोना वायरस के संक्रमण के फैलने के बाद आज पूरा विश्व इस वायरस से हलकान है। भारतवर्ष भी इससे अछूता नहीं है। देश के चिकित्सक चिकित्सा कर्मी प्रशासनिक अधिकारी और कर्मचारी और सभी देशवासी कंधे से कंधा मिलाकर इस घड़ी में एक दूसरे के साथ है।
भारत के कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण के बाजार के आकार की बात करें तो खाद्य एवं खुदरा व्यापार 828.92 बिलियन डॉलर का है खाद्य प्रसंस्करण 543 बिलियन डॉलर का है।
देश के आर्थिक हालातों की समीक्षा करें तो स्थिति बहुत निराशाजनक है। पिछले 11 वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर सबसे कम है, 7 वर्ष में प्राइवेट कन्जम्शन सबसे कम है, नए निवेश की दर पिछले 17 साल में सबसे कम है, विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर 15 साल में सबसे कम है और खेती की विकास दर पिछले 4 वर्ष में सबसे कम है। जनवरी 2019 में यदि कृषि कार्यों को करने हेतु कर्ज लेने की दर 7.6% थी तो जनवरी 2020 में वो 6.5% पर आ गई।
वर्ष 2020-21 के बजट के अनुसार केंद्र सरकार ने केंद्रीय जनकल्याण योजनाओं के मद में 38968 करोड रुपए, खाद्य योजनाओं में 68650 करोड़ों रुपये और किसानों को मिलने वाली खाद सब्सिडी पर 8687 करोड़ रुपए की कटौती की।
कोरोना के संक्रमण और आर्थिक बदहाली की वजह से चारों तरफ बेचैनी का माहौल है और सबसे ज्यादा बेचैनी ग्रामीण क्षेत्र में है। देश का किसान और खेतिहर मजदूर देश की सरकार की तरफ देख रहा है। वे इस बात की आस में बैठे है कि सरकार ग्रामीण क्षेत्र को इस वायरस के संक्रमण से भी बचाएगी साथ ही इसकी वजह से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को जो गहरा आघात लगा है उससे भी उबारने का काम करेगी। देश में जब से लाँक डाऊन हुआ है तभी से किसानों को रबी की फसल की कटाई और बिक्री,.गन्ने की फसल की बिक्री और भुगतान आलू की फसल की निकासी की चिंता है। यदि गन्ने की फसल समय पर नहीं कटेगी तो धान, ज्वार, मक्का, गन्ना,सोयाबीन, बाजरा, मूंगफली, तूर और मूंग जैसी फसलों की बुवाई में भी दिक्कत आएगी।
फल सब्जी और बागवानी करने वाले किसान और दुग्ध उत्पादन करने वाले किसान बुरी तरह से परेशान हैं। जो सब्जियां और फल जल्दी खराब हो जाते हैं उनके उगाने वाले किसान तो बर्बादी के कगार पर हैं। बागवानी की उपज का कोई खरीदार नहीं है जिसकी वजह से उनकी सारी फसलें खेतों मे ही सड़ रही है।
भारत में वर्ष 2018-19 में 187.7 मिलियन टन दूध का उत्पादन हुआ जोकि विश्व के कुल दूध के उत्पादन का करीब 22% है। भारतवर्ष दुग्ध उत्पादन में पूरे विश्व में नंबर एक पर है। प्रति व्यक्ति प्रतिदिन दूध की खपत की बात करें तो भारतवर्ष में 394 ग्राम दूध एक व्यक्ति के हिस्से में आता है। खाद्य प्रसंस्करण बाजार में डेयरी उद्योग का 29% हिस्सा है। देश मे आए कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (अप्रैल 2000 से लेकर दिसंबर 2019 तक) का खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में 2.14% ही निवेश हुआ। आज कोरोनावायरस के संकट की वजह दुग्ध उत्पादक किसान होटल, रेस्टोरेंट्स और कैटरिंग बिजनेस के बंद होने की वजह से परेशान हैं। लाँक डाउन की वजह से पशु चिकित्सकों का अभाव, दवाइयों का ना मिलना और सूखे और हरे चारे की खरीद-फरोख्त पर रोक लगने की वजह से इस उद्योग में दिक्कतें और बढ़ रही हैं।
एक वर्ष पहले प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना पूरे देश में लागू की गई थी। इस योजना के अनुसार देश में साढे 14 करोड़ किसान हैं, जिनके लिए सरकार ने ₹6000 प्रति वर्ष की राशि मुकर्रर की थी। इस योजना के 1 वर्ष होने के बाद 22 फरवरी 2020 को पी आई बी की एक विज्ञप्ति के अनुसार अनुसार पूरे देश में कुल 8 करोड़ 46 लाख किसानों को ही इसका लाभ मिला है। विस्तार से आंकड़े देखने पर पता चलता है उत्तर प्रदेश जहां पर दो करोड़ 38 लाख किसान हैं उनमें से कुल 1 करोड़ 87 लाख किसानों को, बिहार जहां एक करोड़ 64 लाख किसान हैं उनमें से 53 लाख किसानो को, महाराष्ट्र जहां एक करोड़ 52 लाख किसान हैं वहां 84 लाख किसानो को, मध्य प्रदेश जहां एक करोड़ किसान हैं वहां 55 लाख किसानों को, कर्नाटका 80 लाख किसान हैं वहां सिर्फ 49 लाख किसानों को, आंध्र प्रदेश जहां 85 लाख किसान है वहां 51 लाख किसानों को, तमिलनाडू जहां 79लाख किसान हैं वहां सिर्फ 35 लाख किसानों को ही इसका का लाभ मिला। उपरोक्त राज्यों में देश के 62% किसान रहते हैं। देश में कुल किसानों में से करीब 87% सीमांत किसान हैं अतः केंद्र सरकार के आंकड़ों के अनुसार भी एक बड़ी संख्या में किसान इस योजना का लाभ लेने से वंचित रह गए।
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार ग्रामीण अंचल में खेती हर मजदूरों की संख्या 14 करोड़ 43 लाख है। एनएसओ के डाटा के अनुसार वर्ष 2012 से 2018 के मध्य देश के ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी बढ़ी है। इन 6 वर्षों में देश में तीन करोड़ लोग और गरीबी की रेखा के नीचे चले गए हैं। बड़े राज्यों में बिहार झारखंड और उड़ीसा में गरीबों की संख्या में इन 6 वर्षों में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी हुई। हालांकि बंगाल तमिलनाडु और गुजरात में गरीबों की संख्या में कमी दर्ज की गई। इससे स्पष्ट होता है कि खेतीहर मजदूरों की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई होगी। यदि देश का किसान खुशहाल नहीं होगा तो खेतिहर मजदूर भी परेशानी के हालात में रहेगा। सरकार को इस बात पर विचार करके तुरंत ही एक ऐसी कार्य योजना बनानी चाहिए जिससे ग्रामीण क्षेत्र में रहने वालों की आमदनी बढ़े और साथ ही खरीफ की फसल की बुवाई भी बेहतर तरीके से हो जाए। अगर सरकार ने ग्रामीण क्षेत्र के लिए बेहतर योजना नहीं बनाई तो शायद देश मे खरीफ की फसल के उत्पादन में गिरावट दर्ज हो सकती है।
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश की कुल जनसंख्या का 68.84% हिस्सा ग्रामीण अंचल में रहता है। देश के कुल सकल मूल्य वर्धित (जीवीए) मे खेती,वन्य उपज और मछली उद्योग से सिर्फ 16.5% का योगदान आता है। देश के कुल उपलब्ध रोजगार में से 43% रोजगार कृषि क्षेत्र से आता है। अतः कोविड-19 वायरस के संक्रमण के फैलने के पश्चात सरकार को विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्र पर ध्यान देना होगा। सरकार इन 7 मोर्चो पर अपनी रणनीति बनाकर ग्रामीण क्षेत्र को आर्थिक रूप से उभर सकती है। कृषि केंद्र एवं राज्य दोनों के अधिकार क्षेत्र में आता है अतः केंद्र सरकार को तुरंत सभी प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों को और केंद्रीय कृषि मंत्री एफसीआई सेंट्रल वेयरहाउसिंग कॉरपोरेशन और ट्रांसपोर्ट विभाग को मिलाकर एक कार्य योजना बल बनाना चाहिए।
1) रबी की फसल की बिक्री एवं खरीफ की फसल को बोने की तैयारी:-
देश में रबी की फसल पकी खड़ी है और लॉक डाउन की वजह से किसान अपनी फसल काटने और बेचने को लेकर बेबस है। अतः सरकार को तुरंत इस बात को ध्यान में रखते हुए खेती के उपकरण आदि की मरम्मत के लिए तुरंत ही किसानों को परमिट जारी करने चाहिए। लॉक डाउन हटने के बाद भी संक्रमण फैलने का खतरा बना रहेगा इसलिए व्यक्ति को व्यक्ति से दूरी बनाए रखनी होगी। अतः सरकार को राज्यों में उपलब्ध भू अभिलेखों एवं अन्य सूचनाओं के आधार पर और संचार साधनों का बेहतर इस्तेमाल करके किसानों को रबी की फसल बेचने हेतु संपर्क करना चाहिए। किसानों की एक संख्या को दिन वार समयआवंटित किया जाएं और क्रय केंद्रों पर जाने की सूचना दी जानी चाहिए। इससे क्रय केंद्रों पर भीड़ भी नहीं लगेगी और संक्रमण फैलने का खतरा भी कम होगा। जिस दिन किसान अपनी फसल बेचे उसी दिन उसको उसके खाते में भुगतान मिलना चाहिए।
प्रदेशों के मुख्यमंत्री को विश्वास में लेकर केंद्र सरकार को तुरंत देश के जितने भी कृषि उत्पादों का व्यापार करने वाले आढ़ती है उनको इस बात के लिए स्पष्ट निर्देश जारी कर देने चाहिए कि रबी की फसल की सारी खरीदी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर करनी होगी। इससे किसान बिना किसी झिझक और डर के अपनी फसल को बेच पाएगा।
रबी की फसल का निस्तारण करने के पश्चात किसान को तुरंत ही खरीफ की फसल बोने की तैयारी करनी होगी। इसके लिए सरकार को मौसम विज्ञानियों और कृषि विशेषज्ञों के ज्ञान एवं सूचनाओं का सहारा लेकर देश के किसानों को राह दिखानी होगी। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बाजारों में किन कृषि उत्पादों की मांग बढ़ सकती है उसके अनुसार ही किसानों को खरीफ की उसी फसल को बोने के लिए उत्साहित करना होगा साथ ही नगदी फसल को बोने के साथ-साथ खाद्य फसलों को बोने के लिए भी प्रोत्साहित करना होगा। आने वाले समय में देश में एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खाद्य फसलों की मांग बढ़ सकती है।
2) डीजल के दामों में कटौती :-
केंद्र सरकार को तुरंत ही डीजल के दामों में कमी किसानों को रहात देनी चाहिए। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल के दामों में गिरावट आने से सरकार को राहत मिली है। कच्चे तेल के दामों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कमी आने की वजह से सरकार को चालू खाता घाटे में (करंट अकाउंट डिफिसिट) और बजटीय घाटे में कमी आएगी। प्रत्येक किसान को उसकी जरूरत के अनुसार परमिट जारी किए जा सकते हैं, जिससे कि वह किसी भी पेट्रोल/ डीजल पंप से अपने लिए तेल ले सके। इससे किसान अपनी रबी की फसल को बेचने की पूरी तैयारी कर सकता है और खरीफ की फसल को बोने के लिए भी अपना कार्य शुरू कर सकता है। केंद्र सरकार केंद्रीय उत्पाद शुल्क में तो कटौती करे ही साथ ही राज्यों को इस बात के लिए उत्साहित कर सकती है कि राज्यों को डीजल की बिक्री से मिलने वाले करो का एक बड़ा भाग केंद्र सरकार वहन करेगी।
3) स्वास्थ्य शिक्षा के क्षेत्र में राहत:-
केंद्र एवं राज्यों की सरकारों को ग्रामीण अंचल में रहने वाले सभी नागरिकों को इन दोनों क्षेत्रों में पूरी राहत देनी चाहिए। एक तरफ जहां ग्रामीण सरकारी विद्यालयों में इस लाँक डाउन की वजह से मिड डे मील मिलने में भारी दिक्कत हो गई है वहीं दूसरी तरफ परिवहन व्यवस्थाओं के चरमरा जाने की वजह से सार्वजनिक वितरण प्रणाली की दुकानों पर राशन उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में कुपोषण बढ़ेगा, जिसकी वजह से लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ेगा। स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज के लिए ग्रामीणों को अपनी आमदनी का एक बड़ा हिस्सा खर्च करना पड़ेगा जिसकी वजह से ग्रामीण क्षेत्र में गरीबी बढ़ेगी जिससे संकट और गहरा जाएगा। सरकार को तुरंत ही देश में जितने भी निजी अस्पताल है उनको इस बात के लिए निर्देशित करना होगा कि ग्रामीण अंचल में रहने वाले सभी नागरिकों का इलाज चाहे वह कोविड-19 से संक्रमित हो या अन्य किसी बीमारी से आगामी एक वर्ष तक आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत बिल्कुल निशुल्क होगा। इस बीमा राशि के प्रीमियम का भुगतान को सरकार को तुरंत करना चाहिए। हाल ही में स्पेन ने अपने देश में निजी अस्पतालों का राष्ट्रीयकरण करने का कार्य किया है। ग्रामीण अंचल की वोटर लिस्ट, पटवारी का रिकॉर्ड सॉइल हेल्थ कार्ड और राजस्व अभिलेखों की जांच करके सभी ग्रामीणों के लिए स्वास्थ सुविधा हेतु कार्ड बना देना चाहिए।
शिक्षा के क्षेत्र में सरकार को मिड डे मील योजना को बेहतर बना कर जिसमें पोषक तत्वों पर जोर, निजी खाद्य निर्माता कंपनियों के द्वारा ब्लॉक स्तर पर गांवों को गोद लेने के व्यवस्था जिससे उनके द्वारा निर्मित खाद्य सामग्री वंचित वर्ग के बच्चों को भी मिल पाए और इस योजना में खेतिहर मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी देकर भागीदारी कराई जाए। इस भागीदारी से गांव में लोगों को रोजगार भी मिलेगा और व्यवस्था भी बेहतर होगी। निजी स्कूलों में पढ़ने वाले ग्रामीण बच्चों को सरकार ट्यूशन फीस के अलावा दी जाने वाली अन्य सभी स्कूली फीस के मदो को एक साल तक टालने का प्रस्ताव प्रदेश की सरकारों को निजी स्कूलों के समक्ष रखना चाहिए।
4) सार्वजनिक वितरण प्रणाली :-
भारतीय खाद्य निगम अपने गोदामों में 2.14 करोड़ टन का बफर स्टॉक हमेशा रखता है। देश में खाद्यान्न संकट के समय इस स्टॉक का इस्तेमाल किया जाता है मार्च माह में भारतीय खाद्य निगम के अनुसार इस वक्त उसके गोदामों में 7.76 करोड़ टन खाद्यान्न का भंडारण है। साथ ही नेफेड के अनुसार उसके गोदामों में 22.5 लाख टन दालों का भंडार है। रबी की फसल के बाजार में आने के पश्चात इस स्टॉक में और बढ़ोतरी होगी।
सरकार को ग्रामीण अंचल में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत बफर स्टॉक से ज्यादा अनाज को पूरे देश में बांटना चाहिए। यदि कोई भी किसान, खेतिहर मजदूर या गांव में रहने वाला व्यक्ति अपने आधार कार्ड या राजस्व अभिलेखों के अनुसार अनाज की मांग करता है तो उसको तुरंत ही मिलना चाहिए। इससे भुखमरी की समस्या से बेहतर तरीके से निपटा जा सकता है।
5) पलायन की समस्या एवं मनरेगा :-
कोविड-19 की वजह से देश में हुए लॉक डाउन की वजह से शहरों से गांव की तरफ श्रमिकों का बड़ी संख्या में पलायन हुआ। इस पलायन से ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर और भार पड़ेगा। पलायन करने वाले श्रमिकों एवं अन्य लोगों को सरकार को विश्वास में लेना होगा और लॉक डाऊन खुलने के पश्चात दोबारा से उनको शहरों में जिस रोजगार में वह थे उस रोजगार में पुनर्स्थापित करना होगा।
रोजगार की अनुपलब्धता की वजह से मनरेगा मजदूरों का हाल और भी बुरा है। सरकार को तुरंत ही मनरेगा मजदूरों के बैंक खातों में मजदूरी का भुगतान रोजाना (बिना किसी श्रम के ही) करना चाहिए। लाँकडाउन खुलने के पश्चात ग्रामीण अंचल में विकास की योजनाओं से एवं खेती से भी मनरेगा मजदूरों को जोड़ा जा सकता है। केंद्र सरकार पहले ही वर्ष 2020-21 के बजट में मनरेगा पर खर्च की जाने वाली राशि के मद में में 9502 करोड़ रुपये की कटौती कर चुकी है।
गांव की लोगों की संघर्ष करने की इच्छा शक्ति बेहतर होती है परंतु यह भी सत्य है कि वर्ष 2018 में कृषि क्षेत्र से जुड़े हुए 10349 लोगों ने आत्महत्या की जो कि पूरे देश में हुई आत्महत्याओं का 7.7 प्रतिशत है इनमें जहां 5763 किसान थे वही 4586 खेतिहर मजदूर थे।
सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर में गिरावट, लाँक डाऊन की वजह से रोजगार छिनना, नए रोजगार के अवसरों का उपलब्ध ना होना, आर्थिक तंगी और फसल का समय पर ना बिक पाने की वजह से ग्रामीण क्षेत्र में एक निराशा का माहौल बन जाऐगा, जिसको रोकने की जिम्मेदारी भी सरकारो की होगी।
6) कृषि ऋण एवं ब्याज की मार से मुक्ति :-
क्रेडिट सुईस रिपोर्ट के अनुसार केंद्र सरकार ने पिछले 5 साल में देश के उद्योगपतियों के सात लाख 77 हजार करोड रुपए के कर्ज माफ किए हैं। मानसून के मिजाज और लाँक डाउन की वजह से कृषि क्षेत्र की स्थिति ठीक वैसे ही है जैसे कोढ़ में खाज। कृषि ऋण की वसूली सरकार को कम से कम 6 माह के लिए रोक देनी चाहिए और उस पर किसी प्रकार का भी कोई ब्याज नहीं लगाना चाहिए। इसके साथ ही खरीफ की फसल के लिए किसान जो भी ऋण लेना चाहे उस ऋण पर किसी प्रकार का भी कोई ब्याज ना हो तो बेहतर है।
7) कृषि जिंसों का निर्यात :-
कोरोना संकट की वजह से पूरे विश्व में विशेष रुप से अमेरिका, यूरोप और चीन में चाय, मांस, मसाले चावल और समुद्री खाद्य पदार्थों की मांग में कमी आई है, इसकी वजह से देश का खेती की जिंसों का निर्यात प्रभावित हो रहा है। निर्यात ना होने की वजह से आम और अंगूर के दामों में भी भारी कमी आई है। पिछले 2 वर्षों से खेती की जिंसों के निर्यात में वैसे भी कोई बहुत ज्यादा बढ़ोतरी नहीं हुई है। वर्ष 2017-18 में 38425 बिलीयन डॉलर का और 2018-19 में 38739 बिलियन डॉलर का निर्यात हुआ जोकि वर्ष 2013-14 के 41 बिलियन डॉलर के निर्यात से भी कम है।सरकार को तुरंत ही राष्ट्रीय स्तर पर एक कार्य योजना बल का गठन करना चाहिए जिससे कि उन नए देशों को भी चिन्हित किया जा सके जिनमें कृषि जिंंसों का निर्यात किया जा सके। इसके साथ ही खेती की जिंसों का निर्यात करने वाली सभी कंपनियों को स्थानीय बाजार में अपना माल बेचने की भी छूट होनी चाहिए।
केंद्र एवं राज्यों की सरकारों को तुरंत ही ग्रामीण क्षेत्र को संकट से बचाने के लिए आगे आना चाहिए। सरकारों को इस बात का ध्यान रखना होगा कि किसान के खेत से उपज के उठने से लेकर अंतिम उपभोक्ता तक पहुंचने तक किसी भी प्रकार की कोई दिक्कत ना आए।खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को बढ़ावा देने हेतु केंद्र सरकार को तुरंत ही एक बेहतर पैकेज के साथ आगे आना चाहिए।
देश के सीमांत किसानों,.खेतिहर मजदूरों और मनरेगा मजदूरों को डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर स्कीम के अंतर्गत तुरंत ही राशि भेजी जानी चाहिए। केंद्र सरकार को इस वक्त 1947 में गठित केंद्र सरकार से सीखना चाहिए जिसने देश में प्रतिभाओं का सम्मान करते हुए मंत्रिमंडल से लेकर अन्य सभी नीति निर्मात्री संस्थाओं में प्रतिभावान व्यक्तियों को समायोजित करने का कार्य किया। देश के सभी राजनीतिक दलों, देश में उपलब्ध प्रतिभावान व्यक्तियों जिनमें अर्थशास्त्री, वैज्ञानिक, चिकित्सक, कृषि विज्ञानी, मौसम विज्ञानी, किसानों की विभिन्न संस्थाएं और कृषि क्षेत्र के तकनीकी विशेषज्ञों से संवाद स्थापित करके एक बेहतर नीति के अंतर्गत कार्य करना होगा जिससे कि देश के ग्रामीण क्षेत्रो में रहने वालों के चेहरो पर मुस्कान बनी रहे। यदि सभी सरकारें मिलकर देश के ग्रामीण क्षेत्र को इस संकट से उबार कर ले गई तो भारतवर्ष निश्चित ही खुशहाल होगा।
देश के किसान को इस वक्त भावनात्मक, आर्थिक और वैज्ञानिक सहारे की जरूरत है। किसान को यदि यह सहारा मिला तो वह अपना खून पसीना एक करके देश के खाद्यान्न भंडारों को भरने का काम करेगा क्योंकि, "अन्न है तो टन है बाकी सब सना सन है।"