उत्तर प्रदेश – बिन पैसे कोरोना से जंग
-दिनकर कपूर, अध्यक्ष, वर्कर्स फ्रंट
उत्तर प्रदेश में “एक-एक को खोज के निकाल लेना है” की धमकी भरी घोषणाओं और हर दिन दो जिलों की समीक्षा बैठक करने, रात भर जागकर कोरोना संक्रमण की निगरानी करने के भागीरथी प्रयासों की खबरों के बावजूद सरकार द्वारा कोरोना संक्रमण के कारण लाकडाउन में जबर्दस्त संकट से जूझ रही जनता को राहत पहुंचाने का काम जमीनी स्तर पर बेहद धीमी गति से हो रहा है। पिछले लगभग 13 दिनों से प्रदेश में लाकडाउन की हालत है, जिसके कारण रोज कमाकर खाने वाले ठेका मजदूर, निर्माण मजदूर, मनरेगा मजदूर, घरेलू कामगार महिलाएं, पटरी दुकानदार, ठेला, रिक्शा, ई रिक्शा, टैम्पो, टैक्सी, बुनकर, छोटे मझोले व्यापारी, किसान जैसे तमाम तबके सरकारी इमदाद न मिलने से बेहद बुरी हालत में जिदंगी काट रहे हैं। वह तो भला हो सामाजिक, राजनीतिक कार्यकर्ताओं और नागरिक समाज का जिन्होंने अपने संसाधनों और लोगों से मदद लेकर राहत के कुछ काम किए हैं और लोगों की जिदंगी बचाने के लिए खाना, मास्क आदि की व्यवस्था की है।
इस सम्बंध में जब हमने सोनभद्र के गांवों के दर्जनों प्रधानों, निर्वाचित प्रतिनिधियों और ग्रामीणों से बात की तो सरकारी राहत की लखनऊ में हो रही बड़ी-बड़ी योजनाओं की घोषणाओं की जमीनी हकीकत सामने आयी। दुद्धी तहसील के कई गांवों के प्रधानों ने बताया कि अभी तक उनके खातों में सरकार की तरफ से राहत के लिए एक पैसा भी नहीं आया है। यहां तक कि बाहर से गांवों में आने वाले प्रवासी मजदूरों को स्कूल या पंचायत भवन में रखने की व्यवस्था करने के लिए तो प्रशासन ने कह दिया पर उनका खाना, रहना कैसे होगा? इसका पैसा कहां से आयेगा? कौन यह पैसा देगा? कुछ भी नहीं मालूम। उलटे प्रधानों से प्रशासन ने कहा कि वह गांव वालों से चंदा मांगकर इसकी व्यवस्था करें। ग्राम विकास अधिकारियों से पूछने पर बताया गया कि जिला पंचायत राज अधिकारी, सोनभद्र द्वारा महज पांच हजार रूपए खर्च करने का आदेश दिया गया है, वह पैसा भी अभी आया नहीं है। इसकी वजह साफ है, खुद 23 मार्च को उo प्रo सरकार के प्रमुख सचिव मनोज कुमार सिंह द्वारा सभी डीएम और मुख्य विकास अधिकारियों को दिए गए आदेश में कहा गया है कि प्रथम चरण में प्रत्येक जनपद को 20 लाख रूपए की धनराशि वंचित परिवारों को लाभान्वित करने के लिए आवंटित रहेगी, तदनुसार सभी 75 जनपदों के लिए 15 करोड रूपए राजस्व विभाग द्वारा जिलाधिकारियों को अवमुक्त करने का अनुरोध किया गया है। जिस पर 27 मार्च को रेणुका कुमार, अपर मुख्य सचिव ने 75 जिलों के जिला अधिकारियों के लिए 13 करोड 50 लाख रूपए दिए और दूसरी किश्त के लिए 1 अप्रैल को 215 करोड़ रूपए दिए गए है। जिनमें 14 जिलों को 5 करोड, 21 जिलों को 3 करोड़ व शेष जिलों को 2 करोड़ दिया जा रहा है। जिनमें देश के सर्वाधिक पिछडे जिलों में शामिल सोनभद्र, मिर्जापुर और चंदौली को भी मात्र 2 करोड़ रूपए मिले है। जबकि 4 करोड़ की जनसंख्या वाले केरल ने इस विश्वव्यापी संकट में मदद के लिए 20 हजार करोड़ का राहत पैकेज दिया है। ऐसे में 20 करोड़ की जनसंख्या वाले उत्तर प्रदेश की जनता के साथ सरकार का यह राहत पैकेज क्रूर मज़ाक है।
कल से सरकार ने राहत के लिए खाद्यान्न बांटने का काम शुरू किया है। पूर्वाचंल में एक कहावत है ‘काम बिगाडे तीन- किन्तु, परन्तु, लेकिन’। यही हाल इस खाद्यान्न वितरण का भी है। इस सम्बंध में मुख्यमंत्री, सूचना परिसर, सूचना एवं जन सम्पर्क विभाग द्वारा 24 मार्च 2020 को जारी समाचार में कहा गया कि अधिकारियों को मुख्यमंत्री द्वारा निर्देशित किया गया है कि ‘प्रतिदिन कमाने वालों को एक माह का खाद्यान्न उपलब्ध कराया जाए। इसके अंतर्गत 20 किलो गेहूं तथा 15 किलो चावल दिया जायेगा।’ सरकार ने 30 मार्च 2020 की प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि ‘श्रमिकों को तीन माह का निःशुल्क खाद्यान्न उपलब्ध कराया जायेगा।’ इसी विज्ञप्ति में ग्राम्य विकास मंत्री द्वारा कहा गया कि 88.40 लाख मनरेगा परिवारों की सूची ग्राम पंचायतों के कोटेदारों को खाद्यान्न उपलब्ध कराने के लिए भेज दी गयी है। लेकिन जब सोनभद्र, मिर्जापुर और चंदौली समेत कई जनपदों में लोग खाद्यान्न लेने गए तो उन्हें बताया गया कि मात्र अंतयोदय राशनकार्ड धारको को ही 35 किलो राशन निःशुल्क मिलेगा। यहीं नहीं कोटेदारों को दिए आदेश में कहा गया है कि मनरेगा, निर्माण मजदूर व नगर निकायों में पंजीकृत श्रमिकों को जिनके पास पात्र गृहस्थी का राशन कार्ड होगा उन्हें मात्र 3 किलो गेहूं व 2 किलो चावल प्रति यूनिट निःशुल्क दिया जायेगा। शेष पात्र गृहस्थी परिवारों को पूर्ववर्ती दर पर ही राशन दिया जायेगा। उसमें भी परिवार के हर सदस्य को नहीं बल्कि परिवार के उन्हीं लोगों को राशन दिया जायेगा जो पात्र गृहस्थी परिवारों में सूचीबद्ध हैं, जो कि सरकार की घोषणाओं के विपरीत है। हद तो तब हो गयी कि जब राशन लेने गए म्योरपुर ब्लाक के आरंगपानी गांव के एक मजदूर गोविंद प्रसाद का पुलिस ने मोटर साईकिल के सारे कागजात होने के बावजूद 3000 रूपए का चालान काट दिया। इतना ही नहीं सचिवालय तक में अंगुलियों से कोरोना संक्रमण फैलने की सम्भावना के मद्देनजर कार्ड पंचिंग अर्थात् अगूंठा लगाकर हाजरी लगाने की प्रणाली पर रोक लगा दी गयी है। लेकिन राशन लेने के लिए डीजीटल अंगूठा लगाने की प्रणाली सरकार ने जारी रखी हुई है। परिणामतः राशन दुकानों पर लम्बी लाइने लग रही हैं, कई गांव में नेटवर्क न होने और कई जगह अंगूठा न मिल पाने के कारण लोगों को खाद्यान्न प्राप्त करने में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। कल ही मजदूर किसान मंच ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर इस कठिनाई से अवगत कराते हुए मांग की थी कि इस संकट के समय प्रदेश के हर परिवार को 35 किलो खाद्यान्न घर-घर जाकर निःशुल्क देने और खाद्यान्न के साथ नमक, चीनी, तेल, मसाले, साबुन आदि तमाम आवश्यक खाद्य सामग्री भी देने की सरकार घोषणा करे।
उत्तर प्रदेश में 22 मार्च से ही जारी लाकडाउन में आठ दिनों बाद 30 मार्च को स्वयं मुख्यमंत्री ने लाइव विडीयो कान्फ्रेसिंग करके मनरेगा की 611 करोड़ की बकाया मजदूरी का भुगतान करने की घोषणा की और इस सम्बंध में सोनभद्र समेत पांच जनपदों के पांच मनरेगा मजदूरों से बात भी की। इसकी सच्चाई यह है कि यह मनरेगा मजदूरी नवम्बर माह से बकाया है, जिसके बारे में प्रदेश सरकार ने दो माह पूर्व कहा था कि नियमानुसार 0.5 प्रतिशत ब्याज के साथ इसका भुगतान किया जायेगा। लेकिन भुगतान के समय इसका ध्यान नहीं दिया गया और बिना ब्याज दिए मजदूरी भुगतान की गयी। इसमें भी कई जनपदों से मजदूर बता रहे हैं कि उनके खाते में मजदूरी नहीं आयी है। इस मजदूरी के बारे में स्वयं प्रदेश सरकार ने स्वीकार किया है कि इसके भुगतान के लिए उसने केन्द्र सरकार से अनुरोध किया था पर केन्द्र सरकार द्वारा पैसा देने से मना करने के बाद ग्राम विकास विभाग को बतौर उधार यह पैसा दिया जा रहा है जिसे वापस करना होगा। वैसे भी यह कोई सरकारी इमदाद नहीं है, यह मजदूरों की अपनी मेहनत से कमाई राशि है जिसे नियमतः सरकार को मजदूरी के 15 दिनों के अदंर देना था और यदि यह नहीं हुआ था तो मय ब्याज इसका भुगतान करना चाहिए था जिसे नहीं किया गया।
सरकार द्वारा मनरेगा श्रमिकों, निर्माण श्रमिक व दिहाडी मजदूरों को 1000 रूपए देने की घोषणा भी ऊंट के मुह में जीरा है। इसमें भी सरकार को अपनी जेब से एक पैसा नहीं देना है वास्तव में यह उo प्रo भवन एवं संनिर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड में सेस और पंजीकरण के कारण जमा करोड़ों रूपए से दिया जायेगा। इसको देने के लिए जारी आदेश में कहा गया कि यह उन्हीं मनरेगा श्रमिकों को मिलेगा जो बोर्ड में पंजीकृत होंगे और जिनका नवीनीकरण हुआ होगा। आइए देखें सोनभद्र, मिर्जापुर और चंदौली जनपदों में कितने मजदूर लाभान्वित होंगे। सोनभद्र जनपद में कुल 7 लाख 26 हजार पंजीकृत मनरेगा श्रमिक हैं जिनमें से पिछले पंचवर्षीय में एक दिन भी काम किया हो ऐसे सक्रिय श्रमिक 2 लाख 40 हजार हैं। इनमें से कुछ बोर्ड में भी पंजीकृत हैं. जनपद में इन मनरेगा मजदूरों समेत निर्माण कर्मकार बोर्ड में कुल पंजीकृत श्रमिक हैं 1 लाख 5 हजार जिनमें से महज 22095 श्रमिकों का नवीनीकरण हुआ है और इन्हें ही 1,000 रूपए का लाभ मिलेगा। इसमें भी अभी तक 5044 श्रमिकों को ही लाभ मिल सका है। इसी प्रकार चंदौली जनपद में मनरेगा में पंजीकृत के कुल 4 लाख 80 मनरेगा श्रमिकों में से कुल 13,330 और मिर्जापुर में मनरेगा में पंजीकृत 4 लाख 16 हजार श्रमिकों में से कुल 41,354 श्रमिकों को ही लाभ मिलेगा। दैनिक मजदूरों के लिए असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम 2008 और नगर के पटरी दुकानदारों के लिए बने पथ विक्रेता संरक्षण कानून 2014 को आज तक उत्तर प्रदेश में लागू ही नहीं किया गया है। इस वजह से शहरों में रहने वाले पटरी दुकानदारों, ठेला, रिक्शा, सगडी वाले और असंगठित श्रमिक, घरेलू कामगार महिलाओं का कोई पंजीकरण सरकार के पास नहीं है। ऐसे में 1,000 रूपए की सहायता राशि भी इन्हें मिलना बेहद कठिन है। चंदौली जनपद की चकिया तहसील में एक भी रिक्शा, ठेला वाले और मुसहर, धईकार, घसिया जैसी दलित जाति के झुग्गी झोंपड़ी निवासियों को कोई मदद नहीं मिल पा रही है। कमोवेश यही हालत प्रदेश के अन्य शहरों व कस्बों की भी है।
प्रदेश सरकार ने सभी श्रमिकों को लाकडाउन अवधि में सम्पूर्ण मजदूरी देने का आदेश भी जारी किया और सभी उद्योगों से श्रमिकों की बकाया मजदूरी का भुगतान करने और अग्रिम मजदूरी देने का आग्रह किया है। केन्द्र सरकार के गृह मंत्रालय ने 24 मार्च को जारी अपने आदेश में आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के तहत कोरोना संक्रमण से पैदा हुए संकट को लाया है। इस अधिनियम के तहत दिए आदेश निजी संस्थानों और प्रतिष्ठानों पर भी लागू होते है और आदेशों का अनुपालन न करने पर सरकार कार्यवाही भी कर सकती है। बावजूद इसके सोनभद्र जनपद की अनपरा व ओबरा तापीय परियोजना में कार्यरत ठेका मजदूरों की छः माह से बकाया मजदूरी का भुगतान नहीं किया गया। सोनभद्र जनपद के निजी औद्योगिक प्रतिष्ठानों द्वारा ठेका मजदूरों को लाकडाउन में काम से बैठाने की मजदूरी का भुगतान नहीं किया जा रहा है। हालत इतनी बुरी है कि सभी तरह के परिवहन पर रोक के कारण जो कुछ मजदूर काम पर आ भी रहे हैं उन्हे बीसियों किलोमीटर पैदल या साईकिल से चलकर काम करने आना पड़ रहा है। इस सम्बंध में भेजे गए पत्रों पर भी कोई कार्यवाही नहीं की गयी। एक नजर कारपोरेट घरानों के द्वारा इस संकट की घड़ी में जरूरतमंदों की मदद पर भी डाल लें। सोनभद्र जनपद में आदित्य बिडला समूह के पांच कारखाने हैं जिसमें एशिया का सबसे बडा अल्युमीनियम पैदा करने वाला हिण्डालको भी है। उस समूह द्वारा दुद्धी तहसील के हर गावं में कुल पांच राहत पैकेट दिए गए है। इन पैकेटों में डेढ़ किलो आटा व चावल, एक पाव दाल, एक किलो नमक, चीनी व तेल दिया गया है। आप खुद सोचें कि इतने बड़े औद्योगिक समूह द्वारा दी गयी इस बडी भारी मदद से कितने लोगों का कितने दिन पेट भरेगा? वैसे आश्चर्य नहीं बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार मोदी जी के सबसे प्रिय पूंजीपति गौतम अडानी ने पीएम द्वारा बनाए नए सहायता कोष में मात्र 100 करोड रूपए की ही मदद की है।
उत्तर प्रदेश में सबसे बुरी हालत किसानों, बुनकरों और छोटे मझोले कुटीर उद्योग वालों की है। किसान तो कई जिलों में विगत दिनों हुई ओलावृष्टि, चक्रवात, भीषण वर्षा के कारण बर्बाद हो गए हैं। उनकी आत्महत्याओं की खबरें आ रही हैं। उनकी फसल तैयार है लेकिन उसे काटने पर भी पुलिस द्वारा हमले किए जा रहे हैं। दो दिन पहले गोण्डा के परसपुर में अपनी फसल काटने गए किसानों को पुलिस द्वारा बुरी तरह मारा पीटा गया। किसानों को हारवेस्टर्स लाने, कटाई करवाने के लिए पास तक जारी नहीं हो रहे हैं। इस सम्बन्ध में किसानों/ हार्वेस्टर वालों को पास देने के लिए मुख्यमंत्री को एक पत्र भी लिखा गया है. बुनकर मऊ से लेकर बाराबंकी तक बेहद कठिन हालत में अपनी जिदंगी गुजार रहे हैं। उत्तर प्रदेश जहां का हर जिला अपने कुटीर उद्योग के लिए जाना जाता है. वहां इन उद्योगों में लगे छोटे मझोले व्यापारियों के लिए किसी राहत की कोई भी घोषणा सरकार द्वारा नहीं की गयी है। किसानों व छोटे मझोले व्यापारियों से हर प्रकार की वसूली पर रोक लगाने, उनकी फसल की गांव स्तर पर सरकारी खरीद की गारंटी और उसका तत्काल भुगतान करने और किसानों व छोटे मझोले व्यापारियों के सभी कर्जे व बिजली बिल माफ करने तक के लिए आदेश जारी नहीं हुये है।
प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था की खस्ताहाल हालत किसी से छुपी नहीं है। आक्सीजन के अभाव में गोरखपुर में बच्चों की दर्दनाक मौतों को लोग भूले नहीं हैं। प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री ने विधानसभा में लिखित रूप से स्वीकार किया है कि प्रदेश में सरकारी क्षेत्र में लगभग 600 वेंटिलेटर हैं। निचले स्तर पर स्थापित सरकारी अस्पतालों में कार्यरत डाक्टरों व अन्य स्वास्थ्य कर्मियों के पास पर्याप्त मास्क, दस्ताने, सेनीटाइजर व अन्य जीवनरक्षक साधन नहीं हैं। एम्बुलेंस कर्मचारियों ने पर्याप्त सुरक्षा उपकरण न मिलने और बकाया मजदूरी के भुगतान के लिए हडताल पर जाने की चेतावनी दी हुई है। वी हेकली झिमोमी, सचिव उत्तर प्रदेश ने 2 अप्रैल को जारी आदेश में प्रदेश में कोविड-9 की जांच के लिए कुल सात केन्द्रों को खोलने का आदेश दिया है। इसी आदेश में मात्र 4 सैम्पल प्रतिदिन ट्रिपल लेयर पैकिंग में जांच केन्द्रों को भेजने को कहा है। यह स्थिति बेहद भयावह है और यदि एक बार यह संक्रमण सामाजिक स्तर पर शुरू हो गया तो स्थिति को सम्भाल पाना नामुमकिन होगा। लेकिन सरकार ने अभी तक निजी अस्पतालों का अधिग्रहण कर उनमें मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा देने, कोरोना पीड़ितों की जीवन रक्षा के लिए वेंटिलेटर की व्यवस्था करने और चिकित्सीय कर्मचारियों, सफाई कर्मियों के लिए प्राणरक्षक सुरक्षा उपकरण, आवश्यक जांचों के लिए किसी अतिरिक्त फण्ड देने की कोई घोषणा नहीं की है और न ही उनके लिए विशेष बीमा योजना ही लागू की है.
हालत तब और बुरे हो जा रहे हैं जब बरेली में प्रवासी मजदूरों को केमिकल्स से नहलाया जाता है, बदांयू में मुर्गा बनाकर मेंढक चाल चलाई जाती है और नोएडा से लेकर सोनभद्र तक व्यापारियों, मजदूरों व नागरिकों का बर्बर दमन होता है। इसने पूरी दुनिया में प्रदेश की छवि को बेहद खराब किया है। वास्तव में प्रदेश में कहीं सरकार दिख ही नहीं रही है। हर घण्टे, दो घण्टे में आदेश बदल जा रहे हैं । पूरे प्रदेश को पुलिस स्टेट में तब्दील कर दिया गया है। सरकार के विभिन्न विभागों में आपसी समन्वय नहीं है। निचले स्तर पर कार्यरत सरकारी कर्मी भी परेशान हैं कि हर क्षण बदलते आदेशों में कैसे काम किया जाए। दरअसल देशी- विदेशी कारपोरेट घरानों की सेवा में लगे आरएसएस और उसके राजनीतिक संगठन भारतीय जनता पार्टी की सरकार के पास जनता को इस संकटकालीन परिस्थिती में देने के लिए कुछ नहीं है। यहीं वजह है कि प्रधानमंत्री द्वारा ताली-थाली से लेकर 5 अप्रैल को रात 9 बजे 9 मिनट तक दिए जलाने के मूर्खतापूर्ण आव्हान किए जा रहे है। इनको र्सिफ देश जलाना आता है, सरकार चलाना नहीं। इनका विकल्प एक रेडिकल वैकल्पिक नीतियों पर आधारित लोकतांत्रिक राजनीति ही होगी जो आम नागरिकों की जिदंगी को बचाने के लिए रोजगार, कृषि विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी जरूरतों की व्यवस्था करेगी, कल्याणकारी राज्य का निर्माण करेगी और वैज्ञानिक विचार, लोकतांत्रिक अधिकार व नागरिक बोध को स्थापित करेगी। उम्मीद है आने वाले दिनों में ऐसी राजनीति ही लोगों की जरूरत बनेगी।