फ़ैज़ की नज्म गाने का वक़्त और जगह सही नहीं थे
IIT कानपुर की जाँच समिति ने कहा–छात्रों-टीचरों की काउंसलिंग की जाय
कानपूर: पिछले साल आईआईटी कानपुर कैंपस में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के विरोध में छात्रों द्वारा फैज अहमद फैज की कविता की लाइनें गाना, समय और जगह के हिसाब से सही नहीं था। सीएए विरोधी छात्रों और शिक्षकों के खिलाफ बैठी जांच समिति ने इंतजामिया को दी अपनी रिपोर्ट में यह कहा है। जांच समिति ने इंतजामिया को यह सलाह भी दी कि विरोध करने वाले पांच शिक्षकों और छह छात्रों की काउंसलिंग करानी चाहिए।
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) के विरोध में IIT कानपुर के कुछ छात्रों और शिक्षकों ने बीते साल दिसंबर में ''इन सोलिडैरिटी विद जामिया'' के नाम से रैली निकाली थी। इसमें कवि और शायर फैज़ अहमद फ़ैज की एक कविता की लाइनें गुनगुनाई गई थीं.. ''जब अरज़-ए-खुदा के काबे से, सब बुत उठवाए जाएंगे, हम अहल-ए-सफा मरदूद-ए-हराम, मनसंद पे बिठाए जाएंगे, सब ताज उछाले जाएंगे, सब तख्त गिराए जाएंगे।'' इस पर काफी बवाल मचा था। फैकल्टी के ही लोगों ने आरोप लगाया था कि छात्रों और शिक्षकों का यह कदम धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला है। बवाल ज्यादा बढ़ने पर आईआईटी ने मामले की जांच के लिए एक समिति का गठन किया था। उस पैनल ने अपनी जांच रिपोर्ट में लिखा है कि फैज की शायरी पढ़ना समय और जगह के लिहाज से सही नहीं था। जांच करने वाले पैनल ने यह भी कहा है कि मामले में आरोपी पांच शिक्षकों और छह छात्रों की काउंसलिंग होनी चाहिए।
आईआईटी कानपुर के छात्रों द्वारा जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों के समर्थन में 17 दिसंबर को मशहूर शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की कविता 'हम देखेंगे' गाए जाने के बाद मामले ने तूल पकड़ लिया था। इस प्रकरण में जांच के लिए एक समिति का गठन किया गया था । आईआईटी कानपुर के उपनिदेशक मनिंद्र अग्रवाल ने तब कहा था कि आईआईटी के लगभग 300 छात्रों ने परिसर के भीतर शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया था क्योंकि उन्हें धारा 144 लागू होने के चलते बाहर जाने की इजाजत नहीं थी। प्रदर्शन के दौरान कुछ छात्रों और शिक्षकों ने फ़ैज़ की कविता 'हम देखेंगे' गाई जिसके खिलाफ वासी कांत मिश्रा और 16 अन्य लोगों ने आईआईटी निदेशक के पास लिखित शिकायत दी थी। उनका कहना था कि वीडियो में साफ नजर आ रहा है कि कविता में कुछ दिक्कत वाले शब्द हैं जो हिंदुओं की भावनाओं को प्रभावित कर सकते हैं।