बीमारी से त्रस्त लोगों के लिए कष्टप्रद है इलाज भी !
हमारे देश में मुनाफा खोरी लोगों के खून में मिल गई है | जब भी कोई महामारी फैलाती है सबसे पहले उसका फायदा दवाओं के दुकानदार – निर्माता और वह छोटा बड़ा किरदार जो महामारी से बचने वाले सामान बेचता हो मुनाफा खोरी पर उतर आता है | इस समय बाजार से 26 तरह की दवाइयां जिनमें बुखार के लिए गोलियां और विटामिन शामिल हैं, गायब हो चुकी हैं। इन दवाओं की कीमतें भी बढ़ा दी गई हैं। मास्क तक महंगे दामों में बिक रहे हैं। सैनेटाइजर्स बाजार से गायब हैं |वैसे तो देश भर में हर वर्ष डेंगू, स्वाइन फ्लू जैसी मौसमी बीमारियां फैलती हैं, जब भी सरकारी अस्पतालों में रोगियों की भीड़ लगती है तो प्राइवेट अस्पतालों वाले इलाज को महंगा कर देते हैं।अनाप-शनाप टेस्ट लिखे जाते हैं। व्यक्ति को डेंगू हो या न हो उसे आतंकित कर लूटा जाता है। अस्पताल और लैब वाले चांदी कूटते हैं। बाजार से साधारण बुखार की दवाइयों का गायब होना समाज का वह रूप प्रदर्शित करता है जिसमें नागरिकों की जान की कोई परवाह नहीं, इंसान की जान भले ही चली जाए, इसे तो केवल अपनी कमाई की चिंता है। कैमिस्टों की दुकानों में दवाइयों का भंडार है भी तो गोलियों का एक-एक पत्ता महंगे दामों पर बेचा जा रहा है।
यह सही है कि दवाएं बनाने के लिए काफी कच्चा माल चीन से आता है जो अब बंद हो चुका है। दवा उद्योग हो या भारत का कोई और उद्योग उसे तो चीन से आने वाले सामान का विकल्प मेक इन इंडिया के तहत तैयार करना चाहिए। इसका फायदा यह होगा कि बहुत सा छोटा-मोटा सामान भारत में ही बनेगा और इससे लघु एवं कुटीर उद्योगों का विकास हो सकता है। अनेक वस्तुओं का उत्पादन बढ़ सकता है और निर्यात के अवसरों का मौका भी मिल सकता है।मुसीबत में भी मुनाफाखोरी का खेल कुछ दिनों तक ही चल सकता है। भारतीय उद्योगों को दीर्घकालीन रणनीति पर काम करना चाहिए। बाजार पहले ही सहमा पड़ा है। चीन से आयात में कमी आई है जिससे भारत का दवा उद्योग, वाहन उद्योग, स्टील उद्योग, खिलौना कारोबार, इलैक्ट्रानिक्स, बिजली के उपकरण, केमिकल, हीरा कारोबार आदि में मुश्किलें बढ़ गई हैं।
भारत में दूसरी बड़ी चुनौती यह है कि किसी भी आपदा में लोग संवेदनशील ढंग से प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करते। कुछ भी हो जाए अफरातफरी का माहौल पैदा हो जाता है। ऐसे माहौल में लोग आवश्यक वस्तुओं की खरीददारी के लिए बाजारों की तरफ दौड़ने लग जाते हैं। ऐसी स्थिति में वस्तुओं का भंडारण शुरू हो जाता है और बाजार में कृत्रिम अभाव पैदा हो जाता है।सबसे बड़ी समस्या सोशल मीडिया भी है जो संकट की स्थिति में कई तरह की अफवाहें फैलाने के साथ कोरोना वायरस से बचने के लिए दवाएं भी सुझाता है। यह सही है कि कोरोना वायरस के प्रति लोगों को जागरूक किया जाना चाहिए लेकिन बेवजह भय का माहौल पैदा किया जाना भी ठीक नहीं है। 2003 में सार्स वायरस ने पूरी दुनिया में आतंक मचा रखा था, लेकिन भारत ने उस वायरस को घुसने नहीं दिया था।
किसी भी महामारी में यह जरूरी है कि पूरी सावधानी बरती जाए। बीमारी से बचने के लिए परहेज ही अच्छा होता है। लोगों को स्वस्थ रहने के लिए स्वच्छता और अन्य उपायों पर ज्यादा ध्यान देना होगा। कोरोना वायरस का खतरा अनुमान से ज्यादा है। इसलिए जरूरी एहतियातन प्रबंध किए जाएं। अभी तक कोरोना वायरस का कोई उपचार सामने नहीं आया है।कोरोना वायरस को हराने के लिए लोगों को घबराने की बजाय खुद भी उपाय करने होंगे। सरकार द्वारा जारी एडवाइजरी का अनुसरण करना होगा। सबसे ज्यादा जरूरी है कि दुनयाभिर के देशों को आपसी मतभेद भुलाकर वायरस की काट निकालें क्योंकि 26 देश इससे प्रभावित हो चुके हैं और इसके संक्रमण का प्रभाव हर क्षेत्र पर पड़ रहा है। बाजार, अर्थव्यवस्था, उद्योग और नागरिक इससे प्रभावित हो रहे हैं।
अशोक भाटिया,
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