एक्सपायरी दवा का मतलब दवा की क्षमता शून्य हो जाना नहीं: डीके तिवारी
एमिटी ‘‘ड्रग रिपरपजिंगः रिइंन्वेंट, रिसायकिल एण्ड रियूज’’ पर राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन
लखनऊ: दवाओं का पुनः उपयोग एवं पुनर्चक्रण यानि रियूज और रिसायकिल फार्मेसी के क्षेत्र में नयी तकनीकि हैं। इनसे अंर्तगत ऐसी दवाएं जिनका उपयोग किन्हीं कारणों से नहीं हो पाया है, या उपयोग की तय समयावधि पूरी हो चुकी है, विशेषज्ञ संस्थानों के जरिए उसे दोबारा जरूरतमंदों तक पहुचाना आज के समय में एक नया विचार है। यहां यह बात जानने योग्य है कि, एक्सपायरी दवा का मतलब यह नहीं कि उक्त तिथि के बाद दवा की क्षमता शून्य हो जाएगी। एक्सपायरी का अर्थ है कि, निश्चित तिथि के बाद दवा द्वारा अपेक्षित परिणाम मिलने की गारंटी नहीं होती। अधिकृत संस्थानों द्वारा इस तरह की दवाओं को पुनर्वैधीकरण कर उपयोग में लया जा सकता है।
उक्त विचार खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन, उत्तर प्रदेश सरकार के सहायक आयुक्त, औषधि डीके तिवारी ने एमिटी इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मेसी, एमिटी विश्वविद्यालय लखनऊ परिसर द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में बतौर मुख्य अतिथि व्यक्त किए।
‘‘ड्रग रिपरपजिंगः रिइंन्वेंट, रिसायकिल एण्ड रियूज’’ विषय पर आयोजित इस राष्ट्रीय सम्मेलन में बोलते हुए श्री तिवारी ने कहा कि, ड्रग रिपरपजिंग की परिकल्पना भले ही मुश्किल हो पर असंभव नहीं। उन्होने कहा कि कानून की निगाह में हर दवा को एक विशिष्टि उद्देश्य के लिए मंजूरी दी जाती है। उसमें किसी भी परिवर्तन के लिए निर्माता को नए सिरे से अनुमति लेनी होती है। यदि दवा की रिपरपजिंग लोकहित में और परिणामकारी हो तो कानून में कुछ हद तक परिवर्तन किए जा सकते हैं।
इसके पूर्व मुख्य अतिथि डीके तिवारी, प्रति कुलपति एमिटी लखनऊ परिसर डा. सुनील धनेश्वर, डीन रिसर्च, विज्ञान एवं तकनीकि, एमिटी विवि. लखनऊ डा. कमर रहमान, सीएसआईआर, राष्ट्रीय रसायन प्रयोगशाला, पुने डा. सैयद जी. दस्तगार, सह प्रति कुलपति एमिटी विवि लखनऊ विंग कमांडर डा. अनिल तिवारी एवं निदेशिका एमिटी इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मेसी डा. सुनीला धनेश्वर ने दीप प्रज्जवलित कर सम्मेलन का शुभारम्भ किया।
अतिथियों का स्वागत करते हुए डा. सुनीला धनेश्वर ने कहा कि, इस सम्मेलन का उद्ेश्य उपलब्ध दवाओं के पुनः उपयोग और पुनर्चक्रण की संभावनाओं को तलाशना है।
डा. कमर रहमान नें नैनों टैक्नॉलाजी के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि, ड्रग रिपरपजिंग के लिए नैनों तकनीकि का महत्वपूर्ण रोल हो सकता है। आज भी नैनों टैक्नॉलाजी दवाओं के दुष्प्रभावों को कम करने और अधिकतम परिणाम प्राप्त करने के लिए अपना योगदान दे रही है। इसके जरिए दवा को सीधे शरीर के उस अंग तक पहुंचाया जा सकता है जहां इसकी आवश्यकता हो।
प्रति कुलपति डा. सुनील धनेश्वर ने कहा कि, आज नई दवा की खोज करना अत्याधिक मुश्किल है। करोना वायरस और सुपरबग जैसी समस्याओं का अभी तक कोई प्रभावी इलाज नहीं मिल सका है। ऐसे में उपलब्ध दवाओं के नये उपयोग तलाश करना आवश्यक हो गया है।
सम्मेलन के दौरान शोधपत्रों के संकलन की सीडी का विमोचन भी किया गया। इस सम्मेलन में देश के महत्वपूर्ण फार्मेसी संस्थानों से आए प्रतिनिधि, शोधार्थी और वैज्ञानिकों सहित 200 से भी अधिक प्रतिभागी हिस्सा ले रहे हैं।