बुद्ध की महाकरूणा से पूरित है महादेवी का रचना संसार- डा. दिविक रमेश
महादेवी वर्मा के गद्य चिंतन पर संगोष्ठी का आयोजन
लखनऊ: रोशनी अपने लिए नहीं दुसरों के लिए होनी चाहिए इस दर्शन पा आधारित महीयसी महादेवी वर्मा जी की संपूर्ण रचनाकर्म बुद्ध की महारूणा और स्त्रीविमर्श के यथार्थ की अभिव्यक्ति है। नगण्य का महिमामण्डन उनके गद्य के चरित्रों के केन्द्र में परिलक्षित होता है।
उक्त विचार स्थापित साहित्यकार एवं आलोचक डा. दिविक रमेश ने महीयसी महादेवी वर्मा के गद्य चिंतन विषय पर आयोजित विचार संगोष्ठी एवं काव्य गोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
संगोष्ठी का आयोजन साहित्य, कला एवं भाषा को सर्मपित संस्था आकाशगंगा द्वारा किया गया था। वाल्मीकि रंगशाला प्रेक्षागृह में आयोजित इस कार्यक्रम में बोलते हुए डा. ओम निश्चल ने कहा कि, महादेवी जी के साहित्य में उनके जीवन अनुभव का सार है। वास्तविक दुखों की अनुभूति जोकि उन्हें उनके संपूर्ण जीव जगत से जुडाव के कारण हुआ उनके गद्य और काव्य दोनों में परिलक्षित होता है।
उन्होंने कहा कि, महादेवी जी के रचना संसार को समझने का प्रयास उन्हीं दुखों और उससे उपजी करूणा को समझने का प्रयास है। उनके गध और काव्य एक दूसरे के पूरक के रूप में करूणा का मूर्त रूप गढ़ते नजर आते हैं।
इससे पूर्व संगोष्ठी का दीप प्रज्जवलित कर शुभारम्भ किया गया। इस अवसर पर कार्यक्रम के अध्यक्ष डा. रवि शंकर पाण्डेय, मुख्य वक्ता डा ओम निश्चल, वक्ता प्रो. अलका पाण्डेय, संस्था की अध्यक्षा शीला पाण्डेय, उपाध्यक्ष अनिल मिश्र और मंत्री डा. राधा शर्मा, बाल साहित्यकार बंधु कुशावर्ती, दिनेश अवस्थी, एवं साहित्यकार विजय राय उपस्थित रहे।
शीला पाण्डेय ने सभी अतिथियों का पुष्पगुच्छ देकर स्वागत करते हुए महीयसी महादेवी वर्मा के जीवन पर प्रकाश डाला।
अपने वक्तव्य में प्रो. अलका पांडे ने विस्तार से महादेवी वर्मा के रचना संसार के प्रत्येक पहलू को उजागर किया। उन्होंने कहा कि, महादेवी वर्मा न केवल इहलौकिक जगत के बारे में अपितु पारलौकिक जीवन के बारे में भी पर्याप्त सजग होकर लेखन करती थीं। महादेवी बाल्यावस्था से ही भिक्षुणी बनने के लिए लालायित रहती थीं। उनके जीवन पर महात्मा बु़द्ध और महात्मा गांधी का प्रभाव स्पष्ट दिखता है। प्रो अलका कहती हैं कि महादेवी जी के जीवन में साधना उनका स्वाभाव और सत्य उनका चरित्र थ।
डा. ओम निश्चल ने कहा कि, महादेवी जी के काव्य को साहित्य जगत में स्वीकृति तो मिली परन्तु जिस तरह की करूणा और पीड़ाा के साथ वा काव्य रच रहीं थी वह कोई ठोस निष्कर्ष पर नहीं पहुचता है। अपने गद्य में भी वो जीवन में मिले दुखों की प्राण प्रतिष्ठा करती हुई मिलती हैं। उन्होने कहा कि, महादेवी की रचनाओं में जीवित जागृत समाज के तमाम भेदभाव उजागर होते हैं। अच्छे साहित्य के मानदंड और ध्येय किसी लाचार के आंसू हमारे भाल पर रखना की उक्ति उनपर सही साबित होती है।
कर्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डा. रवि शंकर पाण्डेय ने कहा कविता वही है जिसमें करूणा हो और करूण जनित प्रतिरोध हो। स्त्री विमर्श और महिला सशक्तीकरण को महादेवी वर्मा के रचना संसार में प्रमुख रूप से देख जा सकता है। उनके गद्य और काव्य दोनों में पीड़ा करूणा और प्रतिरोध स्पष्ट रूप से अपना प्रभाव छोड़ते हैं।
संगाष्ेठी के उपरान्त काव्य गोष्ठी का आयोजन हुआ जिसमें डा. विश्वभूषण मिश्र, डा. रविशंकर पाण्डेय, डा. हरिओम, डा. दिविक रमेश, डा. आम निश्चल, डा. सुरेश, सुश्री मालविका हरिओम, एवं जय चक्रवर्ती ने अपना काव्य पाठ किया।