सस्ता व त्वरित न्याय उपलब्ध कराना एक सभ्य समाज का बुनियादी कर्तव्य
अमलतास एवं पैरवी के तत्वाधान में कानूनी सेवाओं और न्याय तक पहुंच विषय पर बैठक का आयोजन
लखनऊ: सामाजिक संस्था अमलतास एवं पैरवी के तत्वाधान में कानूनी सेवाओं और न्याय तक पहुंच विषय पर गोमती होटल, लखनऊ में एक परामर्श बैठक किया गया। जिसमें कानूनी सेवाओं और न्याय तक लोगों की असान और सरलतम पहुंच कैसे सुनिश्चित हो, इस पर व्यापक चर्चा की गई। आजादी के बाद जब भारत का संविधान लागू किया गया, जिसमे सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के एक समान अधिकार प्रदान किये गए। अनुच्छेद 14 में विधि के समक्ष समता का अधिकार दिया गया, जिसके अनुसार राज्य सभी व्यक्तियों के लिए एक समान कानून बनाएगा तथा उन पर एक समान लागू करेगा। लेकिन भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में जहाँ अमीरी व गरीबी की एक चौड़ी खाई है, वहां उक्त अधिकार सभी को एक समान उपलब्ध कराने के लिए हमारे सामने एक कठिन चुनौती है। हमारी न्याय प्रणाली के सामने सस्ता व त्वरित न्याय सभी को उपलब्ध कराना एक बड़ी समस्या है। हमारे देश में आज भी अनुसूचित जाति, अनुसूचित जन जाति व अन्य गरीब समुदाय के लिए न्याय पाना बहुत ही मुश्किल भरा काम है। जब हमारे न्यायालयों के समक्ष मुकदमों का अम्बार लगा हो, ऐसी स्थिति में जो लोग निरक्षर और निर्धन है या कमजोर तबके से ताल्लुक रखते है, उनको सस्ता व त्वरित न्याय उपलब्ध कराना एक सभ्य समाज का बुनियादी कर्तव्य है।
एडवोकेट वीरेन्द्र कुमार त्रिपाठी ने बताया कि सभी नागरिकों को न्याय मिल सके, आर्थिक विपन्नता के चलते या किसी अन्य अयोग्यता के कारण कोई नागरिक न्याय पाने से वंचित न रह जाये, इसलिए ज़रूरी है कि विधिक सेवा प्राधिकरण और सशक्त हो।
एडवोकेट परमानन्द प्रसाद (पैनल एडवोकेट, डालसा) ने कहा कि 1976 में भारत के संविधान के 42 वें संविधान संशोधन द्वारा संविधान के अनुच्छेद 39 क में यह व्यवस्था की गई कि राज्य ऐसी व्यवस्था बनाएगा, जिससे कोई नागरिक नागरिक न्याय पाने से वंचित न रह जाये। संसद ने अपने इसी दायित्व को निभाने के लिए विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987 पारित किया। यह अधिनियम 9 नवम्बर 1995 को लागू हुआ, जिसके तहत गरीबों को मुफ्त कानूनी सहायता देने व समाज में विधिक जागरुकता ला कर उन्हें सशक्त बनाने का प्रयास किया जा रहा है। जिसके तहत विभिन्न स्तरों पर विधिक सेवा प्राधिकरण का गठन किया गया है। उक्त अधिनियम की धारा 12 में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति जो निम्न श्रेणी में आता है, उसे मुफ्त कानूनी सहायता व निःशुल्क वकील मुहैया कराया जायेगा।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए दीनबन्धु वत्स ने कहा कि इस परामर्श का उद्देश्य न्याय मिलने में आ रही वास्तविक बाधाओं की पहचान करना है और इन बाधाओं से मुक्त होने के तरीके और कानूनी सहायता प्रदान करने और कानूनी सहायता संस्थानों को मजबूत बनाने के लिए रणनीतियों और सुधारों पर ध्यान केंद्रित करना है। हमने डीएलएसए, लखनऊ के प्रभाव मूल्यांकन पर एक संक्षिप्त अध्ययन भी किया है, जिसमें न्याय प्रदान करने का तंत्र, लोगों की प्रतिक्रियाओं और चुनौतियों पर बात की गई है।
परामर्श बैठक में मुख्यरूप से वकील, सामाजिक कार्यकर्ता, मानवाधिकार कार्यकर्ता, कानूनी सहायता सेवाओं से जुड़े लोग, शिक्षाविद और काननू के छात्र शामिल हुए।
इस अवसर शिक्षाविद रमाकांत राय,राम मनोहर लोहिया विश्वविद्यालय लखनऊ के प्रो एडीआर सिंह, डाँ सतीश श्रीवास्तव, मंजूर अहमद,ज्योति सिंह, मंदाकिनी राय, आशा ज्योति केन्द्र की अर्चना सिह सहित अन्य लोगों ने प्रतिभाग किया।