सामना में इंदिरा गाँधी की तारीफ, लिखा–पाकिस्तान के टुकड़े कर विभाजन का बदला लिया
नई दिल्ली: शिवसेना ने शुक्रवार को कहा कि उसने कभी भी राजनीतिक फायदे के लिए छत्रपति शिवाजी महाराज या दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का नाम नहीं लिया।
पार्टी ने अपने मुखपत्र सामना के संपादकीय में गैंगस्टर करीम लाला के बारे में लिखा था कि वह एक वक्त पठान समुदाय से जुड़े एक संगठन का प्रमुख था और वह सीमांत गांधी कहे जाने वाले खान अब्दुल गफ्फार खान से प्रेरित था।
शिवसेना ने कहा कि उन्होंने हमेशा इंदिरा गांधी का सम्मान किया है। जब भी उनकी छवि खराब करने के प्रयास हुए तब शिवसेना ने एक ढाल की तरह काम किया। उन्होंने कहा, ‘इंदिरा जी शक्तिशाली नेता थीं। उन्होंने पाकिस्तान के टुकड़े करके विभाजन का बदला लिया।’
अखबार ने इस बात पर हैरानी जताई कि जो इंदिरा गांधी की स्मृतियों को ही स्थायी रूप से मिटा देना चाहते थे अब उन्हें उनकी छवि की चिंता सता रही है। यह संपादकीय सामना के कार्यकारी संपादक संजय राउत के विवादित बयान की पृष्ठभूमि में लिखा गया।
राउत ने बुधवार को पुणे में कहा था कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जब भी मुंबई आती थीं वह अंडरवर्ल्ड डॉन करीम लाला से मुलाकात करती थीं। कांग्रेस ने उनके इस बयान की काफी आलोचना की थी। बृहस्पतिवार को उन्होंने अपना बयान वापस ले लिया था।
राउत की टिप्पणी को लेकर उठे विवाद के बीच महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस ने सवाल उठाया कि क्या कांग्रेस को ‘‘मुम्बई के अंडरवर्ल्ड से पैसा मिलता था?’’। भाजपा नेता देवेन्द्र फड़नवीस ने यह सवाल भी किया कि क्या (उस समय) यह राज्य में ‘‘राजनीति के अपराधीकरण’’ की शुरुआत थी और क्या कांग्रेस ने मुम्बई में हमला करने वालों का ‘साथ’ दिया था।
एक अन्य विवादित बयान देते हुए राउत ने भाजपा नेता उदयनराजे भोंसले से यह सबूत देने को कहा था कि वह छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज हैं। संपादकीय में कहा गया कि जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी, वह किससे मिलती थी यह विवाद का मुद्दा नहीं हो सकता।
एक प्रधानमंत्री के तौर पर अलगाववादियों से भी बात करनी पड़ सकती है। इस तरह की बातचीत हाल के दिनों में भी हुई थी। शिवसेना ने कहा, ‘‘भाजपा के पास कोई विशेष काम न होने के कारण वे अब वे पुराने मुद्दे उठाने लगे हैं। राजनीति में कौन कब किससे मिलेगा और मिलने की परिस्थिति बन जाएगी, ये नहीं कहा जा सकता। उन्होंने कहा,‘‘ऐसा नहीं होता तो अलगाववादियों के प्रति नरम रुख रखने वाली महबूबा मुफ्ती के साथ कोई सरकार नहीं बनाता।’’