संस्कृति विवि में शिक्षकों ने जाने पढ़ाने के प्रभावी तरीके
मथुरा। संस्कृति विवि ने हर वर्ष की तरह इस बार भी अपने यहां फैकल्टी डवलपमेंट कार्यक्रम आयोजित किया। कार्यक्रम में जिले के माध्यमिक कालेजों के शिक्षकों को आमंत्रित किया गया। शिक्षण कार्य के उत्तरोत्तर विकास के उद्देश्य से आयोजित इस कार्यक्रम में विशेषज्ञों ने शिक्षकों को पढ़ाने के उन मनोवैज्ञानिक तरीकों से अवगत कराया जिससे शिक्षण कार्य को और प्रभावी बनाया जा सके।
कार्यक्रम का शुभारंभ सरस्वती मां की प्रतिमा के माल्यार्पण और प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन से हुआ। कार्यक्रम में विषय की आवश्यकता और उपयोगिता पर विश्वविद्यालय के कुलपति डा. राणा सिंह ने विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होने स्क्रीन पर प्रख्यात प्राथमिक शिक्षिका ममता अंकित के यू ट्यूब वीडियो से उनके बच्चों को पढ़ाने के प्रभावशाली तरीके से शिक्षकों को अवगत कराया। डा. राणा ने बताया कि विभिन्न सर्वेक्षणों से यह सामने आया है कि किताब पढ़कर पढ़े हुए का सिर्फ दस प्रतिशत ही याद रहता है, कक्षा में शिक्षकों का लेक्चर सुनकर बच्चे पढ़ाए हुए का सिर्फ 20 प्रतिशत ही याद रख पाते हैं। पाता है। लेकिन गतिविधियां के माध्यम से जब बच्चों को कुछ सिखाया जाता है तो उसे बच्चे कभी भूलते नहीं हैं। पढ़ाने का यह तरीका बहुत कारगर है।
एक्सीलेटर कंपनी से जुड़े इंजीनियर और एमबीए सौरभ ने बताया कि जो पढ़ाई हमने पढ़ी थी, उसमें और आज की पढ़ाई में जमीन-आसमान का अंतर आ चुका है, लेकिन बहुत से स्कूलों में पढ़ाने का तरीका आज भी वही है। उन्होंने कहा कि शिक्षकों को बच्चों की रुचि को समझने का प्रयास करना चाहिए। उन्हें उसी पढ़ाई के लिए प्रेरित करना चाहिए जो वह अच्छी तरह से पढ़ते हैं। सौरभ ने कहा कि बहुत से बच्चे बहुत से विषय इसलिए नहीं पढ़ते कि वे ये समझते हैं कि जिस पढ़ाई को वे पढ़ रहे हैं वो उनके किसी काम नहीं आने वाली, जबकि ऐसा होता नहीं। पढ़ाई हमेशा काम आती है, किसी न किसी रूप में। अक्सर इंटर की कक्षा के बच्चों को पता ही नहीं होता वे पढ़ने के लिए क्या विषय चुनें। शिक्षक इस मामले में गंभीरता बरतें तो बच्चे सही दिशा में और अपने लिए सही पढ़ाई का चयन कर पाएंगे।
राजपाला फाउंडेशन के फाउंडर और मनोवैज्ञानिक डा. सतीश कौशिक ने शिक्षकों से लंबी बात की। उन्होंने कहा कि शिक्षकों को अपने विद्यार्थियों के बारे में बारीक जानकारी हासिल करनी चाहिए, तभी वे उनको अच्छी तरह से समझाने में कामयाब हो पाएंगे। पढ़ाऩे से पहले शिक्षकों को यह समझना चाहिए वे किसे पढ़ा रहे हैं। इसके लिए बच्चों की च्वाइस, रिएक्शन और रिस्पांस पर ध्यान देना होगा। उन्होंने अपने विस्तृत सैशन में शिक्षकों से कुछ गतिविधियां भी कराईं। एक्सिलेटर कंपनी के आदित्य कुमार ने कार्यक्रम का संचालन किया। समन्वयक का दायित्व संस्कृति विवि के एडमीशन सेल से ज्योति वशिष्ठ ने निर्वाह किया।