CAA protest: शाहीन बाग में जारी है अनोखा विरोध प्रदर्शन, अब दादियों ने संभाला मोर्चा
नई दिल्ली : नागरिकता संशोधन कानून को लेकर देशभर में रस्साकसी जारी है. एक वर्ग इसके खिलाफ है तो दूसरा समर्थन में खड़ा दिखाई दे रहा है. लेकिन दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में इस कानून के खिलाफ जारी विरोध-प्रदर्शन अनूठा है. इस विरोध-प्रदर्शन की अगुवाई शाहीन बाग और जामिया नगर में रहने वाली महिलाएं कर रही हैं और बीते 15 दिनों से कड़ाके की ठंड के बावजूद डटी हैं. इस प्रदर्शन की एक और अनूठी बात यह है कि इसमें तीन बुजुर्ग दादियां भी शामिल हैं, जो सभी का ध्यान अपनी तरफ खींच रही हैं.
प्रदर्शन में शामिल असमा ख़ातून 90 साल की हैं. वहीं, बिलकीस की उम्र 82 साल और सरवरी की उम्र 75 वर्ष है. जब तीनों बुजुर्ग महिलाओं से उनका पूरा नाम पूछा गया तो उन्होंने व्यंगात्मक लहजे में एक सुर में कहा, ''हम नहीं बताएंगे, क्योंकि हमारे पास तो दस्तावेज हैं नहीं. यह हमारे खिलाफ जा सकता है.'' बता दें कि विरोध-प्रदर्शन में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने वाली ये तीनों बुजुर्ग महिलाएं अब ''शाहीन बाग की दादियां'' के तौर पर जाने जानी लगी हैं. एनडीटीवी से खास बातचीत में तीनों दादियों ने बताया कि आखिर वे विरोध-प्रदर्शन में क्यों हिस्सा ले रही हैं.
तीनों दादियों में सबसे बुजुर्ग असमा खातून कहती हैं, ''मोदी से पूछिये हम प्रदर्शन क्यों कर रहे हैं. हमें ऐसा दिन क्यों देखना पड़ा…इसकी जरूरत क्यों पड़ी कि मैं प्रदर्शन करूं. मैं नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ हूं.'' जब उनसे पूछा गया कि वो आखिर क्यों चाहती हैं कि ये कानून वापस हो, तो असमा खातून कहती हैं, ''वे हमें नागरिकता साबित करने के लिए दस्तावेज दिखाने को कह रहे हैं. इस देश में तमाम ऐसे लोग हैं जिनके पास कोई कागज नहीं हैं. कई लोगों के दस्तावेज बाढ़-बारिश में बह गए. वे कहां से लाएंगे कागज? मैं मोदी को चुनौती देती हूं कि वे अपनी 7 पुश्तों का नाम बताएं. मैं नौ पुश्तों का बताऊंगी.''
हालांकि सीएए के समर्थन में प्रदर्शन के सवाल पर उन्होंने कहा कि, 'जो लोग इस कानून को ढंग से नहीं जानते हैं, वही इसके समर्थन में खड़े हैं.'वहीं, बुजुर्ग बिलकीस कहती हैं कि, ''आप विरोध-प्रदर्शनों पर गौर करिये. सिर्फ मुसलमान ही प्रदर्शन नहीं कर रहे हैं. आइये और देखिये कि कितने लोग प्रदर्शन में शामिल लोगों को खाना दे रहे हैं. वे सभी धर्मों के हैं. कोई हमें केले दे रहा है, तो कोई फ्रूटी तो कोई बिस्किट.'' वहीं, 75 वर्षीय सरवरी कहती हैं, 'हम यहीं पैदा हुए हैं और यहीं मरना चाहते हैं. ये कानून बांटने वाला है. मैं कोई भी कागज नहीं दिखाऊंगी. ये कानून उन लोगों के साथ अन्याय है जो दस्तावेज दिखाने में सक्षम नहीं हैं. मैं उनके साथ खड़ी हूं.''
तीनों दादियों से जब यह पूछा गया कि वे कबतक प्रदर्शन करती रहेंगी, तो वे कहती हैं ''हमें खुले में ठंड नहीं लगती है. हमें सभी का समर्थन मिल रहा है और कम से कम अपनी आने वाली पीढ़ियों को यह बता सकूंगी कि हमने उनके अधिकारों की लड़ाई लड़ी.''