महात्मा गांधी के पड़पोते ने कहा, सावरकर माफीनामा लेखक थे
नई दिल्ली: महात्मा गांधी के पड़पोते तुषार गांधी ने कहा है कि ‘सावरकर माफीनामा लेखक थे…आजादी के सिपाही नहीं।’ दरअसल तुषार गांधी ने यूं ही सावरकर का नाम नहीं लिया बल्कि इस वक्त देश की राजनीति में सावरकर की एंट्री एक बार फिर हो गई है। बीते शनिवार (14-12-2019) को कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सावरकर का नाम लेकर भारतीय जनता पार्टी पर निशाना साधा था। दिल्ली के रामलीला मैदान में राहुल गांधी ने पार्टी की तरफ से आयोजित ‘भारत बचाओ रैली’ में कहा था कि ‘मैं राहुल सावरकर नहीं राहुल गांधी हूं…मर जाऊंगा पर माफी नहीं मांगूगा।’
राहुल गांधी के इस बयान पर बाद में भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने उनपर जमकर निशाना साधा। भाजपा के प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि ‘भले ही राहुल गांधी 100 जन्म लेते हैं लेकिन वह राहुल सावरकर नहीं हो सकते। सावरकर ‘वीर’ थे, देशभक्त थे और बलिदानी थे। राहुल गांधी अनुच्छेद 370, हवाई हमले, सर्जिकल स्ट्राइक और सीएबी पर पाकिस्तान की भाषा इस्तेमाल करते है। वो ‘वीर’ नहीं हो सकते, सावरकर के बराबर नहीं हो सकते।’ सावरकर को देशभक्त बताए जाने के बाद अब तुषार गांधी की प्रतिक्रिया सामने आई है। तुषार गांधी ने सावरकर को माफीनामा लेखक कहा है।
आपको बता दें कि जब महाराष्ट्र में चुनाव के वक्त बीजेपी ने अपने संकल्प पत्र में विनायक दामोदर सावरकर को भारत रत्न देने की बात कही थी तब उस वक्त भी तुषार गांधी ने इसपर अपनी प्रतिक्रिया दी थी। महात्मा गांधी के पड़पोते तुषार गांधी ने सावरकर के निर्दोष होने पर सवाल खड़े किए थे। उन्होंने कहा था कि गांधी की हत्या मामले में सावरकर निर्दोष साबित नहीं हुए थे। उन्होंने कहा था कि बापू की हत्या की साजिश के मकसद को समझने की जरूरत है।
सावरकर को लेकर कई इतिहास विदों का मानना रहा है कि वो केवल वर्ष 1910 तक राष्ट्रवादी रहे। ये वो समय था जब वे गिरफ्तार किए गए थे और उन्हें उम्र कैद की सज़ा हुई। जेल में करीब दस साल गुजारने के बाद, ब्रिटिश अधिकारियों ने उनके सामने सहयोगी बन जाने का प्रस्ताव रखा जिसे सावरकर ने स्वीकार कर लिया था। इस विचार को मानने वाले लोगों का कहना है कि जेल से बाहर आने के बाद सावरकर हिंदू सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने का काम करने लगे और एक ब्रिटिश एजेंट बन गए। हालांकि कई अन्य इतिहासकार सावरकर को लेकर इन बातों से इत्तिफाक नहीं रखते।