नागरिकता कानून पर संयुक्त राष्ट्र ने जताई चिंता
नई दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार आयोग ने भारत में नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर चिंता जताते हुए कहा है कि नया कानून बुनियादी रूप से भेदभाव करने वाला है। मानवाधिकारों की स्थिति पर नजर रखने वाली संस्था यूएनएचसीआर की ओर से शुक्रवार को एक बयान जारी कर कहा गया, ‘हम इस बात से चिंतित हैं कि भारत के नए नागरिकता संशोधन कानून की प्रकृति मूल रूप से भेदभाव करने वाली है’।
संस्था ने कहा है कि नया कानून अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान में दमन से बचने के लिए आए धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने की बात करता है मगर मुसलमानों को ये सुविधा नहीं देता। यूएनएचसीआर ने लिखा कि सारे प्रवासियों को, चाहे उनकी परिस्थिति कैसी भी हो, सम्मान, सुरक्षा और उनके मानवाधिकार हासिल करने का अधिकार है।
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार निकाय के प्रवक्ता जेरेमी लॉरेंस ने जिनेवा में कहा, ‘हम भारत के नए नागरिकता (संशोधन) कानून 2019 को लेकर चिंतित हैं, जिसकी प्रकृति ही मूल रूप से भेदभावपूर्ण है।’ उन्होंने कहा, ‘संशोधित कानून भारत के संविधान में निहित कानून के समक्ष समानता की प्रतिबद्धता को और अंतराष्ट्रीय नागरिक एवं राजनीतिक अधिकार नियम तथा नस्लीय भेदभाव उन्मूलन संधि में भारत के दायित्वों को कमतर करता दिखता है, जिनमें भारत एक पक्ष है, जो नस्ल, जाति या धार्मिक आधार पर भेदभाव करने की मनाही करता है।’
दिल्ली में विदेश मंत्रालय ने कहा था कि नया कानून भारत में पहले से ही रह रहे कुछ पड़ोसी देशों के उत्पीड़ित धार्मिक अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता देने के लिए तेजी से विचार करने की बात कहता है। मंत्रालय ने कहा था कि प्रत्येक देश को विभिन्न नीतियों के जरिए अपने नागरिकों को सत्यापित करने और गणना करने का अधिकार है।
यूएनएचसीआर के प्रवक्ता की ओर से जारी बयान में उम्मीद जताई गई है कि सुप्रीम कोर्ट नए कानून की समीक्षा करेगा और इस बात की सावधानी से समीक्षा करेगा कि ये कानून अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकारों को लेकर भारत के दायित्वों के अनुरूप है या नहीं।
लॉरेंस ने कहा कि भारत में नागरिकता प्रदान करने के व्यापक कानून अभी भी हैं, लेकिन ये संशोधन नागरिकता हासिल करने के लिए लोगों पर भेदभावपूर्ण असर डालेगा। उन्होंने कहा कि प्रवास की स्थिति को देखे बिना, सभी प्रवासी सम्मान, संरक्षण और अपने मानवाधिकारों की पूर्ति के हकदार हैं।
लॉरेंस ने कहा कि मात्र 12 महीने पहले ही भारत ने 'ग्लोबल कॉम्पैक्ट फॉर सेफ, रेगुलर एंड ऑरडरली माइग्रेशन' का समर्थन किया था. इसके तहत राज्य बचनबद्ध है कि वह सुरक्षा की स्थिति में प्रवासियों की जरूरतों पर प्रतिक्रिया देगा, मनमानी हिरासत और सामूहिक रूप से देश निकाले से बचेगा और सुनिश्चित करेगा कि प्रवासियों से संबंधित व्यवस्था मानवाधिकार आधारित हो।
प्रवक्ता ने उत्पीड़ित समूहों का संरक्षण देने के लक्ष्य का स्वागत करते हुए कहा कि यह मजबूत राष्ट्रीय शरण प्रणाली के जरिए होना चाहिए था जो समानता और भेदभाव नहीं करने पर आधारित है। उन्होंने कहा कि यह उन सभी लोगों पर लागू होना चाहिए जिन्हें वास्तव में उत्पीड़न और अन्य मानवाधिकारों के हनन से संरक्षण की जरूरत है और इसमें नस्ल, जाति, धर्म, राष्ट्रीयता और अन्य का भेद नहीं होना चाहिए।