मस्जिद कयामत तक मस्जिद ही रहेगी भले ही उस पर 500 मंदिर बना दिए जाएं: अरशद मदनी
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय द्वारा अयोध्या विवाद में पुनर्विचार याचिकाएं खारिज किए जाने के बाद मुकदमे में पक्षकार जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने बृहस्पतिवार को ‘मायूसी’ जताते हुए कहा कि संगठन ने पहले ही कहा था कि शीर्ष अदालत का ‘जो भी फैसला होगा उसका सम्मान किया जाएगा।’
न्यायालय ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में अपने नौ नवंबर के फैसले पर पुनर्विचार के लिये दायर सभी याचिकायें बृहस्पतिवार को खारिज कर दीं। न्यायालय ने अपने फैसले में 2.77 एकड़ विवादित भूमि ‘राम लला’ को सौंपते हुये वहां राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया था।
इस मामले पर जमीयत उलेमा-हिंद की उत्तर प्रदेश इकाई के प्रमुख मौलाना सैयद अशहद रशिदी ने भी पुनर्विचार याचिका दायर की थी। पुनर्विचार याचिकाएं खारिज होने के बाद जमीयत उलेमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी ने कहा, ‘‘ हमने पहले ही कहा था कि उच्चतम न्यायालय का जो भी फैसला होगा, उसका एहतराम (सम्मान) किया जाएगा लेकिन हम मायूस हैं, क्योंकि अदालत ने माना है कि बाबरी मस्जिद, मंदिर की जगह नहीं बनाई गई थी फिर भी फैसला रामलला के हक में दिया गया।’’
मदनी ने कहा, ‘‘ हम इसीलिए कहते हैं कि फैसला हमारी समझ से परे है। बहरहाल, अदालत ने पुनर्विचार याचिकाएं खारिज कर दीं, ठीक है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हमारा मानना है कि जो जगह मंदिर बनाने के लिए दी गई है वह पहले भी बाबरी मस्जिद थी और आज भी मस्जिद है और कयामत तक मस्जिद रहेगी भले ही उस पर 500 मंदिर बना दिए जाएं।’’