सात साल पहले छत्तीसगढ़ में नक्सली बताकर मार दिए गए थे 17 ग्रामीण
नई दिल्ली: छत्तीसगढ़ पुलिस ने 28 जून 2012 को बीजापुर जिले के सारकेगुड़ा में फर्जी मुठभेड़ में 17 लोगों की हत्या की थी। उनकी हत्या के बाद उन्हें माओवादी घोषित कर दिया। यह खुलासा जस्टिस विजय कुमार अग्रवाल की न्यायिक जांच की रिपोर्ट से हुआ है। सात वर्षों तक सुनवाई और जांच के बाद पिछले महीने रिपोर्ट पेश की गई। 1 दिसंबर को लीक हुई रिपोर्ट में पुलिस को दोषी ठहराया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मुठभेड़ में मारे गए लोग नक्सली नहीं थे। सुरक्षाबलों के कथित नक्सल एनकाउंटर में 17 लोगों की मौत हुई थी, जिनमें नाबालिग भी शामिल थे।
सुरक्षा बलों के मुताबिक, सीआरपीएफ और छत्तीसगढ़ पुलिस की संयुक्त टीम सारकेगुड़ा में 28 जून 2012 की रात नक्सलियों की बैठक स्थल के पास पहुंची। सुरक्षा बलों ने दावा किया कि नक्सलियों की तरफ से उन पर फायरिंग की गई, जिस पर उन्होंने जवाबी फायरिंग की। हालांकि, गांव वालों ने इस दावे का खंडन किया और कहा कि फायरिंग में मारे गए सबी आम लोग थे और पारंपरिक उत्सव की तैयारियों पर चर्चा के लिए रात में इकट्ठा हुए थे।
जस्टिस विजय कुमार अग्रवाल की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि गांव वालों की तरफ से फायरिंग की बात गलत है और सुरक्षा बल यह साबित नहीं कर सके कि जिन लोगों को निशाना बनाया गया वे सभी नक्सली थे। रिपोर्ट में कहा गया कि है कि मारे गए सभी लोग स्थानीय आदिवासी थे और उनकी ओर से कोई गोली नहीं चलाई गई थी और न ही उनके नक्सली होने के सुबूत हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि लोगों को बहुत पास से गोली मारी गई, जबकि सुरक्षाबल के जवान आपसी क्रॉस फायरिंग में घायल हुए।
बीजापुर जिले के सारकेगुड़ा में 17 लोगों की मौत पर सवाल उठने के बाद तत्कालीन भाजपा सरकार ने एक सदस्यीय न्यायिक जांच आयोग का गठन किया। इस आयोग ने 17 अक्टूबर को अपनी रिपोर्ट सौंपी है। रिपोर्ट को छत्तीसगढ़ कैबिनेट में 30 नवंबर को पेश किया और 2 दिसंबर को विधानसभा की पटल पर रखा गया। आयोग ने कहा कि पुलिस की जांच में कई खामियां थीं और उसके साथ छेड़छाड़ की गई। रिपोर्ट में पुलिस द्वारा घटनास्थल से हथियार और गोलियां जब्दी के दावे को भी खारिज किया गया है।
इस रिपोर्ट के आने के बाद अब कई तरह के सवाल उठने लगे हैं। सामाजिक कार्यकर्ता और वकील बेला भाटिया का कहना है कि कांग्रेस ने 2012 में सारकेगुडा एनकाउंटर को फर्जी बताया था,लेकिन वही एक महीने से अधिक समय तक रिपोर्ट को दबाती रही। उन्होंने कहा, “अगर सरकार पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए प्रतिबद्ध है, तो उसे बहुत पहले रिपोर्ट को सदन में पेश कर देना चाहिए था।”
इस रिपोर्ट के बाद अब छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बस्तर जिले में भी सुरक्षा बलों की फायरिंग पर सवाल उठने लगे हैं। अब 23 सितंबर को दंतेवाडा जिले के कुत्रेम में पुलिस-नक्सलियों की मुठभेड़ को भी फर्जी बताया जा रहा है। सोनी सोरी और भाटिया ने कुत्रेम में रहने वाले पीड़ितों से मिलने गुमियापल गईं औऱ सोरी ने आरोप लगाया कि वहां किसी तरह की कोई गोलीबारी नहीं हुई।