बुज़ुर्गो के आचरण अपनाने से हमारे अंदर विनम्रता और भाईचारगी पैदा होती है:प्रोफेसर वाहिद नज़ीर
दादामियां के जीवन पर सेमीनार का आयोजन, उर्स में दरगाह शरीफ़ पर चादर चढ़ाने के सिलसिला जारी रहा
लखनऊ: हज़रत ख्वाजा मुहम्मद नबी रज़ा शाह अल्मारुफ दादा मियाँ के 112 बें सालाना उर्स के तीसरे दिन एक अज़ीमुस्शान आलमी सेमीनार के आयोजन हुआ। जिसका उनवान था ज़िदगी के शबो रोज़ और शाहे रज़ा का तरज़े अमल। प्रोग्राम का आयोजन क़ारी फ़रीदुल रहमान मिस्बाही की तिलावते कलामे पाक से हुआ। नातो मनक़बत का गुलदस्ता क़ारी ज़ुबैर सबाहती ने किया। सेमीनार की अध्यक्षता साहिबे सज्जादा हज़रत मुहम्मद सबाहत हसन शाह ने फ़रमाई। जबकि निज़ामत के फ़राईज़ हाफ़िज़ नवाज़ अहमद सईदी ग़ाजीपुरी ने अदा किए। इस मौके पर सेमीनार के विषय पर ज़िदगी के शबो रोज़ और शाहे रज़ा का तरज़े अमल पर मक़ाला पेश करते हुए जनाब वाहिद नज़ीर साहब प्रोफेसर जामिया मिल्लिया इस्लामिया नई दिल्ली ने हज़रत ख्वाजा मुहम्मद नबी रज़ा शाह अल्मारुफ दादा मियाँ के तरज़े ज़िंदगी के हवाले से फ़रमाया कि आप की ज़िंदगी सादगी से भरी थी, अगरचे हर इंसान के अलग अलग तरजे जिंदगी है लेकिन आपकी तरज़े जिंदगी सबसे अलग थी।
मौलाना सय्यद क़मरुल इस्लाम रिसर्च स्कालर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ने कहा कि बुज़ुर्गों की सोहबत मे जाने का मकसद यही है कि उनके तरज़े अमल को अपनाओ। उनके तरज़े अमल को अपनाने से सखावत व भाईचारगी आ जाएगी। उन्होने कहा कि इस्तेकामत सखावत अजिजी इंकेसारी अच्छे अखलाक ही बुज़ुर्गों के तरज़े अमत हैं। आपने इस्लाम के दर्स को जनता तक अच्छे तरीके से पहुँचाया और दुनिया को बता दिया कि इस्लाम के अंदर जो रवादारी है वह किसी मज़हब में नहीं है। मज़हबे इस्लाम इन्ही बुजुर्गो की मुखलिसानी जिंदगी से फैली है।
इसके बाद सारा दिन दरगाह शरीफ़ पर चादर चढ़ाने के सिलसिला जारी रहा जिसमे भुवनेशवर से तशरीफ़ लाए जनाब सोहेल फसाहती और बम्बई से तशरीफ लाए कय्यूम फ़साहती ने अपने मुरीदों के साथ दरगाह शरीफ पर चादर पेश की लंगर भी बाँटा।
कल सुबह साड़े दस बजे इस साल के (112 वें उर्स) का पहला क़ुल शरीफ होगा जिसमें हिंदुस्तान के कोने कोने से आए हुए हज़रात व ख़ुल्फा हज़रात अपनी शिरकत करेंगे।