दूसरी जमीअत भी बाबरी मस्जिद फैसले के रिव्यू पिटीशन के पक्ष में आई
नई दिल्ली।बाबरी मस्जिद मामले पर आए फैसले और उसके संदर्भ में विचार-विमर्श करने के लिए जमीयत उलमा ए हिंद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की महत्वपूर्ण बैठक उसके केंद्रीय कार्यालय एक,बहादुर शाह ज़फर मार्ग नई दिल्ली में क़ारी सैयद मोहम्मद उस्मान मंसूरपुरी, अध्यक्ष जमीअत उलमा-ए-हिन्द की अध्यक्षता में आयोजित हुई। सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान बाबरी मस्जिद फैसले के संदर्भ में रिव्यू पिटीशन दाखिल की जाए या न की जाए और 5 एकड़ ज़मीन स्वीकार की जाए या न की जाए, इस सिलसिले में पूरे देश में बहस चल रही है, जमीयत उलेमा ए हिंद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में देशभर से आये उलमा और प्रमुख व्यक्तियों और वकीलों ने उचित विचार-विमर्श और चर्चा करके एक प्रस्ताव पारित किया है। सम्मेलन में इसके अलावा मौजूदा हालात और वक्फ सम्पत्ति की सुरक्षा और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की मस्जिदों में नमाज़ की इजाज़त देने पर भी विचार-विमर्श किया किया।
1.बाबरी मस्जिद निर्णय से सम्बंधित प्रस्ताव
जमीअत उलमा ए हिन्द की कार्यकारिणी की ये बैठक बाबरी मस्जिद से सम्बंधित सर्वोच्य नायालय के निर्णय को बिलकुल एकतरफा और अन्यायपूर्ण करार देता है, इस निर्णय ने ये सिद्ध कर दिया है की मंदिर तोड़ कर मस्जिद निर्माण नहीं की गई थी, बल्कि सैंकड़ो वर्षों से स्थापित मस्जिद को विध्वंश करके अब नायालय के माध्यम से वहां मंदिर बनाने का रास्ता साफ़ कर दिया गया है, जो स्वतंत्र भारत के इत्तिहास में एक काला अध्याय है।ऐसी स्तिथि में इन न्यायाधीशों से भविष्य में कोई भलाई की अपेक्षा नहीं है बल्कि और हानि होने की शंका है। इसलिए जमीअत उलमा ए हिन्द की कार्यकारिणी इस निर्णय पर पूर्ण विचार याचिका दायर करने को लाभदायक नहीं समझती है, परन्तु विभिन्य संस्थाओं ने अपने संवैधानीक अधिकार का उपयोग करते हुवे पूर्ण विचार याचिका दायर करने की राये कायम कर ली है, इसलिए जमीअत उलमा ए हिन्द इसका विरोध नहीं करेगी और आशा रखेगी के इश्वर न करे इसका कोई नकारात्मक परिणाम हो।इसके अलावा जमीअत उलमा ए हिन्द ये स्पष्ट कर देना चाहती है कि मस्जिद का कोई बदल नहीं हो सकता इसलिए बाबरी बस्जिद के बदले में अयोध्या में पांच एकड़ ज़मीन कबूल नहीं करनी चाहिये।इसी के साथ जमीअत उलमा ए हिन्द की कार्यकारिणी, बाबरी मस्जिद केस की पैरवी करने वाली सभी संस्थाओं तथा अधीवक्ताओं की सेवा की कद्र करते हुए इनकी प्रशंशा व्यक्त करती है।इस अवसर पर, मुसलमानों ने जो धैर्य और शांतिपूर्ण नागरिक होने का प्रमाण दिया है, वह बहुत सराहनीय है।हम आशा करते हैं कि मुसलमान भविष्य में भी निराशा के बजाय साहस के साथ काम करेंगे और नमाज़ों की पाबन्दी और मस्जिदों को आबाद रखने का पूरा एहतेमाम करेंगे।
- वक़्फ़ के संगरक्षण से सम्बंधित प्रस्ताव
वक़्फ़ के संरछन से सम्बंधित जमीअत उलमा ए हिन्द की कार्यकारिणी की बैठक में सोच विचार हुवा तथा कार्यकारिणी के सदस्यों ने इस बात को माना कि केंद्र तथा राज्य सरकारों के अनचाहे हस्तछेप के कारण अवकाफ के केयर-टेकर ऐसे निर्णय लेते हैं जो कौम तथा मिल्लत के लिया हानिकारक सिद्ध होते हैं. बाबरी मस्जिद से संबंधीत केस में यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड के चेयरमैन ने मुसलमानों के साथ विश्वासघात करते हुए मीर-जाफर की भूमिका अदा की है।ऐसी स्थिति को सामने रखते हुए, जमीअत उलमा ए हिन्द की कार्यकारिणी एक कमेटी का गठन करने का निर्णय करती है जिसके सदस्य निम्न व्यक्ति होंगे
1. शकील अहमद सयद, अधिवक्ता 2. मौलाना नियाज़ अहमद फारूकी 3. हाफ़िज़ पीर शब्बीर 4. हाजी मोहम्मद हारुन. हाफ़िज़ नदीम सिद्दिकी इस कमेटी के कंवेनर होंगे।
- पुरातत्व विभाग के अधीन मसजिद से सम्बंधित प्रस्ताव जमीअत उलमा-ए-हिन्द के कार्यकारिणी पूरी गंभीरता के साथ सरकार से मांग करती है के देश में जो अविवादित मस्जिद पुरातत्व विभाग के अधीन हैं और इनमें नमाज़ पढ़ने की मनाही है, इन्हें तुरंत मुसलमानों के लिए खोला जाए ताकि वहां खुदा की इबादत की जा सके तथा वो आबाद रहें।बैठक में भाग लेने वालों में जमीअत अध्यक्ष मौलाना कारी सैय्यद मुहम्मद उस्मान मंसूरी और महासचिव मौलाना महमूद मोदनी , मौलाना अमानुल्लाह क़ासमी, मौलाना सिद्दीकुल्लाह चौधरी, मौलाना मतीनुल हक़ उसामा, मौलाना बदरुद्दीन अजमल, हाफिज नदीम सिद्दीकी, मौलाना कारी शौकत अली, हाफिज पीर शब्बीर अहमद, मुफ्ती इफ्तिखार अहमद कासमी, एडवोकेट शकील अहमद सय्यद,एडवोकेट निआज़ फारूकी, मुफ्ती मोहम्मद सलमान मंसूरपुरी, मुफ़्ती जावेद इक़बाल किशन गंजी, मौलाना मोइज़ुद्दीन अहमद, मुफ़्ती मुहम्मद राशिद आज़मी, मौलाना मुहम्मद सलमान बाजनौरी, मौलाना अब्दुल क़ादिर, मसूद अहमद आज़मी, हाजी मुहम्मद हारून भोपाल, मुफ़्ती हबीब-उर-रहमान इलाहाबाद, मुफ्ती मोहम्मद अफान मंसूरपुरी, मौलाना मुहम्मद आक़िल, मौलाना अली हसन मजाहिरी शामिल थे। ग़ौरतलब हो कि सभी लोग बाबरी मस्जिद पर आए फ़ैसले को ग़लत मान रहे हैं जो सही भी है लेकिन फ़ैसले को लेकर सात जजों की बेंच में चुनौती नहीं दी जाएगी जब फ़ैसला सबूतों और क़ानून के विपरीत है तो उसे सिर्फ़ रिव्यू पिटीशन कर रस्म अदायगी क्यों की जा रही है ? ये सवाल चर्चा का केंद्र बना हुआ है।