मोदी सरकार अब लाएगी नागरिकता संशोशन बिल
नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 को हटाए जाने के बाद अब केंद्र की मोदी सरकार एक और बड़ा कदम उठाने की तैयारी में है। 18 नवंबर से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र में सरकार कई अहम बिल पेश करेगी, जिसमें नागरिकता संशोधन बिल भी है। यह विधेयक यदि कानून बन जाता है तो भारत में रहने वाले विदेशी नागरिकों को 6 साल में ही नागरिकता मिल जाएगी। ऐसे में इस बिल का काफी विरोध होता रहा है। पूर्वोत्तर के लोगों का विरोध है कि यदि यह बिल पास होता है तो इससे राज्यों की सांस्कृतिक, भाषाई और पारंपरिक विरासत के साथ खिलवाड़ होगा।
जानकारी अनुसार, यदि शीतकालन सत्र में यह बिल पारित होता है और यदि इसे कानून बनाया जाता है तो अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के मानने वाले अल्पसंख्यक समुदायों को 12 साल की बजाय महज छह साल भारत में गुजारने और बिना उचित दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता मिल सकेगी।बता दें कि नागरिकता बिल में संशोधन के लिए मोदी सरकार ने पिछली बार भी जनवरी में शीतकालीन सत्र के दौरान इसे पेश किया था, लेकिन 8 जनवरी को संसद के निचले सदन में इसके पास हो जाने के बाद सरकार ने इसे राज्य सभा में भेजे जाने से रोक लिया।
नागरिकता संशोधन बिल हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी व ईसाइयों को जो पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश से बिना वैध यात्रा दस्तावेजों के भारत आए हैं या जिनके वैध दस्तावेजों की समय सीमा हाल के सालों में खत्म हो गई है। उन्हें भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के लिए सक्षम बनाता है। यह बिल बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के छह गैर मुस्लिम अल्पसंख्यक समूहों के लोगों को भारतीय नागरिकता हासिल करने में आ रही बाधाओं को दूर करने का प्रावधान करता है। इस बिल का मकसद पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले गैर-मुस्लिमों के लिए भारत की नागरिकता आसान बनाना है। यह बिल इसलिए लाया जा रहा है क्योंकि जो लोग भारत से बाहर विदेश में रहते हैं उनको अपने धर्म का खतरा रहता है जबकि मुस्लिम जो भारत आते हैं वो किसी दूसरे उद्देश्य के साथ आते हैं उन्हें धर्म को लेकर किसी तरह का कोई खतरा नहीं होता। भाजपा का कहना है कि इसलिए इस बिल में मुस्लिमों को नहीं रखा गया है।
संसद के पिछले सत्र में विपक्षी पार्टियों ने एकजुट होकर इस बिल का विरोध किया था। उत्तर-पूर्व के कई राज्य इस विधेयक के विरोध में हैं। इसे देखते हुए सरकार ने इसमें संशोधन का वादा किया है। शीत सत्र में संसद पटल पर इसे रखा जाएगा और सरकार इसे आसानी से पास करा लेने की उम्मीद में है।
नागरिकता (संशोधन) बिल को जनवरी 2019 में लोकसभा में पास कर दिया गया था, लेकिन राज्यसभा में यह पास नहीं हो सका था। इसके बाद लोकसभा भंग होने के साथ ही यह बिल रद्द हो गया। अब एक बार फिर मोदी सरकार इस बिल को ला रही है, लेकिन जिस तरह विपक्षी दल इस बिल पर सवाल उठाते रहे हैं और पूर्वोत्तर के राज्यों में इसका पुरजोर विरोध किया जा रहा है, ऐसे में मोदी सरकार के सामने इस बिल को दोबारा दोनों सदनों से पास कराना चुनौतीपूर्ण होगा।
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह पूर्वोत्तर के मूल निवासियों से कह चुके हैं कि वे प्रस्तावित नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर चिंतित न हों, क्योंकि इससे उनके अधिकार प्रभावित नहीं होंगे। शाह ने कहा कि नागरिकता संशोधन विधेयक के बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है। यह उनके अधिकारों को प्रभावित नहीं करेगा। विधेयक में बांग्लादेश सहित पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का प्रावधान है। ऐसा ही आश्वासन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी दोहरा चुके हैं। उन्होंने कहा है कि केंद्र यह सुनश्चित करने के लिए इसमें कुछ बदलाव करेगा कि इससे कोई प्रभावित न हो।