कंज्यूमर कॉन्फिडेंस छह साल के निचले स्तर
नई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक(आरबीआई) ने कहा है कि देश में कंज्यूमर कॉन्फिडेंस छह साल के निचले स्तर पर पहुंच गया है। केंद्रीय बैंक की ओर से जारी हालिया सर्वेक्षण में कहा गया है कि लोगों की धारणा, रोजगार के अवसर, आय और खर्च में कमी आई है। सितंबर के कंज्यूमर कॉन्फिडेंस सर्वे में नौकरियों को लेकर लोगों में बेहद नकारात्मक रुख का पता चला है। सितंबर 2012 में इस इंडेक्स को पहली बार तैयार किए जाने के बाद नौकरियों की स्थिति को लेकर पहली बार ऐसा नकारात्मक माहौल देखने को मिल रहा है। आरबीआई के मासिक सर्वे में शामिल आधे से अधिक (52.5%) ने माना कि नौकरियों के लिए हालात बदतर हो गए हैं। जबकि, 33.4 फीसदी ने माना कि आने वाले साल में स्थिति और खराब होगी और 26.7 प्रतिशत ने कहा कि उनकी आमदनी घट गई है।
बता दें कि कंज्यूमर कॉन्फिडेंस इंडेक्स को सकारात्मक तब माना जाता है जब आंकड़ा 100 के पार हो। पिछली तिमाही के 95.7 से घटकर यह 89.4 के स्तर पर पहुंच गया है। नरेंद्र मोदी के 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद यह आंकड़ा पहली बार इतने निचले स्तर पर पहुंच गया है।
आरबीआई के सर्वे में शामिल 26.7% ने कहा कि उनकी आमदनी घट गई है। इससे पहले, केवल एक बार नवंबर 2017 में इससे अधिक संख्या में यानी लगभग 28 फीसदी ने कहा था कि इनका आय में कमी आई है। हालांकि, आधे से अधिक यानी 53 प्रतिशत ने उम्मीद जताई कि आने वाले साल में उनकी आमदनी बढ़ेगी। केवल 9.6 फीसदी को ऐसा लगा कि उनकी कमाई घटेगी।
देश के कुल आर्थिक हालत पर करीब आधे यानी 47.9 प्रतिशत ने माना कि यह और खराब हुई है। अंतिम बार इतनी ज्यादा तादाद में ऐसी भावनाएं दिसंबर 2013 में जताई गई थीं।
उस दौरान 54 फीसदी ने कहा था कि अर्थव्यवस्था की हालत खराब हो चली है। ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि अभी 31.8 फीसदी का मानना है कि आने वाले साल में हालात और बिगड़ेंगे। इससे पहले, सितंबर 2013 में भविष्य के हाल्रात को लेकर ऐसी नकारात्मकता थी, जब 38.6 फीसदी ने निकट भविष्य में स्थितियां और बदतर होने की आशंका जताई थी।
आरबीआई ने अहमदाबाद, बेंगलुरु, भोपाल, दिल्ली, मुंबई सहित 13 बड़े शहरों के 5,192 परिवारों पर यह सर्वेक्षण किया है। इन परिवारों के सदस्यों से आम परिदृश्य, उम्मीद, आर्थिक परिस्थितियों, रोजगार के अवसर, निजी आय और खर्च को लेकर सवाल पूछा गया था।
गौरतलबै है कि मांग एवं पूर्ति में कमी के कारण चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में देश की अर्थव्यवस्था की वृद्धि की रफ्तार घटकर पिछले साल के न्यूनतम स्तर पांच फीसद पर आ गई है। लिहाजा आरबीआई ने शुक्रवार को पांचवीं बार नीतिगत दरों में बदलाव करते हुए रेपो रेट में 0.25 फीसद की कटौती कर दी है।