कश्मीर, असम और कट्टरता पर चर्चा करना देश की आवश्यकता: शुजात क़ादरी
अजमेर। देश के मौजूदा हालात में असम और कश्मीर बहुत संजीदा विषय हैं। यह त्रासदी है कि कश्मीर में लॉकडाउन और असम के एनआरसी को लेकर बहुत तरह की चर्चाएं हो रही हैं जबकि वास्तविकता से बाक़ी देश को परिचित करवाए जाने की आवश्यकता है। यह बात मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ इंडिया यानी एमएसओ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शुजात अली क़ादरी ने कही। देश भर के 20 राज्यों से आए संगठन के पदाधिकारियों ने दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन के अंतिम दिन अपनी प्रगति रिपोर्ट, राज्य में मुस्लिम छात्रों की स्थिति और स्थानीय मुद्दों पर व्यापक विचार विमर्श किया गया।
शुजात क़ादरी, राष्ट्रीय अध्यक्ष ने यहाँ मीडिया को बताया कि एमएसओ ने अपनी दो दिन की राष्ट्रीय आम बैठक में संगठनात्मक सुधार के साथ साथ देश की परिस्थितियों पर व्यापक चर्चा की। उन्होंने बताया कि सभा में छात्रो से जुड़े मुद्दों पर गहन विचार विमर्श किया गया। छात्रों के एडमिशन, छात्रवृत्ति और करियर को लेकर एक राज्य के प्रतिनिधियों ने दूसरे राज्यों में उपलब्ध अवसरों का लाभ उठाने की अपील की गई। शुजात क़ादरी ने बताया कि असम में एनआरसी और कश्मीर की स्थितियों पर चर्चा की गई। उन्होंने असम की यूनिट को संबोधित करते हुए प्रभावित लोगों को हरसंभव कानूनी मदद देने की अपील की। कश्मीर में प्रभावित समुदाय तक पहुँचने के लिए शुजात क़ादरी ने सुझाव दिया कि सरकार को चाहिए वह बाकी भारत के सूफी छात्रों और नौजवानों को कश्मीरी युवाओं के साथ मिलने का अवसर दिया जाए। यह संवाद को बढ़ाएगा और घाटी में स्थिति को सामान्य बनाने में मदद करेगा। शुजात क़ादरी ने यह भी सुझाव दिया कि मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ इंडिया यानी एमएसओ को मस्जिदों के इमामों को प्रशिक्षण देने के लिए तैयार है। हमारा संगठन आधुनिक विषयों और मुद्दों की समझ के साथ साथ इमामों को कट्टरता से निपटने के तरीकों पर भी तैयार कर सकता है।
दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार प्रशांत टंडन ने असम के एनआरसी के लिए तैयार की गई अपनी रिपोर्ट का ज़िक्र किया। उन्होंने बताया कि उन्होंने असम में रहकर इस मसले को समझने का प्रयास किया है। जबकि असम में लोगों को राष्ट्रीय रजिस्टर में अपना नाम लिखवाने के लिए अंतिम मौक़ा दिया गया है, उसमें अंतिम अधिकार फॉरेन ट्रिब्यूनल को दे दिया गया है। उन्होंने बताया कि वह असम में कई परिवारो से मिले और कई प्रतिकूल उदाहरण देखने को मिले। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि मुसलमानों से अधिक हिन्दू और जनजातीय लोग एनआरसी से प्रभावित हैं। वह बांग्लाभाषी एक हिन्दू परिवार से मिले जिसमें 22 परिवार के संयुक्त परिवार के 14 लोगों के नाम लिस्ट में नहीं हैं। यह विरोधाभास इसलिए देखे जा रहे हैं क्योंकि असम सरकार और एनआरसी के लिए ज़िम्मेदार अधिकारियों के पास लोगों की नागरिकता तय करने के लिए प्रशिक्षण और अधिकारिता का अभाव है। उन्होंने इस ड्राइव से परेशान लोगों के लिए एक अंदाज़े के आधार पर बताया कि एक व्यक्ति लगभग 50 हज़ार से एक लाख रुपए ख़र्च कर रहा है। टंडन ने बताया कि वकील भी प्रभावित लोगों से अनाप शनाप फीस ले रहे हैं और ऐसे वकीलों की पहचान उजागर करते हुए उनके लूट को भी मुद्दा बनाए जाने की आवश्यकता है। टंडन ने बताया कि असम सरकार की सिफारिश पर नियुक्त फॉरेन ट्रिब्यूनल के अधिकारी को नागरिकता रद्द करने की सिफारिश का अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए। सरकार ने उन फॉरेन ट्रिब्यूनल के उन अधिकारियों को सेवा में बनाए रखने की सिफारिश की है, जिसने अधिकाधिक लोगों को नागरिकता से वंचित करने की सिफारिश की है। यह त्रासदी है। वरिष्ठ पत्रकार ने कहाकि लोगों को जागरुक करते हुए अपने नाम लिस्ट में लाने के लिए मुस्लिम स्टूडेंट्स् ऑर्गेनाइज़ेशन को प्रयास करना चाहिए। अब भी 19 लाख लोग इस लिस्ट में छूट गए हैं और मेरी मान्यता है कि इसमें कई भारतीय हैं। कई लोग मूल निवास पर पत्र नहीं मिलने, अनपढ़ होने, गरीब होने और वकीलों के धोखे के कारण भी एनआरसी से बाहर हो गए हैं। ऐसे प्रभावित भारतीय नागरिकों को त्वरित मदद की आवश्यकता है। टंडन ने कहाकि बाक़ी भारत में जन्मे लोग भारतीय हैं लेकिन असम में क़ानून में अंतर के कारण यह कलिष्ट मामला बन गया है।
वरिष्ठ कम्पनी सचिव और आर्थिक मामलों के जानकार कुमार अनिकेत ने मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ इंडिया के दो दिवसीय सम्मेलन के अंतिम दिन स्टार्ट अप योजना के बारे में बताया। उन्होंने कहाकि नया कारोबार शुरू करने को सरल कर दिया गया है। कई कारोबार में आर्थिक सीमा के आधार पर जीएसटी में छूट दी गई है। कुमार अनिकेत ने बताया कि स्टार्ट अप में भारत सरकार ने कई कागज़ी कार्रवाइयों से निजात दिलवाई है। कोई भी स्टार्ट अप कम्पनी ऑनलाइन माध्यम से स्वयं अपनी कम्पनी को छह तरह के श्रम क़ानून और तीन तरह के पर्यावरणीय औपचारिकताओं को पूरा कर सकते हैं। उन्होंने कहाकि सरकार ने इंस्पेक्टर राज को स्टार्ट अप में समाप्त करने के लिए पहले पांच साल तक किसी भी इंस्पेक्शन से मुक्त किया है। अनिकेत ने बताया कि इस योजना का मक़सद युवाओं को कारोबार के लिए प्रेरित करते हुए उन्हें कानून के भय से बाहर लाने का प्रयास है। वरिष्ठ कम्पनी सचिव ने कहाकि युवा कारोबारी डीपीआईआईआईटी में पंजीकरण करवा सकते हैं। स्टार्ट अप कारोबारी बहुत सी कानूनी औपचारिकताएं भी ऑनलाइन पूरी कर सकते हैं। कुमार अनिकेत ने मुस्लिम युवाओं से अपील की कि वह स्टार्ट अप योजना के साथ साथ मुद्रा लोन का लाभ लेकर अच्छा कारोबार शुरू कर सकते हैं और वह नौकरी की बजाय नियोक्ता बनने के बारे में सोचें।
अनीश शिराज़ी, राष्ट्रीय सचिव ने इस अवसर पर कहाकि देश में राजनीतिक भय का माहौल है। इस स्थिति में विश्वास बहाली समय की आवश्कता है। शिराज़ी ने कहाकि देश के सामाजिक ताने-बाने को बचाने में युवा और विद्यार्थी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इसके लिए मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइज़ेशन यानी एमएसओ महती भूमिका अदा कर रही है। शिराज़ी ने संदर्भ के साथ कहाकि एमएसओ ने विभिन्न धर्मों के संगठनों के साथ गहन विचार विमर्श किया है और संवाद को बढ़ाने पर हमेशा बल दिया है।
अख़्तर मदाकिया, महासचिव, गुजरात प्रदेश ने इस मौक़े पर कहाकि गुजरात में घटते रोज़गार एक महत्वपूर्ण समस्या बनकर उभर रही है। इससे मुस्लिम समुदाय भी प्रभावित हो रहा है। उन्होंने मुसलमानों की गुजरात में स्थिति पर विचार व्यक्त करते हुए कहाकि मुस्लिम कुटीर उद्योगों के मूल आवश्यकताओं से जुड़े हुए हैं। चूंकि मांग में कमज़ोरी आ गई है इसलिए कुटीर उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। मदाकिया ने गुजरात में मुस्लिम विद्यार्थियों की स्थिति को सुधारात्मक बताते हुए इसे सकारात्मक बताया।
नाज़िर मजूमदार, प्रदेश अध्यक्ष, त्रिपुरा ने कहाकि त्रिपुरा में असम के एनआरसी के प्रभाव को महसूस किया जा रहा है। उन्होंने कहाकि त्रिपुरा में बांग्ला भाषा ही बोली जाती है। ऐसी स्थिति में एनआरसी को लेकर लोगों में कई तरह की ग़लतफहमियाँ हैं। उन्होंने उपस्थित जनसमुदाय से अपील की कि वह असम एनआरसी को लेकर अपनी जानकारी में इज़ाफ़ा करें।
सैयद महबूब क़ादरी, महासचिव, कर्नाटक प्रदेश ने प्रदेश में कट्टरता के प्रसार पर चिंता व्यक्त करते हुए एमएसओ को इसके निदान के लिए व्यापक आंदोलन चलाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहाकि कर्नाटक एक उभरती हुए अर्थ व्यवस्था और सूचना प्रोद्यौगिकी का केन्द्र हैं। इस स्थिति में मुस्लिम युवाओं को साइबर अटैक और साइबर रेडिकलाइज़ेशन से बचाना हमारी ज़िम्मेदारी है। उन्होंने संसाधनों की उपलब्धता पर
जुनैद अकमल, असम महासचिव ने कहाकि राज्य में एनआरसी को लेकर अफरा तफरी का माहौल है। अकमल ने अपने संबोधन में बताया कि असम में एनआरसी से प्रभावित मुसलमान से ज्यादा प्रभावित हिन्दू समुदाय है। उन्होंने कहाकि एनआरसी के तहत नागरिकता तय करने का अधिकार फॉरेन ट्रिब्यूनल को दिया गया है, इस लिहाज़ से ट्रिब्यूनल पर आरोप है कि वह विवेचना के बजाय मंशा के आधार पर निर्धारण कर रहा है। एनआरसी को लेकर राज्य में सिर्फ नकारात्मक विचारधारा बन रही है।
शाक़िब बरकाती, दिल्ली प्रदेश महासचिव ने कहाकि संगठन आर्थिक दुष्कर परिस्थितियों से जूझ रहा है। इस परिस्थिति को सुधारने के लिए संगठन को जनता के बीच दान की अपील करनी चाहिए। शाक़िब ने दिल्ली प्रदेश में संगठन की सदस्यता बढ़ाने के लिए किए जा रहे प्रयासों को इंगित करते हुए एमएसओ को सभी मुस्लिम छात्रों तक पहुंचने के लिए सोशल मीडिया के सदुपयोग पर बल दिया।
नफ़ीस शेरानी, राजस्थान प्रदेश अध्यक्ष; सलमान जाफ़री, मध्यप्रदेश; मुनवरुल इस्लाम मुकुल, आसाम; नाज़िर मजूमदार, त्रिपुरा; अशफ़ाक़ हुसैन, पश्चिम बंगाल; ग़ुलाम रब्बानी, झारखंड; अबू अशरफ़, उत्तर प्रदेश; साक़िब बरकाती, दिल्ली; शामदीन, पंजाब; शहीर ख़ान, तेलंगाना; ज़ैनुद्दीन शरीफ़, कर्नाटक; शब्बीर मिस्बाही, गुजरात; शेख़ शमशीर, आंध्र प्रदेश समेत कई प्रदेश अध्य़क्षों ने राष्ट्रीय सम्मेलन में शिरकत की।
इस अवसर पर मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ इंडिया यानी एमएसओ ने चार प्रमुख प्रस्ताव पारित किए। संगठन ने भारत सरकार से अपील की कि वह असम में एनआरसी में फॉरेन ट्रिब्यूनल के अधिकारियों को नागरिकता तय करने का अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए। संगठन ने कहाकि असम के लोगों को अपनी नागरिकता साबित करने के लिए और मौक़ा दिया जाना चाहिए। लोगों के नाम में मामूली स्पेलिंग मिस्टेक की उपेक्षा करते हुए इसे मानवीय भूल मानकर उन्हें नागरिक स्वीकार किया जाना चाहिए। एमएसओ ने कहाकि वह विदेश नीति में भारत के इजराइल के पक्ष में झुकने के विरोध में है। संगठन ने भारत सरकार को फिलस्तीन को समर्थन देने और तेल कारोबार में ईरान का सहयोग लेने पर बल दिया।
मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ इंडिया यानी एमएसओ ने अपने प्रस्ताव में ‘कनेक्ट कश्मीरीज़’ अभियान का ज़िक्र करते हुए कहाकि कश्मीर के लॉकडाउन के बाद से वहाँ संवाद समाप्त हो गया है। घाटी के युवाओं को बाकी भारत के मुस्लिम सूफी युवाओं को बात करने का मौक़ा दिया जाना चाहिए। यह संवाद को बढ़ाकर कश्मीरियों के विश्वास बहाली में मदद करेंगे। संगठन ने कश्मीर में कर्फ्यू में राहत देने, स्कूल-कॉलेज को पुन: सुचारू रूप से शुरू करने और टेलीकम्यूनिकेशन सेवा को चालू करने की मांग की।
मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ इंडिया यानी एमएसओ ने इमामों के प्रशिक्षण का प्रस्ताव रखा है। संगठन की मंशा है कि भारत की लाखों मस्जिदों के इमामों को कट्टरता और सलफी विचारधारा का विरोध और इससे निपटने के तरीकों का ज्ञान होना चाहिए। एमएसओ इस कार्य में मदद करना चाहती है। संगठन ने सोशल मीडिया और राज्य इकाइयों के माध्यम से इमामों से जुड़ने की कोशिश की है। जो इमाम कट्टरता, सलफीवाद से मुक्ति और मुख्यधारा की मांग को समझना चाहता है, मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ इंडिया यानी एमएसओ उन्हें प्रशिक्षण देने के लिए तैयार है।