BSNL, MTNL को बचाने का प्रस्ताव मोदी सरकार ने ठुकराया
नई दिल्ली: भारत सरकार द्वारा चल रहे संचार कंपनी बीएसएनएल और एमटीएनल की बीमार हालत और बद्तर हो सकती है। क्योंकि, कंपनी के पुनरुद्धार की योजना अब अधर में लटक गई है। जानकारी के मुताबिक वित्त मंत्रालय कथित तौर पर दूरसंचार विभाग (DoT) के 74,000 करोड़ रुपये के बड़े पैकेज को हरी झंडी देने से इनकार किया है। सूत्रों के मुताबिक, वित्त मंत्रालय ने सुझाव दिया है कि DoT कंपनी को पुनर्जीवित करने के लिए कुछ वैकल्पिक प्रस्ताव लेकर आए।
गौरतलब है कि 74,000 करोड़ रुपये के बेलआउट पैकेज के लिए DoT का प्रस्ताव इस आधार पर था कि क्योंकि अगर घाटे में चल रहे BSNL और MTNL को बंद किया जाता है तो उस पर 95,000 करोड़ रुपये का अधिक खर्च आएगा। रिवाइवल पैकेज के पीछे की धारणा, जिसमें बीएसएनएल के 1.65 लाख कर्मचारियों के लिए आकर्षक वीआरएस पैकेज शामिल था, उनकी सेवानिवृत्ति की आयु वर्तमान 60 वर्ष से घटाकर 58 वर्ष कर दी गई थी। इसकी वजह यह थी कि यह कंपनी के वेतन बिल को कम कर देगा जो कि वित्त वर्ष 19 में 77% था।
इसके अलावा, कंपनी को पैकेज के हिस्से के रूप में सरकार द्वारा 4 जी स्पेक्ट्रम प्रदान किया गया था, इसका उद्देश्य था कि वह बाजार में प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम होगी और वित्त वर्ष 2015 के बाद के घाटे को कम करना शुरू कर देगी तथा वित्त वर्ष 2024 से लाभदायक हो जाएगी। कर्मचारियों के वीआरएस भुगतान और रिटायर्मेंट लाभ के भुगतान की भी समीक्षा की गई थी। डीओटी द्वारा तैयार किए गए रिवाइवल पैकेज के मुताबिक वीआरएस भुगतान में 29,182 करोड़ रुपये की लागत आएगी। वहीं 10,993 करोड़ रुपये रिटायरमेंट लाभों के भुगतान में संदर्भ व्यय होंगे। 4G स्पेक्ट्रम के आवंटन में 20,410 करोड़ रुपये का खर्च आएगा और 13,202 करोड़ रुपये का अन्य निवेश 4G सेवाओं को रोलआउट करने के लिए आवश्यक होगा।
उदाहरण के लिए, DoT का तर्क था कि BSNL को बंद करना, जिसने वित्त वर्ष 1919 में 18,865 करोड़ रुपये के राजस्व पर 13,804 करोड़ रुपये का शुद्ध घाटा पोस्ट किया, उसे अपने सभी कर्मचारियों को वीआरएस देने की आवश्यकता होगी और इसके कुल ऋणों का पुनर्भुगतान होगा, जिसकी लागत लगभग 95,000 करोड़ रुपये आएगी। वहीं, इसके विपरीत 74,000 करोड़ रुपये के रिवाइवल पैकेज की लागत कम होगी और इसके कार्यबल को कम करके और इसे 4G स्पेक्ट्रम आवंटित करने से कंपनी प्रतिस्पर्धी बन जाएगी। यह भी तर्क दिया गया था कि बीएसएनएल का रणनीतिक विनिवेश नहीं चलेगा। क्योंकि, दूरसंचार उद्योग में मौजूदा वित्तीय तनाव को देखते हुए इसके लिए कोई लेने वाला नहीं हो सकता है।