नई दिल्ली: त्रिपुरा हाईकोर्ट ने राज्य के मंदिरों में जानवरों और पक्षियों की बलि पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगा दिया है। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को मंदिरों में दान किए जाने वाले पशुओं के वास्ते गौशाला बनाए जाने के लिए जमीन चिह्नित करने का भी निर्देश दिया है। अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘राज्य समेत किसी भी व्यक्ति को त्रिपुरा राज्य के मंदिर परिसर या आसपास किसी भी पशु या जानवर की बलि देने की अनुमति नहीं होगी।’

चीफ जस्टिस संजय करोल और जस्टिस अरिंदम लोध की पीठ ने यह फैसला साल 2018 में दायर एक जनहित याचिका की सुनवाई के बाद दिया। याचिका में पूछा गया था कि क्या राज्य के मंदिरों में पशु बलि एक धर्मनिरपेक्ष कृत्य है? क्या इस प्रथा को प्रतिबंधित करने से धर्म के पालन और प्रचार के मौलिक अधिकार का हनन होगा।

पीठ ने अपने आदेश में गोमाती और पश्चिम त्रिपुरा के डिस्ट्रिक मजिस्ट्रेट और कलेक्टरों को यह भी आदेश दिया कि वे त्रिपुरेश्वरी मंदिर और चतुर्दस देवता बारी मंदिर में इन आदेशों का अनुपालन कराएं। इसके साथ ही संबंधित प्राधिकरण को इन मंदिरों के परिसरों में लगे सीसीटीवी कैमरों की रिकॉर्डिंग की सॉफ्ट कॉपी हर महीने उपलब्ध कराने का भी निर्देश दिया।

अदालत का निर्देश त्रिपुरा के गोमती जिले में त्रिपुरेश्वरी देवी मंदिर में कम से कम 500 वर्षों से प्रचलित पशु बलि पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका में दिए गए एक बिंदु के जवाब में आया है। याचिका में कहा गया था कि क्या पशु बलि को धर्म के एक आवश्यक और अभिन्न अंग के रूप में माना जा सकता है।

यदि धार्मिक अनुष्ठान, रीति, तप या परंपरा पर आधारित है, तो पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के प्रावधानों के बावजूद इसे जारी रखने की अनुमति दी जा सकती है। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि देवी को बलि के नाम पर जानवरों का वध करना सामाजिक बुराई वाली एक प्रथा है। यह संवैधानिक जनादेश और भावना के खिलाफ है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि यह प्रथा जानवरों के प्रति क्रूरता है।

इस बीच, राज्य के वकील ने कहा कि पशु बलि की प्रथा “दश महाविद्या (हिंदुओं की देवी के दस रूप) की पूजा की तांत्रिक पद्धति की हिंदू रीति-रिवाजों की लंबी प्रक्रिया है।”