मुसलमानों के मुद्दे मीडिया तय नहीं कर सकती: प्रशांत टंडन
असम, कश्मीर, कट्टरता और शिक्षा के विषय पर MSO का दो दिवसीय कार्यक्रम आयोजित
अजमेर: मुसलमानों के मुद्दे अन्य भारतीयों के मुद्दों से अलग नहीं हैं। मुसलमान भी मानवाधिकार उल्लंघन, रोज़गार, शिक्षा और स्वास्थ्य से जूझ रहे हैं और यह समस्या सबकी हैं। रह गई बात तीन तलाक़ जैसे मुद्दों की, तो यह मुद्दे मीडिया किसी राजनीतिक दलों को फायदा पहुंचाने के लिए स्थापित कर रही है।
यह बात प्रख्यात पत्रकार प्रशांत टंडन ने यहाँ मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इंडिया यानी एमएसओ के दो दिवसीय राष्ट्रीय स्तर पर कही।
पत्रकार प्रशांत टंडन ने कहाकि मुसलमान भी ढांचागत भ्रष्टाचार, स्वास्थ्य और सेवा में कमी और शिक्षा के अभाव के साथ साथ बेरोज़गारी की समस्या से जूझ रहे हैं। आज जबकि पिछले 23 बरसों की सबसे बुरी बेरोज़गारी की स्थिति है, हमें यह विचार करना चाहिए इससे मुसलमान भी प्रभावित हैं। उन्होंने मीडिया और कॉर्पोरेट जगत में मुसलमानों की कमजोर नुमाइंगदी का ज़िक्र करते हुए कहाकि इसी का प्रभाव मीडिया की मुस्लिम विरोधी कवरेज के रूप में दिखाई देता है। मीडिया कॉर्पोरेट के हितों का विस्तार है और मुसलमान उसमें सबसे प्रमुख लक्ष्य है। उन्होंने परिस्थितियों से जूझने के लिए डैटा बनाने, अधिक शैक्षिक वर्ग को तैयार करने और राजनीतिक प्रतिनिधित्व बढ़ाने की अपील की। टंडन ने कहाकि पिछले लोकसभा चुनाव में सेकूलर दलों ने भी मुसलमानों को बहुत कम टिकट दिए। ना सिर्फ ध्रुवीकरण बल्कि मुसलमानों को कम टिकट दिए जाने से भी राजनीतिक प्रतिनिधित्व घट रहा है। इसके लिए मुसमलानों को राजनीतिक तैयारियों पर जोर देना चाहिए।
एमएसओ के पूर्व अध्यक्ष और तहरीक उलामा ए हिन्द के प्रमुख मुफ्ती ख़ालिद अय्यूब मिस्बाही ने कहाकि कुरान में अल्लाह ने स्वयं को रहीम और रहमान पुकारा है। यह इस बात का संकेत है कि रहम और कृपा को इस्लाम का प्रमुख घटक बताया गया है। इस आधार पर यह भी देखा जाना चाहिए कि नबी मुहम्मद साहब (सल्ल) को भी अल्लाह ने ‘ज्ञान’ की बजाय ‘रहमत’ के नाम से अधिक पुकारा। इस्लाम की मूल आत्मा रहम और करम पर है। यही मानवता का सार है। उन्होंने इस संदर्भ में ज़ायोनिज्म और वहाबिज्म का ज़िक्र करते हुए इसे मानवता और इस्लाम के लिए ख़तरा बताया। मुफ्ती खालिद ने बताया कि जबसे ज़ायोनिज्म और वहाबिज्म का उभार हुआ है, पूरी मानवता धार्मिक कट्टरता से जूझ रही है और कई अन्य धार्मिक कट्टरता की विचारधारा इसके प्रतिकार, नकल और बदले में खड़ी हो गई हैं। इस संयुक्त नुक़सान ने इस्लामी विश्व और मुसलमानों का निजी नुकसान किया है। इस हवाले से ज़ायोनिज्म और वहाबिज्म से लड़ने की आवश्यकता है।
पत्रकार अख़लाक़ उस्मानी ने सोशल मीडिया का जिक्र करते हुए कहाकि मुख्यधारा का मीडिया अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। तेज़ इंटरनेट और सस्ते यंत्रों की मदद से मीडिया का स्वरूप बदल जाएगा। उन्होंने कहाकि सोशल मीडिया पर फेक न्यूज़ चलाकर इसे दूषित करने की साजिश की जा रही है जिसे आधार बनाकर इस पर रोक लगाने के लिए परिस्थितियाँ बनाई जा रही हैं। उस्मानी ने कहाकि इस समय सोशल मीडिया के इस्तेमाल की आवश्यकता है क्योंकि यह सेंसर और एडिटर से स्वतंत्र है। इस स्वतंत्रता का संभलकर समाज और देश की उपयोगिता में इस्तेमाल किया जा सकता है।
कर्नाटक में मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इंडिया यानी एमएसओ से आए ज़ैन शरीफ ने कहाकि विश्व की शांति को वहाबिज्म से ख़तरा है। यह विचारधारा इस्लाम को नुकसान पहुंचाने के लिए ब्रिटेन ने इस विचारधारा को पाला पोसा। आज आतंकवाद के तौर पर यह विश्व के लिए असीम ख़तरे का कारण बन चुका है।
मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इंडिया यानी एमएसओ के अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय कैम्पस के पूर्व अध्यक्ष हैदर मिस्बाही ने कहाकि आम तौर पर मुस्लिम नौजवान उच्च शिक्षा में कम हैं लेकिन उस पर भी यह परिस्थिति बहुत ख़राब है कि वह करियर को लेकर योजनाबद्ध तरीके से आगे नहीं बढ़ रहे हैं। उन्होंने मदरसा पृष्ठभूमि से आने वाले विद्यार्थियों को यूनिवर्सिटी में अन्य मानवीकी पढ़ने पर बल दिया।
आरिफ बरकाती, सकलैन चिश्ती और सैयद सलमान जाफरी ने सभी को शुक्रिया अदा किया। इस अवसर पर मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इंडिया यानी एमएसओ के अध्यक्ष शुजात अली क़ादरी ने सभी मेहमानों का परिचय देते हुए द्वितीय दिवस पर टिप्पणी करते हुए बताया कि दूसरे और अंतिम दिन असम में एनआरसी और मानवाधिकार मुद्दे पर चर्चा होगी।