क्या कोई ऐसा भूकंप होगा जो पूरी दुनिया को मिटा देगा?
24 सितंबर, 2019 की शाम को, पाकिस्तान और भारत के विभिन्न हिस्सों में भूकंप के झटके महसूस किए गए, जिसकी तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 6.3 थी। जिसमें कुछ लोगों के मरने की भी खबरें आई हैं। दुनिया में समय-समय पर भूकंप आते हैं, और कभी-कभी भूकंप बस्तियों और क्षेत्रों को नष्ट कर देते हैं। क्या दुनिया में एक भूकंप भी आएगा जो दुनिया की पूरी व्यवस्था को बर्बाद कर देगा? वैज्ञानिक भी इसे कुछ हद तक स्वीकार करते हैं, आइए इसे कुरान और हदीस की रोशनी में समझने की कोशिश करें।
पहले, आइए समझते हैं कि ज़लज़ले (भूकंप) क्यूँ आते हैं?
भूकंप और सुनामी आने के कारणों पर लोगों ने बड़ी बड़ी किताबें लिखी हैं कि आख़िर भूकंप क्यूँ आते है? लेकिन वास्तविक बात यह है जिसका इंकार नहीं किया जा सकता कि आज साइंस (विज्ञान) ने बहुत विकास किया है, कुछ लोग चाँद पर जीवन के आसार तलाश करने में लगे हुए हैं, कुछ देश बड़े बड़े मिसाइल बनाकर एक दूसरे को तबाह करने की व्यवस्था कर रहे हैं, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और सोशल मीडिया के ज़रिए पूरी दुनिया को एक गावं के बराबर बनाने की कोशिश की जा रही हैं, जिससे एक क्षेत्र की ख़बर मिनटों में पूरी दुनिया में देखी और पढ़ी जा सके, लेकिन आजतक भूकंप को रोकने या कम से कम उसको टालने या उसकी तबाही को कम करने की कोई भी व्यवस्था पूरी दुनिया के वैज्ञानिक मिलकर भी नहीं कर पाए हैं। भूकंप को रोकना तो बहुत दूर की बात है, उसके आने के वक़्त (समय) का ठीक अनुमान लगाना भी उनके लिए आजतक संभव नहीं हुआ। वैज्ञानिक दुनिया के अनोखे निज़ाम (प्रणाली) को देखकर यही कहने पर मजबूर हैं कि अभी तो वह इस दुनिया का बहुत थोड़ा हिस्सा ही समझ सके हैं। अब थोड़ा सोचें कि दुनिया का इतना बड़ा निज़ाम (प्रणाली) किसी बड़ी शक्ति के बग़ैर कैसे चल सकता है? बिलकुल नहीं, बिलकुल नहीं, इसलिए भूकंपों से सबक़ हासिल करें और इस पूरी काएनात के ख़ालिक़, मालिक और राज़िक़ की तरफ़ लोटते हुए उसकी मख़लूक़ात से निश्चित रूप से फ़ायदा उठाएँ, लेकिन उसके अह़काम (आदेशों) का पालन करते हुए, क्यूंकि एक दिन ऐसा ज़रूर आएगा कि दुनिया के किसी बड़े देश के प्रमुख (प्रबंधक) होने के बावजूद, दुनिया में सबसे ज़्यादा धन रखने के बावजूद, दुनिया के बड़े से बड़ा वैज्ञानिक बनने के बावजूद और दुनिया में बहुत ज़्यादा लोकप्रियता प्राप्त करने के बावजूद हम भी सभी इंसानों की तरह एक दिन ज़मीन में दफ़न कर दिये जाएंगे, और लोग धीरे धीरे हमें भूल जाएंगे। पूर्ण रूप से आज साइंस (विज्ञान) विकास (उन्नति) करने के बावजूद भी यह समझने से असमर्थ है कि मौत का मज़ा न चखने की इच्छा रखने के बावजूद आख़िर सभी इंसान मर ही क्यूँ जाते हैं और वह क्यूँ पैदा हुए हैं?
भूकंप के जो दुनयावी कारण ज़िक्र (चर्चा) किए जाते हैं, उनका हम इंकार नहीं करते, क्यूंकि दुनिया को अल्लाह तआला ने कारणों का घर बनाया है, लेकिन हमारा यह ईमान और अक़ीदा (विश्वास) है कि जिस तरह पूरी दुनिया ख़ुद बख़ुद (अपने आप) स्थापित नहीं हो गई, इसी तरह भूकंप अपने आप नहीं आते, असल में इसके पीछे अल्लाह का ह़ुक्म (आदेश) होता है, इसिलए अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है: “लोगों ने अपने हाथों से जो कमाई की, उसकी वजह से सूखे और गीलेपन (तर) में भ्रष्टाचार (दंगा) फैला, ताकि उन्होंने जो कार्य किये हैं अल्लाह उनमें से कुछ का मज़ा (स्वाद) उन्हें चखाए, शायद वह बाज़ आ जाएँ (रुक जाएँ)”। (सूरह रूम: 41) यानी दुनिया में जो आम (सार्वजनिक) मुसीबतें लोगों पर आईं, जैसे अकाल, आफ़त (महामारी), भूकंप, तानाशाहों (अत्याचारियों) का शासन, उनका असल कारण यह था कि लोगों ने अल्लाह तआला के ह़ुक्मों (आदेशों) का उल्लंघन किया और इस तरह यह मुसीबतें अपने हाथों मोल लीं और उनका एक लक्ष्य यह था कि मुसीबतों से ग्रस्त (पीड़ित) होकर लोगों के दिल कुछ नरम पड़ें और वह अपने बुरे कार्यों से रुक जाएँ।
नबी-ए-अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और स़ह़ाबा-ए-किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम से भूकंप के आने से कारण लिखे गए हैं, उनमें से कुछ निम्नलिखत हैं: लोगों में ज़िना (अनैतिक यौन संबंध) का आम होना, सूद (ब्याज) का आम होना, शराब का बहुत ज़्यादा पिया जाना, लोगों का गाने बजाने को अपना धंधा (व्यवसाय) बनाना, अच्छाईयों का ह़ुक्म (आदेश) और बुराईयों से लोगों को रोकने का काम बंद कर देना, लोगों का इन बुरे कार्यों को केवल करना ही नहीं बल्कि उन्हें जाइज़ (वैध) और वक़्त (समय) के ज़रूरत समझने लगना।
भूकंप आने पर हमें अल्लाह की तरफ़ लोटते हुए अपने गुनाहों से माफ़ी मांगनी चाहिए, बहुत ज़्यादा तौबा और इस्तिग़फ़ार (माफ़ी) करना चाहिए और बड़े गुनाह ख़ासकर (विशेषकर) ऊपर वर्णित गुनाहों से बचने का अहतिमाम (व्यवस्था) करना चाहिए।
किसी जगह भूकंप आने से यह समझकर कि यह अल्लाह का अज़ाब है भूकंप से पीड़ित लोगों की मदद (सहायता) करना न छोड़ें, बल्कि उनकी मदद (सहायता) करना हमारी दीनी, इंसानी और नैतिक ज़िम्मदारी है।
अल्लाह ने पवित्र कुरान में एक भूकंप का उल्लेख किया है जिसके बाद दुनिया खत्म हो जाएगी। कृपया सूरए आज़-ज़िलज़ल का अनुवाद पढ़ें जो उसी भूकंप के बारे में बात करता है।
بِسْمِ اللهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
إِذَا زُلْزِلَتِ الْأَرْضُ زِلْزَالَهَا(1) وَأَخْرَجَتِ الْأَرْضُ أَثْقَالَهَا(2) وَقَالَ الْإِنْسَانُ مَا لَهَا(3) يَوْمَئِذٍ تُحَدِّثُ أَخْبَارَهَا(4) بِأَنَّ رَبَّكَ أَوْحَىٰ لَهَا(5) يَوْمَئِذٍ يَّصْدُرُ النَّاسُ أَشْتَاتًا لِّيُرَوْا أَعْمَالَهُمْ(6) فَمَن يَّعْمَلْ مِثْقَالَ ذَرَّةٍ خَيْرًا يَّرَه(7) وَمَن يَّعْمَلْ مِثْقَالَ ذَرَّةٍ شَرًّا يَّرَه(8)
सूरह अज्ज़िलज़ाल का अनुवाद: जब ज़मीन (पृथ्वी) अपने भूकम्प (भूचाल) से हिला (झंझोड़) दी जाएगी, और ज़मीन अपने बोझ बाहर निकाल देगी और इंसान कहेगा कि इसको क्या हो गया है? उस दिन ज़मीन अपनी सारी (सभी) ख़बरें बता देगी, क्यूंकि तुम्हारे रब ने उसे यही ह़ुक्म (आदेश) दिया होगा। उस दिन लोग विभिन्न टोलियों में वापस होंगे, ताकि उनके कार्ये उन्हें दिखा दिए जाएँगे, जिसने ज़र्रा (कण) बराबर (थोड़ा सी) कोई अच्छाई की होगी वह उसे देखेगा, और जिसने ज़र्रा बराबर (थोड़ा सी) कोई बुराई की होगी, वह उसे देखेगा।
आइए हम समझते हैं कि अल्लाह ने सूर अज़-ज़िलज़ल में क्या कहा है।
शब्दों की तह़क़ीक़ (अनुसंधान): “إذَا इज़ा” का अर्थ “जब” है, लेकिन जब इस तरह “इज़ा” से किसी चीज़ का बयान किया जाता है तो किसी घटना की याद दिलाना मक़स़द (उद्देश्य) होता है, यानी उस समय को याद रखो, उस दिन से सावधान रहो जबकि ऐसा ऐसा होगा। “ज़ुल्ज़िलत” “ज़िल्ज़ाल” से है, यानी “हिला देना”। “अलअरज़ु” का अर्थ ज़मीन (पृथ्वी) है, यानी उस उस वक़्त (समय) को याद करो जब ज़मीन (पृथ्वी) हिला दी जाएगी। “ज़िल्ज़ालहा” से मालूम हुआ कि यह आम ज़लज़ला (भूकम्प) नहीं बल्कि अपनी प्रकृति (स्वरूप) का अनोखा ज़लज़ला (भूकम्प) होगा, जिसके बाद दुनिया का पूरा निज़ाम (प्रणाली) ही उलट पलट (बर्बाद) हो जाएगा, और इसके बाद सभी लोग दोबारा जिंदा किए जाएँगे।
क़ुरान और ह़दीस़ की रोशनी में उम्मत-ए-मुस्लिमा की सहमति है कि दो बार “स़ूर” फूँका जाएगा, पहली बार “स़ूर” फूँकने के बाद पूरी दुनिया ख़त्म (नष्ट) हो जाएगी और दूसरी बार “स़ूर” फूँकने के बाद ह़ज़रत आदम अलैहिस्सलाम से लेकर क़यामत तक आने वाले सभी मुर्दे जिंदा होकर ज़मीन से उठेंगे। दूसरी आयत से मालूम होता है कि इस सूरह में दूसरी बार “स़ूर” फूँकने के वक़्त (समय) आने वाला दर्दनाक ज़लज़ला (भूकंप) मुराद है।
“अस़क़ाल” “स़िक़्ल” की जमा (बहुवचन) है, जिसका अर्थ “भार” (वज़न) और “बोझ” है, इससे मुराद मुर्दे हैं जो ज़मीन में दफ़न हैं। जिन मुर्दों को दफ़न करने के बजाए जला दिया जाता है वह भी मानो ज़मीन ही दफ़न किये जाते हैं, क्यूंकि उनकी जली हुई राख और हड्डी आदि सब ज़मीन ही का हिस्सा (अंग) बन जाती हैं, इसी तरह वह लोग जो “सुनामी” के कारण मर जाते हैं, क्यूंकि हक़ीक़त (वास्तव) में समुद्र (सागर) भी ज़मीन ही का एक हिस्सा (भाग) है। “स़िक़्ल” से वह खज़ाने भी मुराद हैं जो ज़मीन में मौजूद हैं, यानी दूसरी बार “स़ूर” फूँकने के बाद ज़मीन तमाम इंसानों और खज़ानों को बाहर निकाल देगी। मिसाइल और परमाणु बम के दौर में इसको समझना बहुत आसान हो गया है, क्यूंकि वर्तमान समय में इंसान की बनाई हुई नई टेक्नोलोजी के ज़रिए कमरे में बैठकर हज़ारों किलोमीटर की दूरी पर बम गिराकर किसी भी क्षेत्र को तुरंत ही (उसी समय) बर्बाद (तबाह) किया जा सकता है।
“व क़ालल इन्सानु मा लहा”: उस दर्दनाक स्थिति में इंसान पर जो असर पड़ेगा, उसको अल्लाह तआला बयान फ़रमाता है: इंसान घबराकर कह उठेगा कि अरे, इस ज़मीन को क्या हो गया है कि यह तो टिकने का नाम ही नहीं ले रही।
इंसानों के अच्छे बुरे सभी कार्यों को धरती बयान कर देगी
“यवमइज़िन्न तुह़द्दिस़ु अख़बारहा, बिअन्ना रब्बका अवह़ालहा”: उस दिन ज़मीन अपनी पूरी ख़बरें बता देगी, क्यूंकि तुम्हारे रब ने उसे यही ह़ुक्म (आदेश) दिया होगा, यानी आल्लाह तआला जो ज़मीन और आसमान का पैदा करने वाला है, उसके ह़ुक्म (आदेश) से सभी इंसानों के अच्छे बुरे सभी कार्यों को ज़मीन बयान कर देगी। जैसा कि ह़ुज़ूर-ए-अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: “जिस दिन ज़मीन अपनी तमाम (पूरी) ख़बरें बता देगी। तथा नबी-ए-अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: “क्या तुम जानते हो कि ज़मीन की ख़बरें क्या होंगी? स़ह़ाबा-ए-किराम (रज़ियल्लाहु अन्हुम) ने अर्ज़ (कहा) किया: अल्लाह और उसका रसूल ही बेहतर जानता है। नबी-ए-अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: ज़मीन की ख़बरें यह होगी कि वह हर मर्द और औरत पर गवाही देगी कि उसने ज़मीन पर क्या क्या काम किया है और वह बताएगी कि उस व्यक्ति ने उस समय में यह-यह काम किया है। (तिरमिज़ी) यानी जिस तरह बैंक से पूरा ब्यौरा (विवरण) मालूम किया जा सकता है कि खाते में कितना पैसा कहाँ कहाँ जमा किया गया और किस तारीख़ में किस ATM मशीन से कितना पैसा निकाला गया। आजकल WhatsApp के ज़रिए यह पता लगाया जा सकता है फ़लाना (वह) व्यक्ति कहाँ कहाँ जाता है और उसने कौन सा पल कहाँ गुज़ारा (बिताया)। सरकार की जाँच टीम के मांगने पर किसी भी व्यक्ति की गतिविधि की पूरी जानकारी सोशल मीडिया के मालिकों से प्राप्त की जा सकती है। इंसान समझता है कि उसने इन्टरनेट या WhatsApp से पूरी जानकारी मिटा दी हैं, परंतु उसे मालूम होना चाहिए कि उसका लिखा हुआ या बोला हुआ एक एक शब्द और किसी भी व्यक्ति को शेयर (भेजा हुआ) किया हुआ एक एक फ़ोटो इंसान की तैयार की हुई टेक्नोलोजी में सुरक्षित है, जो किसी भी वक़्त (समय) सामने लाया जा सकता है। आजकल CCTV कैमरे से बहुत सी जानकारी सुरक्षित हो जाती है। इसी तरह ज़मीन अल्लाह के ह़ुक्म (आदेश) से इंसान की पूरी ज़िंदगी के एक एक पल का रिकॉर्ड सेकेंडों में निकाल देगी और इंसान उसको देखकर हक्का-बक्का (भौंचक्का) रह जाएगा और कहेगा कि आज इस ज़मीन को क्या हो गया है।
“यवमइज़िं यस़दुरुन नासु अशतातल लियुरव अअ़मालहुम:” इसके दो अर्थ हो सकते हैं, एक याह कि हर एक अकेला अपनी व्यक्तिगत (अलग अलग) स्थिति में होगा, इसका समर्थन क़ुरान-ए-करीम से भी होता है, अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है: “अकेला हमारे पास आएगा”, (सूरह मरयम: 80) इनमें से हर एक क़यामत के दिन अल्लाह तआला के दरबार में अकेला हाज़िर (उपस्थित) होगा”, (सूरह मरयम: 95)। दूसरा अर्थ यह भी हो सकता है, कि वह सभी लोग जो हज़ार वर्ष के बीच जगह जगह मरे थे, ज़मीन के कोने कोने से झुंड के झुंड (दल के दल) चले आ रहे होंगे, जैसा कि अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है: “जिस दिन स़ूर फूँका जाएगा तो तुम फ़ौज के फ़ौज आओगे”, (सूरह नबा: 18)। बहरह़ाल जिस तरह दुनिया में लोग Power Point Presentation के ज़रिए अपनी या अपनी कंपनी की उपलब्धि (प्रदर्शन) पैश करते हैं, इसी तरह बल्कि इस से लाखों गुना ज़्यादा प्रमाणिक जानकारी के साथ हर व्यक्ति को उसके किये हुए सभी कार्ये दिखाए जाएंगे।
फ़मयं यअ़मल मिस़क़ाला ज़र्रतिन ख़यरयं यरह, वमयं यअ़मल मिस़क़ाला ज़र्रतिन शर्रयं यरह:” यह आयत पहली आयत की तफ़स़ील (ब्यौरा) बयान कर रही है कि जिसने थोड़ी सी भी नेकी की होगी वह भी उसके सामने आएगी और जिसने थोड़ी सी भी बुराई की होगी वह भी उसके सामने आएगी। यहाँ यह बात याद रखनी है कि हर मोमिन और काफ़िर की छोटी बड़ी नेकी या बुराई उसके सामने आएगी तो ज़रूर, लेकिन उस नियम के अनुसार आएगी जो अल्लाह तआला ने क़ुरान-ए-करीम में दूसरी जगहों पर ज़िक्र फ़रमाई है, यानी एक मोमिन यह देखेगा कि उससे नेकियों के साथ वह वह गलतियाँ भी हुई हैं लेकिन अल्लाह तआला ने उसकी इन इन नेकियों को इनका कफ़्फ़ारा बना दिया है, इसी तरह एक काफ़िर यह देखेगा कि उसने बुराइयों के साथ कुछ नेक काम भी किये हैं, लेकिन वह नेक काम उसके उन बुरे कार्यों और विश्वास (विचारों) के कारण नष्ट कर दिए गए या उनका दुनिया में ही कोई बदला दे दिया गया था, क्यूंकि आख़िरत की कामयाबी (सफलता) के लिए सबसे बुनियादी शर्त अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाना है। सांसारिक जीवन के अच्छे बुरे कार्ये देखने के बाद हर व्यक्ति अपना ठिकाना समझ जाएगा। इसी को अल्लाह तआला ने सूरह “अलक़ारिआत” में बयान फ़रमाया है: “जिस व्यक्ति के पलड़े भारी होंगे (यानी जिसने दुनिया में अच्छे कार्ये किये होंगे) तो वह पसंदीदा जीवन में होगा (यानी जन्नत में होगा) और जिसके पलड़े हलके होंगे (यानी जिसने दुनिया में अपनी चाहत की पैरवी (पालन) की होगी) तो उसका ठिकाना एक गहरा गड्ढा होगा, और तुम्हें क्या मालूम कि वह गहरा गड्ढा क्या चीज़ है? वह एक दहकती हुई आग है (जिसमें अल्लाह तआला के नाफ़रमानों (अपराधियों) और पापियों को डाला जाएगा)।