नई दिल्ली: विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि भारत नेबरहुड फर्स्ट (पड़ोसी पहले) की नीति के तहत अपने पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों को नई ऊंचाई देने का प्रयास कर रहा है, लेकिन एक पड़ोसी (पाकिस्तान) है जहां से रोज नई-नई चुनौतियां सामने आती हैं। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान का नाम लिए बिना कहा कि सभी पड़ोसियों के बीच वह अकेला ऐसा देश है जो हमारे लिए अनोखी चुनौती बन गया है। जयशंकर मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला 100 दिन पूरा होने पर विदेश मंत्रालय की उपलब्धियां गिनवा रहे थे।

विदेश मंत्री ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, 'एक पड़ोसी (पाकिस्तान) से अलग तरह की चुनौती मिलती रहती है। इसलिए जब तक सीमा पार आतंकवाद पर लगाम नहीं लगाया जाता, तब तक उससे संबंध सुधारना एक चुनौती होगी।' उन्होंने कहा कि भारत की विदेशी नीति की सफलता ही है कि आर्टिकल 370 के कुछ प्रावधान खत्म करने और सीमापार आतंकवाद जैसे मुद्दों पर विदेशों से समर्थन मिला है।

उन्होंने कहा कि पहले 100 दिनों में हम 'पड़ोसी पहले' की नीति पर आगे बढ़े। इस नीति के तहत हम पड़ोसी देशों के साथ कनेक्टिविटी, कॉमर्स, कॉन्टैक्ट को बढ़ावा देते हैं। जयशंकर ने बताया, 'इसी वजह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दूसरे कार्यकाल का पहला विदेश दौरा मालदीव से शुरू किया। वह श्रीलंका और भूटान भी गए। मैं खुद भूटान, मालदीव, बांग्लादेश और नेपाल गया। अब हमारा म्यामांर, श्रीलंका और अफगानिस्तान का दौरा होगा।'

जयशंकर ने कहा कि भारत की विदेश नीति ने पहले की सरकारों की विदेश नीति के मुकाबले नया मोड़ लिया है। सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला 100 दिन पूरा होने पर विदेश मंत्रालय ने अपनी उपलब्धियां गिनाईं।

उन्होंने पहले की विदेश नीति और अब की विदेश नीति में तीन प्रमुख अंतर गिनाए और कहा कि अब सक्रिय कूटनीति हमारी विदेश नीति का प्रमुख अंग हो चुकी है। उन्होंने कहा कि विदेशों के दौरे, विदेशी नेताओं से बातचीत वगैरह हमारी सक्रिय कूटनीति का हिस्सा हैं। इनके कुछ अच्छे परिणाम तुरंत तो कुछ भविष्य में देखने को मिलेंगे।

विदेश मंत्री ने कहा कि पहले और अब की विदेश नीति में बहुत अंतर आया है। उन्होंने कहा, 'इसे समझने के लिए तीन प्रमुख बिंदुओं पर नजर डालनी होगी। पहला यह कि हमने माना है कि जो हम अपने देश में करते हैं और कूटनीति के स्तर पर जो विदेश में करते हैं, उसका सीधा-सीधा संबंध है। देश की राष्ट्रीय, आर्थिक और सामाजिक प्रगति का अंतरराष्ट्रीय कूटनीति से गहरा संबंध है।'

हमारी विदेश नीति का मकसद वैश्विक क्षमता, दुनिया के अलग-अलग देशों की टेक्नॉलॉजी, दुनियाभर में हो रहे अच्छे काम, वैश्विक संसाधनों को अपने हित में इस्तेमाल करने का है। उन्होंने कहा, 'आप देख सकते हैं कि हमारे नेताओं के लगातार विदेश दौरे हो रहें हैं और विदेशी नेता हमारे यहां आ रहे हैं। इसमें कई इकनॉमिक, टेक्नॉलजी और प्रॉजेक्ट आधारित फैसले हो रहे हैं। स्मार्ट सिटी, नदियों की सफाई आदि से जुड़ी पहलों में इन्हें महसूस किया जा सकता है। कई क्षेत्रों में आपसी सहयोग विदेश नीति का प्रमुख अंग बन गया है।' विदेश मंत्री ने भारतीय विदेश नीति के पांच बड़े केंद्र गिनाए- नॉर्थ अमेरिका, यूरोप, नॉर्थ-ईस्ट एशिया, आसियान और खाड़ी देश।

जयशंकर ने पहले की सरकारों के मुकाबले मौजूदा सरकार की विदेश नीति में दूसरा अंतर बताते हुए कहा कि अब अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा को विदेश नीति से जोड़ा है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लक्ष्य हमारी विदेश नीति के लक्ष्य से मिलते-जुलते हैं। तीसरे अंतर के रूप में उन्होंने कहा कि हमारे अंदर ग्लोबल अजेंडा तय करने में अपनी भूमिका बढ़ाने की चाहत बढ़ी है। उन्होंने कहा, 'जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दे पर आप भारत के असर को महसूस कर सकते हैं। अंरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की छवि मजबूत हुई है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को मान्यता मिलने का संदर्भ दिया।'

जयशंकर ने कहा कि भारत अब एक्सेटेंडड नेबरहुड (विस्तृत पड़ोसियों) की नीति पर भी जोर दे रहा है। उन्होंने कहा कि हम अपने एक्सटेंडेड नेबरहुड पॉलिसी के तहत देशों से सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और आर्थिक संबंध बढ़ा रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारी विदेश नीति में लुक ईस्ट से लेकर आसियान और पश्चिमी देश, तक का विस्तृत आयाम है। उन्होंने कहा कि पूर्व और पश्चिम के देशों में भारत की नई छवि बन रही है। हम इन देशों के साथ निवेश, सुरक्षा समेत तमाम प्रमुख क्षेत्रों में सहयोग बढ़ा रहे हैं। हमें इन देशों का आतंकवाद के खिलाफ सहयोग मिल रहा है।