मफादपरस्ती, ख़ौफ़, बुज़दिली व मौक़ापरस्ती और जमीअत
लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी
राज्य मुख्यालय लखनऊ। दुनियाँ से मोहब्बत , ख़ुदगर्ज़ी , मफाद परस्ती , डर , ख़ौफ़ ,बुज़दिली व मौक़ापरस्ती इंसान से क्या-क्या नही करा देती इसका जीता जागता सबूत जमीअत के दोनों धड़ों की ओर से अपनाए जा रहे नए रूख से साफ हो जाता है अब यही कहा जा सकता है कि ये कहाँ आ गए हम “कैसे-कैसे ऐसे वैसे हो गए ऐसे वैसे कैसे-कैसे हो गए”।एक तरफ़ जमीअत लोगों में यह संदेश देती है कि हमारा सियासत से कोई वास्ता नही है वही ऐसे विषयों पर चर्चा करती है जिनका सीधा-सीधा वास्ता सियासत से है अब सवाल उठता है कि एक धड़े का मोहन भागवत से मिलना और दूसरे धड़े का कश्मीर के हालात पर सरकार के रूख का समर्थन करना क्या है ? जब आप एक धार्मिक संस्था हैं तो गंभीर मामलों पर बोलते ही क्यों हैं| माना कि यानी जमीअत ने 1947 से सियासत नही की अगर की होती तो शायद आज मुसलमान की हालत दलितों से बदतर न होती।विश्व प्रसिद्ध इस्लामिक शिक्षण संस्थान दारूल उलूम के मोहतमिम (वीसी) स्व. हजरत मौलाना मरगूबुर्रहमान साहब के निधन के बाद बनाए गए मोहतमिम (वीसी) गुलाम मौहम्मद वस्तानवी के द्वारा दिए गए एक बयान के बाद मोहतमिम (वीसी) के पद से हटना पड़ा था या यूँ कहे कि हटाया गया था तो गलत नही होगा।पूर्व वीसी दारूल उलूम देवबन्द गुलाम मौहम्मद वस्तानवी ने एक पत्रकार के द्वारा ये पूछे जाने पर कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का गुजरात में कामकाज कैसा है इस पर उन्होने कहा था कि नरेन्द्र मोदी ने गुजरात का विकास किया है इसको लेकर इतना बखेड़ा हुआ था कि उन्हें दारूल उलूम देवबन्द के मोहतमिम पद से जाना पड़ा था| ये वही लोग थे जो आज RSS और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों से सहमति जता रहे है।गुलाम मौहम्मद वस्तानवी पूर्व वीसी दारूल उलूम देवबन्द दुनियाँवी शिक्षा के भी हामी थे उनके अक्कल कुँआ मदरसे में लगभग 12 हज़ार बच्चे दीनी शिक्षा के साथ-साथ दुनियाँवी शिक्षा भी लेते है लेकिन तब उनकी इस बात का भारी विरोध हुआ था परन्तु आज जमीअत उलमा-ए-हिन्द (महमूद गुट) मदरसों को हाईस्कूल तक की शिक्षा का इंतज़ाम करने का प्रस्ताव पास कर रही है और कह रही है कि दुनियाँवी शिक्षा का भी प्रबंध मदारिस करें, जब गुलाम मौहम्मद वस्तानवी के इस रूख का आप विरोध करते थे तो आज क्या बदलाव आ गया कि आपको उसी ट्रैक पर गाड़ी ले जानी पड़ रही है अगर यह सही है तो वस्तानवी की सोच का विरोध क्यों किया गया था जब यही रास्ता सही था| इसका मतलब गुलाम मौहम्मद वस्तानवी आपकी सोच से लगभग दस साल आगे चल रहे थे क्योंकि जो बात जमीअत आज सोच रही है उसको वस्तानवी दस साल पहले सोच रहे थे।अगर आपका दस साल वाला रूख गलत था तो अब सवाल उठता है कि क्या वस्तानवी के उस रूख का विरोध करने वाले क्या वस्तानवी से माफ़ी माँगेंगे जो आज दुनियाँवी शिक्षा का समर्थन कर रहे हैं ? सुना है माफ़ी माँगने वाला बड़ा होता। जमीअत के दोनों धड़ों के रूख के बाद देशभर के बुद्धिजीवी इसपर बहस कर रहे है कि जमीअत ये क्या कर रही है, इसपर जमीअत के भक्त कह रहे है कि मौलानाओ पर उँगलियाँ नही उठानी चाहिए पता नही क्या स्ट्रेटेजी होगी जिसकी वजह से ये सब बातें कहनी पड़ी| महमूद मदनी एक वीडियो में कहते सुने जा सकते है वो कह रहे है कि हम बाईचांस इण्डियन नही बाई चुआइस इण्डियन है यहाँ तक तो ठीक है उसके बाद जो महमूद कह रहे है उसपर सवाल उठना लाज़मी है।हजरत औरंगज़ेब रहमतुल्ला अलैह पर मीडिया में जो कुछ कहा जा रहा है कि हजरत औरंगज़ेब रहमतुल्ला अलैह पर महमूद कहते है कि अगर मेरे से मालूम करे कि हजरत औरंगज़ेब रहमतुल्ला अलैह और शिवाजी राव में आप किसको कितने नंबर देंगे तो इस पर महमूद कहते कि मैं हजरत औरंगज़ेब रहमतुल्ला अलैह को दस में से आठ नंबर दूँगा और शिवाजी राव को दस में से दस नंबर दूँगा| रोना आता है उनकी सोच पर, क्या होने का दिखावा करते है और है क्या ? उनके भक्तों का कहना है कि महमूद ने ये बात नही कही माना महमूद ने न 370 पर कुछ कहा और न ही हजरत औरंगज़ेब रहमतुल्ला अलैह पर कुछ कहा, उनको वैसे ही बदनाम किया जा रहा है लेकिन मीडिया में छप रही उनके हवाले से ख़बरों का खंडन नही आता है तो इसका मतलब यही हुआ न कि जो कुछ छप रहा है उससे महमूद मदनी सहमत है और अगर सहमत है तो सवाल भी होगे फिर भक्त तिलमिला क्यों रहे है। मोहन भागवत से मिलने के बाद हजरत मौलाना सैयद अरशद मदनी से हमने मिलने की कोशिश की जो मुसलमान के दिलो दिमाग में शंकाएँ है उनको लेकर, हम मिले भी तमाम बातचीत हुई जिसपर हजरत मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि मुसलमान को पत्रकारिता में नही होना चाहिए| ये हैं हमारे रहनुमा जो ये बात कह रहे है इसका मतलब हुआ कि कोई सवाल करने वाला नही होना चाहिए न पत्रकार होगा न सवाल करेगा, भक्त भी यही कहते है कि सवालियां निशान नही लगाना चाहिए| क्यों नही सवाल उठाना चाहिए ? जब हम आपके अच्छे क़दमों का स्वागत करते है तो गलत का विरोध करना गलत क्यों है ? नबी करीम सल्ललहाहु अलैही वसल्ललम से भी सहाबा किराम सवाल करते थे और आप जवाब भी देते थे जब आपसे सवाल किया जा सकता है तो उलेमाओ से सवाल करना गलत क्यों माना जा रहा है। हो सकता है हजरत मौलाना सैयद अरशद मदनी सही हो हम ये नही कह रहे है लोगों की शंकाएँ सही है वो भी गलत हो सकते है लेकिन शंकाओं को दूर क्यों नही किया जा रहा है, इसी से उनके पाक साफ दामन पर छींटाकशी हो रही है| यह मौक़ा किसने दिया यह भी एक सवाल है ? महमूद मदनी को तो पहले ही संदिग्ध माना जाता है कि वह सरकार के साथ रहकर चलना पसंद करते है उनको मुसलमान गंभीरता से लेते भी नहीं हैं लेकिन हजरत मौलाना सैयद अरशद मदनी के बारे में अबसे पहले शक नही किया जा सकता था, मोहन भागवत से मिलकर हजरत मौलाना सैयद अरशद मदनी पर भी सवालिया निशान लग रहे है। मुसलमानों की रहनुमाई करने का टैग लिए घूमने वाले रहनुमाई तो करेंगे पर वो जवाब नही देंगे जो भी फ़ैसला वह लें वो सही कहना ही पड़ेगा| उनसे कोई सवाल करने की हिम्मत न करे ये कौन से कानून से सही कहा जा सकता है कि वो जो कहें वही सही है बाक़ी सब गलत है| इस तर्क से आम मुसलमान सहमत नही है, भारी आक्रोश है| रही बात भक्तों की उनकी कोई सोच नही होती है इसी लिए उन्हें भक्ति का प्रमाण पत्र मिला होता है जिसको लेकर वह ख़ुशफ़हमी का शिकार रहते हैं सवाल करना मौलानाओ की तौहीन, नही होती सच को सच कहना गलत नही होता, ग़लती हो जाती है लेकिन अच्छा इंसान वही होता है जो ग़लती को मान लें।