अयोध्या विवाद: निर्मोही अखाड़े के गवाहों के बयानों में कोई सच्चाई नहीं
जमीअत उल्माए हिन्द के वकील राज धवन ने अदालत को दिखाई 1949 की तस्वीरें
नई दिल्ली: अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में 20 वें दिन की सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने बहस की शुरुआत की. राजीव धवन ने कहा कि निर्मोही अखाड़ा 1734 से अस्तित्व का दावा कर रहा है. मैं कह सकता हूं कि निर्मोही अखाड़ा 1885 में बाहरी आंगन में था और वह वहां रहा है. धवन ने कहा कि राम चबूतरा बाहरी आंगन में है जिसे राम जन्म स्थल के रूप में जाना जाता है और मस्जिद को विवादित स्थल माना जाता है.
धवन ने निर्मोही अखाड़े के गवाहों के दर्ज बयानों पर जिरह करते हुए महंत भास्कर दास के बयान का हवाला दिया और कहा कि उन्होंने माना कि मूर्तियों को विवादित ढांचे में रखा गया था. राजीव धवन ने केके नायर, गुरु दत्त सिंह, डीएम और सिटी मजिस्ट्रेट की 1949 की तस्वीरें कोर्ट को दिखाईं. राजीव धवन ने राजाराम पांडे और सत्यनारायण त्रिपाठी के बयानों में विरोधाभास के बारे में सुप्रीम कोर्ट को बताया.
धवन ने कहा कि ऐसा लगता है कि कई गवाहों के बयानों को प्रभावित किया गया. एक गवाह के बारे में धवन ने कहा कि उसने 14 साल की उम्र में आरएसएस ज्वाइन किया था, बाद में आरएसएस और व्हीएचपी ने उसको सम्मानित भी किया. धवन ने एक गवाह के बारे में कहा कि गवाह ने 200 से अधिक मामलों में गवाही दी है और विश्वास करता है कि एक झूठ बोलने में कोई नुकसान नही है. राजीव धवन ने अपनी दलील में कहा कि मंदिर की जमीन जबरदस्ती छीनी गई है.
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि इन विरोधाभासों के बावजूद आप यह मान रहे हैं कि उन्होंने (निर्मोही अखाड़ा) अपनी शेवियत के अधिकार स्थापित कर लिया है. राजीव धवन ने कहा कि मैं उनको झूठा नहीं कह रहा हूं लेकिन मैं यह समझना चाह रहा हूं कि वह खुद को शेवियत तो बता रहे हैं लेकिन उनको नहीं मालूम की कब से शेबेट हैं.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अगर आप निर्मोही अखाड़े के अस्तित्व को मान रहे हैं तो उनके संपूर्ण साक्ष्य को स्वीकार किया जाएगा. राजीव धवन ने कहा कि कुछ कहते हैं कि 700 साल पहले कुछ उससे भी पहले का मानते हैं. मैं निर्मोही अखाड़े की उपस्थिति सन 1855 से मानता हूं. 1885 में महंत रघुबर दास ने मुकदमा दायर किया. हम 22-23 दिसंबर 1949 के बयान पर बात कर रहे हैं.
धवन बोले रामलला के अंतरंग सखा को सिर्फ पूजा का अधिकार. जमीन पर हक के दावे का अधिकार नहीं. जस्टिस नज़ीर ने धवन से पूछा कि कल तो आपने सह अस्तित्व की बात की थी आज आप कुछ और बोल रहे हैं. धवन ने कहा मैं बदलाव नहीं भूमि पर मिल्कियत की बात कर रहा हूं. सेवा उपासना और मिल्कियत अलग-अलग हैं. निर्मोही अखाड़े के मिल्कियत के दावे को खारिज करते हुए धवन बोले कि इन्होंने इस सम्पदा के लिए 'बिलांग' शब्द कहा. लेकिन इस बिलांग शब्द का मतलब मालिकाना हक कतई नहीं है. यह तो टर्म ऑफ आर्ट है. यानी वाक कला और शब्दों का कलात्मक प्रयोग है.