आज़ादी के अधिकार के बिना इंसान होने का कोई अर्थ नहीं
हर किसी का अपना ज़मीर होता है, जिसे उसे जवाब देना होता है: कन्नन गोपीनाथन
नई दिल्ली: भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी कन्नन गोपीनाथन ने मंगलवार को केंद्र सरकार के दावे को खारिज कर दिया कि अनुच्छेद 370 को हटाए जाने की प्रतिक्रियास्वरूप कश्मीर में हो सकने वाली हिंसक गतिविधियों की वजह से हो सकने वाली मौतों को रोकने के लिए पाबंदियां लगाई गई हैं. कन्नन गोपीनाथन का कहना है कि आज़ादी के अधिकार के बिना इंसान होने का कोई अर्थ नहीं रह जाता है.
पूर्व IAS अधिकारी कन्नन गोपीनाथन ने एक्सक्लूसिव NDTV को इंटरव्यू देते हुए कहा, "ज़िन्दगी और आज़ादी साथ-साथ चलते हैं, और यही संवैधानिक लोकतंत्र की खूबसूरती है| अगर वे कहें कि वे आपकी ज़िन्दगी बचाने के लिए आपको जेल में डाल देंगे, तो क्या वह आपको स्वीकार होगा? आप कुछ वक्त के लिए तो यह तर्क देते रह सकते हैं, लेकिन यहां तो तीन सप्ताह से यही किया जा रहा है…"
जम्मू एवं कश्मीर के लाखों लोगों को मौलिक अधिकारों से वंचित कर दिए जाने का दावा करते हुए इसके विरोध में 21 अगस्त को प्रशासनिक सेवा छोड़ देने वाले 33-वर्षीय नौकरशाह ने कहा, "मेरे इस्तीफे से पत्ता भी नहीं फड़फड़ाएगा, लेकिन हर किसी का अपना ज़मीर होता है, जिसे उसे जवाब देना होता है."
इस महीने की शुरुआत में केंद्र सरकार ने अचानक उठाए गए एक कदम के तहत संविधान के अनुच्छेद 370 को खत्म करते हुए जम्मू एवं कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त कर दिया था, और उसे दो केंद्रशासित प्रदेशों में तब्दील कर दिया था. तभी से जम्मू एवं कश्मीर में 'सावधानी बरतते हुए' पाबंदियां लागू कर दी गई थीं. इसके अलावा पूर्व IAS अधिकारी शाह फैसल सहित कई राजनेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था.
कन्नन गोपीनाथन का कहना है कि भले ही केंद्र सरकार के फैसले ने उन्हें व्यक्तिगत रूप से प्रभावित नहीं किया है, लेकिन उन्हें जम्मू एवं कश्मीर के लोगों के साथ सहानुभूति है. कन्नन ने सवाल किया, "क्या कोई फैसला लेने के लिए किसी चीज़ का आपको व्यक्तिगत रूप से प्रभावित करना ज़रूरी है? मेरा दूसरा सवाल है, जब आपके अपने ही मुल्क में आपकी आज़ादी को खत्म किया जा रहा हो, जब लोगों को अपनी बात कहने का मौका नहीं दिया जा रहा हो, क्या इससे आपको प्रभावित नहीं होना चाहिए?"
पूर्व IAS अधिकारी के अनुसार, इस तरह जम्मू एवं कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म कर देना सरकार का कानूनी अधिकार है, लेकिन लोकतंत्र में लोगों को भी प्रतिक्रिया व्यक्त करने का अधिकार मिलना चाहिए. उन्होंने कहा, "सरकार एक फैसला करती है, और उस फैसले पर प्रतिक्रिया को यह कहकर बंद कर देती है कि यह हिंसक हो सकती है यह ऐसा तर्क है, जिसे कहीं भी इस्तेमाल किया जा सकता है"
कन्नन गोपीनाथन के अनुसार, कश्मीर में लॉकडाउन की निंदा करने में पत्रकारों को आगे बढ़कर भूमिका निभानी चाहिए थी. पूर्व IAS अधिकारी ने कहा, "मीडिया, जिसका काम आज़ादी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की वकालत करना होता है, को कहना चाहिए था कि उन्हें आज़ादी से बोलने की छूट मिलनी चाहिए थी अब सरकार मीडिया की बात सुने या नहीं, यह दीगर बात है."
बहरहाल, उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि वह भी शाह फैसल की तरह राजनीति के क्षेत्र में उतरेंगे या नहीं. पूर्व IAS अधिकारी कन्नन गोपीनाथन ने कहा, "अब जब मैंने प्रशासनिक सेवा छोड़ दी है, मैं किसी भी छोटे-मोटे तरीके से जनता के साथ जुड़कर आजीविका चलाना चाहूंगा। अगर मैं ज़मीनी स्तर पर काम कर ऐसा कर पाया, तो बढ़िया रहेगा, इससे आगे मैंने नहीं सोचा है…"