अयोध्या मामला: रामलला विराजमान की तरफ से SC में रखे गए खुदाई में मिले सबूत
नई दिल्ली: अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को भी सुनवाई हुई. अयोध्या श्री राम जन्मभूमि मामले में रामलला के वकील सी एस वैधनाथन ने बहस की शुरुआत की. पुरातत्व विभाग की खुदाई में मिले सबूत को कोर्ट के समक्ष रखा गया. रामलला विराजमान की तरफ से कोर्ट में सबूत पेश किए गए कि मस्जिद से पहले उस जगह पर मंदिर का अस्तित्व था. रामलला के वकील सी एस वैधनाथन कहा कि मुस्लिम पक्ष की तरफ से शुरुआत में कहा गया कि ज़मीन के नीचे कुछ नहीं है, लेकिन बाद में उन्होंने कहा कि जमीन के अंदर जो स्ट्रक्चर मिला है वो इस्लामिक स्ट्रक्चर है.
वकील वैद्यनाथन ने कहा, पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक जमीन के नीचे से मंदिर के स्ट्रक्चर मिले हैं. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी अपने फैसले में पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट पर भरोसा किया है. रामलला की तरफ से उदाहरण देते हुए कहा गया कि आज के दौर में लोग फ्लाइट लेकर सुबह सबरीमाला के दर्शन के लिए जाते है और शाम को लौट आते है, लेकिन राम जन्मभूमि को लेकर श्रद्धालु कई सदियों से दर्शन के लिए जाते है, जबकि उस समय नदी के ऊपर कोई ब्रिज भी नहीं था.
उन्होंने आगे बताया कि 1114 ईसवी से 1155 ईसवी तक 12वीं शताब्दी में साकेत मंडला का राजा गोविंदा चंद्रा था. उस वक्त अयोध्या उसकी राजधानी थी. यहां विष्णु हरि का बहुत बड़ा मंदिर था. पुरातत्वविद्दों ने इसकी पुष्टि की है. वैद्यानाथन ने कहा, भारत यात्रा पर आए कई यात्रियों ने अपनी किताब में उस जगह पर भव्य मंदिर की बात कही है. रामलला के वकील सी एस वैधनाथन ने कहा कि मुस्लिम पक्ष की तरफ से शुरुआत में कहा गया कि जमीन के नीचे कुछ नहीं है, लेकिन बाद में उन्होंने कहा कि जमीन के अंदर जो स्ट्रक्चर मिला है वो इस्लामिक स्ट्रक्चर है.
रामलला के वकील सी एस वैधनाथन ने ASI की रिपोर्ट में मंदिर के अवशेष मिले है, इलाहाबाद HC ने भी ASI की रिपोर्ट को सही माना है. सी एस वैधनाथन ने कहा कि बाबरी मस्जिद के नीचे जो स्ट्रक्चर था उसकी बनावट उसमें मिली भगवान की तस्वीरें, मूर्तियां साबित होता है कि पहले से मंदिर था.
वैधनाथन ने कहा मस्जिद गिरने के बाद एक पत्थर का स्लैब मिला, जिनमें 12 या 13वीं शताब्दी में लिखे एक शिलालेख शामिल हैं. शिलालेख थोड़ा क्षतिग्रस्त है और अंतिम दो पंक्तियां भारी क्षतिग्रस्त हो गई हैं. शिलालेख का मूल पाठ संस्कृत में है. इसके ट्रांसलेशन पर किसी ने आपत्ति नहीं की है, सिर्फ इसकी जगह को लेकर आपत्ति है. शिलालेखों पर उल्लेख साकेत मंडल में बने मंदिर से है और यह राम के जन्म का स्थान है. 12वीं शताब्दी में साकेत मंडला का राजा गोविंदा चंद्रा था, उस वक्त अयोध्या उसकी राजधानी थी. यहां विष्णु हरि का बहुत बड़ा मंदिर था. ये स्लैब पांचजन्य के एक रिपोर्टर ने देखा था.
अयोध्या राम मंदिर पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने पूछा कि क्या इस शिलालेख को भी लेकर चैलेंज किया गया है? जिस पर वैद्यनाथन ने जवाब दिया कि स्लैब पर लिखे गए कंटेंट की ट्रांसलेशन या इस शिलालेख की प्रमाणिकता को चैलेंज नहीं किया गया है, बल्कि इस सवाल इस पर उठाया गया है कि ये स्लैब विवादित ज़मीन से मिला है या नहीं. उन्होंने 1950 में ली गयी कुछ तस्वीरों को कोर्ट के सामने पेश किया है.
रामलला के वकील सी एस वैधनाथन ने कहा, पत्थर कि वैधता और सही होने पर कोई सवाल नहीं है. पत्थर में लिखे संस्कृत अक्षरों का अनुवाद है शिखर श्रेणी कला विष्णु हरी मंदिर है जिसका उल्लेख ऐतिहासिक किताब में भी है. 115 सेमी लंबा और 55 सेमी चौड़ा शिलालेख तीन चार सप्ताह राम कथा कुंज में रखा रहा. यह ढांचा ढहने को बाद मिला. इस पर किसी पक्ष कार की ओर से आपत्ति नहीं जताई गई है.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि क्या ये सब ASI के द्वारा इकट्ठा किया गया था? रामलला के वकील वैद्यनाथन ने कहा कि ये ASI रिपोर्ट में नहीं था, ASI काफी बाद में आई थी. सीएस वैद्यनाथन ने ASI रिपोर्ट का हवाला देते हुए मगरमच्छ, कछुओं का भी जिक्र किया और कहा कि इनका मुस्लिम कल्चर से मतलब नहीं था. वैद्यनाथन विवादित ढांचा ढहाने के समय की पांचजन्य के रिपोर्टर की रिपोर्ट कोर्ट के सामने बयान किया.
रिपोर्ट में लिखा है कि ढहाने के दौरान मैंने शिलाएं गिरती हुई देखीं थीं तब कुछ पुलिस वाले उन पत्थरों को उठा कर रामकथा कुंज ले गए. ये शिलाएं 4 फुट x2 फुट आकार वाली थीं. वो शिलालेख राज्य पुरातत्व विभाग के अभिरक्षा (कस्टडी) में है.
वैद्यनाथन ने कहा, खुदाई से मिले अवशेषों की वैज्ञानिक पड़ताल के बाद ASI की रिपोर्ट, मौके से मिले सबूत से कोई शंका या विवाद की गुंजाइश नहीं रह जाती. ये सब 11वीं सदी के दौरान निर्मित हैं.