अयोध्या विवादः ‘राम लला विराजमान’ के अधिवक्ता ने सुनाये पर्यटकों के यात्रा वृत्तांत
मुस्लिम पक्षकार के वकील की बाबरनामा के सन्दर्भ पर आपत्ति, कहा बाबरनामा के कुछ पन्ने गायब हैं
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय में बुधवार को ‘राम लला विराजमान’ के अधिवक्ता ने कहा कि 1608-1611 के दौरान भारत आये अंग्रेज व्यापारी विलियम फिंच के यात्रा वृत्तांत में इस बात का उल्लेख है कि अयोध्या में एक किला था जिसके बारे में हिन्दुओं का विश्वास है कि वहां भगवान राम का जन्म हुआ था।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सितंबर, 2010 के अपने फैसले में अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में एक पक्षकार ‘राम लला’ को 2.77 एकड़ विवादित भूमि में एक तिहाई हिस्सा देने का आदेश दिया गया था। इसमें निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड दूसरे पक्षकार हैं।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ को राम लला की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सी एस वैद्यनाथन ने सूचित किया कि फिंच 17वीं शताब्दी के प्रारंभ में भारत आये थे और उन्होंने इस तथ्य को दर्ज किया था कि अयोध्या में एक किला या महल था, जहां हिन्दुओं का मानना है कि भगवान राम का जन्म हुआ है।
संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता ने ‘अर्ली ट्रैवल्स टु इंडिया’ पुस्तक में प्रकाशित यात्रा वृत्तांत का हवाला देते हुये कहा कि इस अंग्रेज व्यापारी ने उल्लेख किया है कि हिन्दुओं का मानना है कि अयोध्या भगवान राम का ‘जन्मस्थान’ है।
वैद्यनाथन ने भगवान राम के जन्म स्थान के प्रति जनता की आस्था के बारे में अपनी दलीलों के समर्थन में ब्रिटिश सर्वेक्षक मोंटगोमेरी मार्टिन और जेसूट मिशनरी जोसेफ टाइफेन्थलर द्वारा लिखित वृत्तांत सहित अन्य यात्रा वृत्तांतों का भी हवाला दिया।
उन्होंने कहा, ‘‘यह लोगों का विश्वास है कि यही वह स्थान है जहां भगवान राम का जन्म हुआ था। इसे हमेशा से ही भगवान राम का जन्म स्थान माना गया है।’’ वैद्यनाथन ने अपनी दलीलों के समर्थन में ‘पुराणों’ का भी हवाला दिया और कहा कि इनके अनुसार भी हिन्दुओं का यह विश्वास है कि भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ था और न्यायालय को इसके आगे जाकर यह नहीं देखना चाहिए कि यह कितना तर्कसंगत है।
इस प्रकरण में छठे दिन की सुनवाई के दौरान पीठ ने वैद्यनाथन से जानना चाहा, ‘‘पहली बार कब इसे बाबरी मस्जिद नाम से पुकारा गया?’’ वैद्यनाथन ने इस पर कहा, ‘‘19वीं सदी में। ऐसा कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं है जिससे पता चले कि इससे पहले (19वीं सदी से पहले) इसे बाबरी मस्जिद के नाम से जाना जाता था।’’
इस पर पीठ ने सवाल किया, ‘‘क्या ‘बाबरनामा’ इस बारे में खामोश है?’’ वैद्यनाथन ने जब यह कहा कि ‘बाबरनामा’ इस बारे में खामोश है तो पीठ ने सवाल किया, ‘‘ऐसा कौन सा तथ्यपरक साक्ष्य उपलब्ध है कि बाबर ने इसे (मंदिर) गिराने का निर्देश दिया था?’’
इस पर राम लाल विराजमान की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि बाबर ने अपने सेनापति को यह ढांचा गिराने का हुक्म दिया था। एक मुस्लिम पक्षकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने ‘बाबरनामा’ में बाबर की अयोध्या यात्रा के बारे में कोई जिक्र न होने के वैद्यनाथन के कथन पर आपत्ति की।
धवन ने कहा कि ‘बाबरनामा’ में इस बात का उल्लेख है कि बाबर ने अयोध्या के लिये नदी पार की और इस पुस्तक के कुछ पन्ने नदारद भी हैं। बहस के दौरान वैद्यनाथन ने कहा कि इसे लेकर दो कथन हैं–पहला बाबर द्वारा मंदिर गिराने के बारे में और दूसरा मुगल शासक औरंगजेब द्वारा इसे गिराने के बारे में।
लेकिन मस्जिद पर लिखी इबारत से पता चलता है है कि बाबर ने विवादित जगह पर तीन गुंबद वाले ढांचे का निर्माण कराया था। उन्होंने पीठ से कहा, ‘‘यह स्पष्ट है कि ढांचा (मंदिर) वहां पर था और यह (मस्जिद) निर्माण उस स्थान पर हुआ जिसे हिन्दु मानते हैं कि यह (राम का) ‘जन्मस्थान’ है।’’
इससे पहले, सुनवाई शुरू होने पर वैद्यनाथन ने कहा कि वह पहले दस्तावेजी साक्ष्य के बारे में बहस करेंगे और फिर इस मामले के मौखिक सबूत तथा पुरातत्व सर्वेक्षण के साक्ष्यों पर आयेंगे। ‘राम लला विराजमान’ की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ने मंगलवार को शीर्ष अदालत से कहा कि भगवान राम का जन्मस्थान देवता भी है और मुस्लिम अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित भूमि पर अपना दावा नहीं कर सकते क्योंकि संपत्ति का किसी भी तरह का बंटवारा देवता को ही ‘नष्ट’ करना और ‘भंजन’ करने जैसा होगा।
शीर्ष अदालत राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर सुनवाई कर रही है।