कश्मीर में अब 28 हजार और सुरक्षाबलों की तैनाती
नई दिल्ली: धारा 370 और 35 ए के मुद्दे पर जम्मू कश्मीर के सियासी दल लगातार न केवल अपनी आशंका जाहिर कर रहे हैं बल्कि केंद्र सरकार को चुनौती भी दे रहे हैं। हाल ही में जब केंद्रीय सुरक्षा बलों के 10 हजार जवानों ने घाटी में दस्तक दी तो वहां के माहौल में गर्मी आ गई। हालांकि सरकार ने साफ कर दिया कि उन जवानों की तैनाती का 370 और 35 ए धाराओं से संबंध नहीं है बल्कि चुनावी तैयारी के मद्देनजर सीएपीएफ की इन टुकड़ियों को लगाया गया है। इन बीच पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार केंद्र सरकार ने कश्मीर में सीएपीएफ की 280 कंपनियां यानी करीब 28 हजार और जवानों की तैनाती का फैसला किया है।
सुरक्षा बलों जिनमें ज्यादातर सीआरपीएफ कर्मी शामिल हैं, को शहर और घाटी के अन्य हिस्सों में संवेदनशील जगहों पर तैनात किया जा रहा है। देर शाम इस तैनाती के फैसले के पीछे कोई वजह नहीं बताई गई है। स्थानीय पुलिस की मौजूदगी में केंद्रीय सशस्त्र अर्धसैनिक बलों (सीएपीएफ) द्वारा शहर के सभी मुख्य प्रवेश और निकास बिंदुओं पर कब्जा कर लिया गया है।
स्थानीय निवासियों ने कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने की आशंका को देखते हुए सुरक्षा बलों की तैनाती के बीच जरूरत का सामान खरीदना शुरु कर दिया है। बीते सप्ताह केंद्र ने पहले आतंकवाद रोधी अभियानों और कानून व्यवस्था को मजबूत करने के लिए लगभग 10,000 केंद्रीय बल के जवानों को कश्मीर में तैनात करने का आदेश दिया था।
अटकलें लगाई जा रही हैं कि मोदी सरकार कश्मीर से जुड़ी समस्याओं के हल के लिए कोई सख्त कदम उठा सकती है और इसी को देखते हुए किसी अप्रिय स्थिति से निपटने के लिए इतने जवानों और अर्धसैनिक बलों की तैनाती की जा रही है। कश्मीर घाटी में अतिरिक्त सैनिकों को तैनात करने का निर्णय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने पिछले सप्ताह राज्य का दौरा करने के बाद लिया था। मौजूदा समय में कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लागू है। पूर्व मुख्यमंत्री और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की महबूबा मुफ्ती ने कहा था कि केंद्र को अपनी कश्मीर नीति पर पुनर्विचार और सुधार करना होगा।
10 हजार जवानों की तैनाती पर महबूबा मुफ्ती ने ट्वीट किया था, 'घाटी में अतिरिक्त 10,000 सैनिकों को तैनात करने के केंद्र के फैसले ने लोगों में भय पैदा किया है। कश्मीर में सुरक्षा बलों की कोई कमी नहीं है। जम्मू कश्मीर एक राजनीतिक समस्या है, जिसे सैन्य माध्यमों की मदद से हल नहीं किया जा सकता। भारत सरकार को अपनी नीति पर पुनर्विचार और सुधार करना होगा।'