तीन तलाक बिल राज्य सभा से भी हुआ पारित
नई दिल्ली: कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक 2019 राज्यसभा में मंगलवार को पेश किया। इस दौरान विधयक पर जमकर चर्चा हुई। विपक्ष ने इस विधेयक को लेकर कई खामियां गिनाईं। हालांकि विधेयक शाम को पारित हो गया। बिल के पक्ष में 99 वोट पड़े, जबकि विरोध में 84 वोट पड़े।
वहीं, केंद्रीय मंत्री प्रसाद ने कहा कि तीन तलाक निषेध विधेयक मानवता, महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता सुनिश्चित करने वाला है। इस कानून को राजनीति के चश्मे या वोटबैंक की राजनीति से नहीं देखा जाना चाहिए।
विधेयक पर चर्चा के दौरान सपा सदस्य जावेद अली खान ने सरकार से यह भी जानना चाहा कि महिलाओं के यौन शोषण मुद्दे से निबटने के बारे में चार मंत्रियों का एक समूह बनाया गया था, उसका क्या हुआ? क्या उस मंत्री समूह ने अपनी कोई रिपोर्ट दी है? उन्होंने कहा कि तीन तलाक को प्रतिबंधित करने के मामले में सरकार जार्डन, सीरिया एवं अफगानिस्तान जैसे देशों की मिसाल दे रही है। उन्होंने कहा कि हमारा देश क्या अब इस स्थिति में पहुंच गया है कि वह इन देशों का अनुकरण करेगा।
उन्होंने कहा कि मुस्लिम विवाह एक दिवानी करार है। उन्होंने कहा कि तलाक का मतलब इस करार को समाप्त करना है। उन्होंने कहा कि इस कानून के तहत तलाक का अपराधीकरण किया जा रहा है, जो उचित नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार राजनीतिक कारणों से यह विधेयक लायी है और ऐसा करना उचित नहीं है।
अन्नाद्रमुक के ए नवनीत कृष्णन ने विधेयक का विरोध करते हुए इसे प्रवर समिति में भेजे जाने की मांग की। उन्होंने कहा कि ऐसा कानून बनाने की संसद के पास विधायी सक्षमता नहीं है। उन्होंने कहा कि इस विधेयक के कुछ प्रावधानों को पूर्व प्रभाव से लागू किया गया है जो संविधान की दृष्टि से उचित नहीं है।
उन्होंने कहा कि मुस्लिम विवाह एक दिवानी समझौता है और इसे भंग करना अपराध नहीं हो सकता है।
तीन तलाक के बारे में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णय का उल्लेख करते हुए अन्नाद्रमुक नेता ने कहा कि जब इस कृत्य को शीर्ष न्यायालय निष्प्रभावी बता चुका है तो उस निष्प्रभावी कृत्य पर संसद कानून कैसे बना सकती है? उन्होंने कहा कि यह विधेयक कानून बनने के बाद न्यायपालिका की समीक्षा में टिक नहीं पाएगा?
बीजू जनता दल के प्रसन्न आचार्य ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि उनकी पार्टी महिला सशक्तिकरण के पक्ष में हमेशा से रही है। उन्होंने कहा कि बीजद ने लोकसभा चुनाव में जिन प्रत्याशियों को टिकट दिये थे उनमें एक तिहाई महिलाएं थीं और पार्टी की सात प्रत्याशियों ने चुनाव जीते। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने अपने एक निर्णय में तीन तलाक की प्रथा को अवैध ठहराया था। आचार्य ने सरकार से जानना चाहा कि विधेयक में एक तरफ तो तीन तलाक की प्रथा को निरस्त माना गया है और वहीं दूसरी तरफ इसका संज्ञान लेते हुए इसे अपराध माना गया है। उन्होंने कहा कि दोनों बातें एक साथ कैसे चल सकती हैं?
तृणमूल कांग्रेस की डोला सेन ने कहा कि उनकी पार्टी तीन तलाक के बारे में लाये गये अध्यादेश का इसलिए विरोध कर रही है क्योंकि यह अध्यादेश बिना संसदीय समीक्षा के लाया गया है। उन्होंने कहा कि हमारे देश में न तो राष्ट्रपति शासन लगा है और न ही तानाशाही है, इसलिए संसद की समीक्षा के बिना कोई भी कानून लाना संविधान की भावना के विरूद्ध है।
उन्होंने आरोप लगाया कि सत्तारूढ़ भाजपा महिला सशक्तिकरण के बारे में केवल बात ही करती है। उन्होंने कहा कि यदि सरकार इसके लिए वाकई गंभीर है तो उसे महिला आरक्षण संबंधित विधेयक संसद में लाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसके लिए यदि वर्तमान सत्र का एक और दिन बढ़ाना पड़े तो हमारी पार्टी उसके लिए भी तैयार है।
उन्होंने तीन तलाक संबंधित विधेयक के प्रावधानों की चर्चा करते हुए कहा कि यदि तलाक देने वाले पति को जेल में डाल दिया गया तो वह जेल में रहने के दौरान अपनी पत्नी एवं बच्चों को गुजारा भत्ता कैसे दे पाएगा? चर्चा के दौरान डोला सेन ने नागपुर के एक संगठन के प्रमुख द्वारा विवाह के बारे में दिए गये एक बयान का उल्लेख किया।
इस पर भाजपा के भूपेन्द्र यादव, केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर और मनोनीत राकेश सिन्हा ने कड़ा विरोध किया और इसे सदन की कार्यवाही से निकालने की मांग की। उपसभापति हरिवंश ने आश्वासन दिया कि वह रिकॉर्ड देखकर समुचित फैसला करेंगे। सेन ने सरकार को सलाह दी कि इस विधेयक को प्रवर समिति में भेजा जाना चाहिए। उन्होंने इस विधेयक से तीन तलाक को अपराध बनाने का प्रावधान हटाने की मांग भी की।
उन्होंने सरकार को ‘‘संसद का मजाक’’ नहीं बनाने की नसीहत दी। समाजवादी पार्टी के जावेद अली खान ने इस विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि कहा कि कई पत्नियों को उनके पति छोड़ देते हैं। उन्होंने सरकार से जानना चाहा कि क्या वह ऐसे पतियों को दंड देने और ऐसी परित्यक्त महिलाओं को गुजारा भत्ता देने के लिए कोई कानून लाएगी?