विभेदकारी नीतियाँ छोड़े संयुक्त राष्ट्र: दीपक
हिंदी व भारत के लिए यूएनओ को सौंपा ज्ञापन
लखनऊ: इंटरनेशनल सोशलिस्ट काउन्सिल के सचिव व प्रसपा बौद्धिक सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष दीपक मिश्र ने हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा का दर्जा और भारत को सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य बनाने हेतु ज्ञापन दिल्ली स्थित यूएनओ कार्यालय पहुँच कर सौंपा।
यूएनओ के महासचिव एंटोनियो मैन्यूअल डि ओलिविरा गुटेरस को सम्बोधित भारत में संयुक्त राष्ट्र की प्रतिनिधि रेनॉटा लॉक डेसालियन को सौंपे पत्रक में श्री मिश्र ने संयुक्त राष्ट्र संघ से हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्जा देने की ज़ोरदार अपील की है । श्री मिश्र ने बताया कि हिंदी दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी भाषा है ,इसके बावजूद संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्जा नहीं दिया गया है , यह एक तरह का सांस्कृतिक उपनिवेशवाद है । संयुक्त राष्ट्र संघ की विभेदकारी नीति वैश्विक लोकतंत्र के लिए उचित नहीं है । पूरी दुनिया के सभी हिन्दी भाषी व भारतवंशी हिंदी के लिए अलग अलग तरीक़े से आवाज़ उठा रहे हैं ।हिंदी ही नहीं भारत भी संयुक्त राष्ट्र संघ में अपने अधिकार से वंचित है । सारी अर्हता पूरी करने के बाद भी भारत अभी तक सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता से वंचित है। हिंदी और भारत की घोर उपेक्षा के कारण राष्ट्र संघ भी गुणात्मक हानि उठा रहा है । श्री मिश्र ने बताया कि ट्विटर आदि पर भले ही यूएनओ हिंदी में आ चुका है लेकिन हिंदी का वास्तविक सम्मान तब तक नहीं होगा जब तक हिंदी को आधिकारिक दर्ज़ा नहीं मिलेगा । केंद्र सरकार का रवैया भी हिंदी के प्रति घुटनाटेकू और समझौतावादी है । मोदी जी के लिए हिंदी सिर्फ़ एक वोट बटोरू भाषा के अतिरिक्त कुछ नहीं । यदि उन्हें हिंदी से प्रेम होता तो हिंदी की लड़ाई में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते और संयुक्त राष्ट्र संघ से सीधी बातचीत करते । जिस तरीक़े से उन्होंने योग को यूएनओ द्वारा सम्मानित करवाया वैसा ही क़दम हिन्दी के लिए भी उठा सकते थे किंतु अपने पाँच साल के कार्यकाल में उन्होंने ऐसा एक भी क़दम नहीं उठाया जिसे रेखांकित किया जा सके । श्री मिश्र ने उम्मीद ज़ाहिर थी कि सितम्बर के पहले नरेंद्र मोदी जी हिंदी के लिए कोई महत्वपूर्ण क़दम उठाएंगे ।प्रसपा बौद्धिक सभा के अध्यक्ष दीपक ने कहा कि हिंदी की लड़ाई राजनीतिक तौर तरीक़े से प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया )
पूरी प्रतिबद्धता के साथ लड़ेगी ।हिंदी को सम्मान दिलाना प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया ) के मैनिफेस्टो में है ।पीएसपी हिन्दी के हित में अभियान चलाएगी । प्रधानमंत्री जी यदि भारत को सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता और हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने के लिए कोई सार्थक पहल करेंगे तो वैचारिक मतभेदों के बावजूद समर्थन किया जाएगा ।
गांधी और लोहिया को बार बार उद्धरित करने वाले नरेंद्र मोदी जी एक बार हिंदी के प्रति गांधी और लोहिया के विचारों को पढ़ लेते तो अच्छा था । भारत की वैदेशिक नीति पूरी तरीक़े से अमेरिका परस्त हो चुकी है ।भारतीय वैदेशिक नीति में भारत हित सर्वोपरी होना चाहिए । भारत का हित वैश्विक मंचों पर हिन्दी और भारत की मज़बूती में ही निहित है । भारतीय राष्ट्र की अपेक्षा है कि मोदी जी हिंदी को उसका वास्तविक सम्मान दिलाकर गांधी ,लोहिया व अटल के अधूरे सपनों को पूरा करें । भारतीय राष्ट्रवाद व समाजवाद दोनों एक दूसरे के पूरक हैं ।चंद्रशेखर आज़ाद ,डॉक्टर लोहिया ,भगत सिंह व महात्मा गांधी का जीवन दर्शन इस कथन का सटीक उदाहरण है । ये सभी महापुरुष जितने बड़े समाजवादी थे उतने ही महान राष्ट्रवादी भी । भारतीय जनता पार्टी की सरकार भारतीयता एवं राष्ट्रवाद की दुहाई तो देती है लेकिन लेकिन ऐसा कोई कार्य नहीं करती जिससे राष्ट्रवाद सशक्त हो । हिन्दी भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की प्रतिनिधि है ,हिन्दी जितना मज़बूत होगी अन्य भारतीय भाषाएँ भी उतनी ही सशक्त होंगी। भारत व हिंदी को लेकर यूएनओ व केंद्र सरकार दोनों अपनी तस्वीर स्पष्ट करें ।