धोनी से अंतहीन अपेक्षाएं क्यों?
अदनान अमीर
हमारे यहाँ मिडिल क्लास लोगों की सारी जिंदगी खुद को प्रूव करने में निकल जाती है। अक्सर यहाँ सब यह सोचते हैं कि इस बार अगर उसने यह कारनामा कर दिया तो मान लूंगा की बंदे में है दम। वह कारनामा जब हो जाता है तो उसे सर आंखों पर बैठाते हैं लेकिन कुछ ही दिनों में ऐसी बातें 'रात गई और बात गई' जैसी हो जाती है। फिर किसी रोज कोई नई चुनौती आती है। एक बार फिर उसे खुद को प्रूव करना होता है। यह क्रम चलता ही रहता है। भारतीय जनमानस की यह एक अंतहीन श्रृंखला है। एक समय सचिन तेंदुलकर लोगों के इसी अंतहीन अपेक्षाओं के शिकार रहे हैं। अब महेंद्र सिंह धोनी भी लोगों के इसी अंतहीन अपेक्षाओं के शिकार हैं।
2007 के वर्ल्ड कप में भारत की बुरी हार हुई थी। उसी समय जब पहली बार T-20 वर्ल्ड कप खेला जाने वाला था तब सीनियर वर्ल्ड कप में बुरी हार से आहत भारतीय टीम के चयनकर्ताओं नें टीम से सारे सीनियर हटा दिए गए थे। और 'जूनियर' धोनी को इंडिया टीम की कमान दे दी गयी थी। इस टीम से किसी को कोई उम्मीद भी नहीं थी। यह एकमात्र धोनी ही थे जिन्हें खुद को प्रूव करना था की उनमें वह जज्बा है जो इतिहास बना सकता है। फिर क्या हुआ, वह इतिहास है। यहीं से धोनी भारतीय क्रिकेट प्रेमियों के बीच 'लार्जर दैन लाइफ' सा लगने लगे। ऐसी कोई सफलता नहीं रही, जो उसके लीडरशिप में नहीं मिली। T- 20 वर्ल्ड कप से शुरू हुआ सफ़र विभिन्न पड़ाव से होते हुए सीनियर वर्ल्ड कप विजेता तक अनवरत चलता रहा है।
लेकिन, उसी धोनी को 12 साल बाद आज फिर एक वर्ल्ड कप में प्रूव करना था। यह विडंबना नहीं तो और क्या है! भारतीय पारी के विकेट गिरने की झड़ी लगी थी तब धोनी के धीमी पारी की आलोचना हो रही है। मुश्किल विकेट और मुश्किल हालात में जब एक छोर को हर हाल में संभाले रखना था तब 72 गेंदों पर उसके बनाये गए 50 रन अब यह प्रूव कर रहा है की धोनी हार की वजह रहे हैं।
इस पूरे टूर्नामेंट में भारतीय टीम में कुछ कमियां दिखीं थी लेकिन टीम की जीत की आड़ में वो छुपती चली गई। टीम का मिडिल आर्डर कभी भी मजबूत नहीं रहा। नंबर चार की जगह के लिए सालों तक चले खोज, वर्ल्ड कप के मैचों में भी उस खिलाड़ी से पूरी न हो सकी जिन्हें प्रेशर के मैचों का ठीक ठाक अनुभव होता। धोनी एक शानदार विकल्प थे। लेकिन टीम के थिंक टैंक की सोच कुछ और थी। अगर टीम इंडिया के थिंक टैंक की सबसे बड़ी गलती कुछ रही तो वो यही रही। आमतौर पर पांचवें नंबर पर आने वाले धोनी इस बड़े मैच में सातवें नंबर पर बल्लेबाजी के लिए उतरे। फिर भी स्विंग होती पिच पर एक छोड़ संभाले रहना धोनी की ही जीवटता थी, लेकिन इसकी चर्चा नहीं हो रही है। बस एक रन आउट और धोनी खुद को प्रूव नहीं कर पाए का तंज, धोनी को क्रिकेट प्रेमियों का गिफ्ट है।
यह और बात है कि जब वह रन आउट होकर लौट रहे थे तो उनके आंसू बहुत कुछ कह रहे थे। लेकिन चंद इंच पार नहीं कर पाने का मलाल केवल उन्हें ही पूरी जिंदगी रहेगा। बाकी लोग जो आज सर आसमान पर उठाए हुए हैं वो कल भूल जाएंगे। अभी क्रिकेट प्रेमियों के एक तबके की जो ध्वनि धोनी के विरुद्ध है वह एक प्रतीक के रूप में मिडिल क्लास के संघर्ष की अंतहीन कहानी के प्रतिनिधि किरदार हैं जिसके हिस्से ताउम्र प्रूव करना ही होता है।