क्या यह केन्द्रीय बजट बच्चों की उम्मीदों पर खरा उतरेगा
पिछले कई सालों के दौरान केन्द्रीय बजट में बच्चों से जुड़े मुद्दों को प्राथमिकता नहीं दी गई है। बजट में आमतौर पर बच्चों के लिए कुल केन्द्रीय बजट का मात्र 3 फीसदी आवंटन किया जाता रहा है, जो उनकी ज़रूरतों एवं सुरक्षित बचपन को सुनिश्चित करने के लिए बहुत कम है। ऐसे में भारत की 39 फीसदी आबादी- यानि बच्चों को केन्द्रीय बजट में प्राथमिकता देना बहुत ज़रूरी है, बजट में बच्चों के लिए आवंटित राशि को कई गुना बढ़ाना होगा। पूजा मारवाह, सीईओ क्राई (चाइल्ड राईट्स एण्ड यूे) ने कहा, ‘‘एक सुरक्षित एवं खुशहाल बचपन हर बच्चे का अधिकार है, जिसके साथ किसी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता। केन्द्रीय बजट में उनके लिए उचित राशि का आवंटन कर उनकी ऊँची उम्मीदों को पूरा किया जा सकता है। मौजूदा खामियों को दूर करने और नई योजनाओं में निवेश करने के लिए यह बहुत ज़रूरी है- फिर चाहे वह शिक्षा हो, स्वास्थ्य और पोषण या बाल सुरक्षा।’’ शिक्षा-शिक्षा की बात करें तो शुरूआत बचपन की शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाना तथा शिक्षा के सार्वभौमीकरण में निवेश करना समय की मांग है, क्योंकि स्कूली शिक्षा शुरूआती बचपन का आधार है। यह महत्वपूर्ण है कि केन्द्र सरकार राज्य सरकारों के साथ मिलकर काम करते हुए शिक्षा के लिए आवंटित संसाधन एवं धनराशि को बढ़ाए तथा राज्यों को भी शुरूआती बचपन की शिक्षा पर ज़्यादा संसाधन व्यय करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। राष्ट्रीय शिक्षा नीति का नया मसौदा भी शुरूआती बचपन की शिक्षा पर ध्यान केन्द्रित करता है, जिसके लिए उल्लेखनीय बजट आवंटन बहुत ज़रूरी है। प्रशासनिक सुधारों के दायरे से बाहर जाकर स्कूली शिक्षा में बजट आवंटन बढ़ाना -बहुत महत्वपूर्ण है। स्कूली शिक्षा के लिए निर्धारित तीन योजनाओं- सर्व शिक्षा अभियान, राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान और समग्र शिक्षा अभियान के तहत अध्यापकों की शिक्षा के लिए प्रस्तावित एवं आवंटित बजट में लगभग 26 फीसदी का अंतर है। नई योजना के लिए बजट परिव्यय 2018-19 में रु 34,000 करोड़ होगा, जो 2018-19 में एसएसए के लिए अपेक्षित मांग से बहुत कम है। सुरक्षा-बाल सुरक्षा का मुद्दा हमेशा से मुश्किल क्षेत्रों में से एक रहा है और मौजूदा परिवेश को बदलने के लिए निवेश एवं संसाधन आवंटन बहुत ज़रूरी है ताकि एक सुरक्षित भारत के निर्माण के लिए बच्चों की उम्मीदों को पूरा किया जा सके। सशक्त स्कूल सुरक्षा प्रणाली में निवेश के द्वारा स्कूलों में जोखिम को कम करना, सुरक्षित प्रतिक्रिया प्रणाली का निर्माण करना, स्कूल स्टाफ एवं अध्यापकों की क्षमता बढ़ाना, बुनियादी सुविधाओं में सुधार लाना- स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है। हालांकि बाल सुरक्षा सेवाओं के लिए अंतरिम बजट की राशि 2016-17 में रु 597.5 करोड़ थी, जो 2019-20 में बढ़कर रु 1500 करोड़ हो गई है, बाल सुरक्षा के लिए निवारक एवं पुनर्वास सुविधाओं में निवेश बढ़ाने की आवश्यकता है। इसके मद्देनज़र पीआरआई की क्षमता बढ़़ाने के लिए निवेश बढ़ाना होगा, संयुक्त प्रयासों को प्रोत्साहित करना होगा, ताकि इन योजनाओं का फायदा सीमांत समुदायों के बच्चों को मिले। साथ ही ग्राम पंचायत क्षेत्रों में बाल सुरक्षा एवं विकास पर निगरानी रखने की आवश्यकता है। स्वास्थ्य एवं पोषण- स्वस्थ एवं कुपोषण रहित भारत के निर्माण के लिए, 0-6 साल के बच्चों के विकास एवं पोषण हेतु गुणवत्तापूर्ण सेवाओं में निवेश करना ज़रूरी है। इसका अर्थ यह है कि समेकित बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) योजना पर बजट आवंटन बढ़ाना होगा। हालांकि अंतरिम बजट 2019-20 में पिछले साल के अनुमान की तुलना में इस योजना के लिए 19 फीसदी की बढ़ोतरी की गई है, किंतु योजना की विभिन्न मांगों को देखते हुए यह बढ़ोतरी पर्याप्त नहीं है। आईसीडीएस प्रोग्राम को संचालन आंगनवाड़ी केन्द्रों के माध्यम से किया जाता है और आवश्यक 1400000 केन्द्रों में से 1346186 आंगनवाडी/ मिनी आंगनवाड़ी केन्द्र (96.16) प्रतिशत ही संचालित हो रहे हैं। किशोर स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार पर फोकस बढ़ाना बहुत ज़रूरी है। किशोर लड़कियों से संबंधित योजनाओं पर आवंटन 2016-17 में 460 करोड़ रु था, जो 2019-20 में कम होकर 300 करोड़ रु पर आ गया है। ऐसे में बजट आवंटन में कमी का बुरा असर कई महत्वपूर्ण कारकों पर होगा जैसे जीवन कौशल शिक्षा, किशोरों की स्कूली शिक्षा आदि। शिक्षा एवं किशोरों के लिए बेहतर धनराशि/ संसाधनों के आवंटन से न केवल बच्चों को संवेदनशील स्थितियों जैसे बाल मजदूरी, बाल विवाह से सुरक्षित रखा जा सकता है, बल्कि खासतौर पर लड़कियों के लिए बेहतर स्वास्थ्य एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को भी सुनिश्चित किया जा सकता है। राष्ट्रीय किशोर सवास्थ्य कार्यक्रम के तहत किशोर अनुकूल स्वास्थ्य क्लिनिक- किशोरों के मनोवैज्ञानिक-सामाजिक, यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण हैं। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा 2015 में जारी आंकड़ों के अनुसार इन क्लिनिकों की संख्या 2014-15 में 6619 थी जो 2015-16 में बढ़कर 7174 पर पहुंच गई है, हालंाकि इस संख्या में मामूली बढ़ोतरी हुई है, किंतु क्लिनिकों में उपलब्ध कराई जाने वाली सेवाएं संतोषजनक नहीं हैं। सुरक्षित एवं गुणवत्तापूर्ण देखभाल सेवाओं का सार्वभौमीकरण, केन्द्र सरकार द्वारा कामकाजी महिलाओं के 6 महीने से 6 साल तक की उम्र केे बच्चों के लिए क्रैच सेवाओं पर आवंटन 2016-17 में 150 करोड़ रु था, जो 2019-20 में कम हो कर 50 करोड़ रु हो गया है। ऐसे में इस क्षेत्र में गुणवत्तापूर्ण सेवाओं को बढ़ाने के लिए निवेश बढ़ानेकी आवश्यकता है। उपरोक्त क्षेत्रों पर निवेश बढ़ाने के अलावा आम जनता को भी भारत में बच्चों की मौजूदा स्थिति के बारे में जागरुक बनाने की आवश्यकता है। प्रमाण आधारित जागरुकता के द्वारा ही ऐसा संभव है। ऐसे में सभी क्षेत्रों में प्रमाणों के आधार पर निवेश बढ़ाना बहुत महत्वपूर्ण है।