सार्थक फिल्मों की परम्परा को जीवंत रखती ‘शिनाख्त’
लखनऊ: सार्थक फिल्मों में एक और कड़ी फिल्म शिनाख्त मुस्लिम समाज में खतना की समस्या को बेबाकी से उजागर करती है। फिल्म शिनाख्त का पोस्टर लांच आज लखनऊ में फिल्म के निर्देशक प्रज्ञेश सिंह, एक्टर शिशिर शर्मा और टीम के अन्य लोगों की मौजूदगी में हुआ ।
कंपनी सेक्रटरी से फिल्मकार बने लखनऊ के प्रज्ञेश सिंह का ध्यान हमेशा सामाजिक समस्यायों और कुरूतियो पर रहता है। विगत के वर्षो में छोटी सी गुजारिश जैसी 28 मिनट की फिल्म बनाकर चर्चा में रह चुके प्रज्ञेश सिंह ने हाल में खतना जैसी कुप्रथा पर एक फिल्म का निर्माण व् निर्देशन किया है। खतने पर आधारित 40 मिनट की अवधि की फिल्म शिनाख्त को अब तक 24 अंतर्राष्ट्रीय फिल्म उत्सव में प्रदर्शित किया जा चूका है जिसमेंं से शिनाख्त अभी तक 10 से अधिक पुरस्कार अपने नाम कर चुकी है। उत्तर प्रदेश में फिल्म को बढ़ावा देने की नीति का असर प्रदेश के फिल्मकारों को प्रोत्साहित कर रहा है।
प्रज्ञेश ने बताया की कम बजट के चलते टीम ने कठिन महेनत की और 40 मिनट की अवधि की फिल्म शिनाख्त का शूट रिकॉर्ड दो दिन से पूरा किया गया। फिल्म में राजू खेर, शिशिर शर्मा, शक्ति सिंह, नवनी परिहार, आरफी लाम्बा, स्टेफी पटेल, मेजर बिक्रमजीत कंवरपाल और कृष्णा भट्ट जैसे नामचीन कलाकारों ने काम किया है। सुभ्रांशु दास ने फिल्म का कैमरा संभाला है। सज्जाद अली चंदवानी ने फिल्म में संगीत दिया है। फिल्म की एडिटिंग हिमांशु रस्तोगी ने की है। प्रज्ञेश सिंह और प्रणय विक्रम सिंह के सह लेखन के डायलाग फिल्म के विषय को अद्भुत रोचकता प्रदान करते है।
प्रज्ञेश सिंह ने बात करने के दौरान बताया की धार्मिक पहलू से जुड़े संवेदनशील विषयों पर फिल्म बनना एक जोखिम भरा कदम था, परन्तु इमानदारी से अपनी बात कहने की लगन और टीम के सहयोग से सब आसान होता चला गया। तेजी से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था और देश की बदलती तस्वीर में जहाँ भारत को विश्व की अर्थ व्यवस्था में अग्रणी होने का खवाब देख रही है। भारत में महिलाओं का खतना बोहरा मुस्लिम समुदाय में प्रचलित है, जिनकी आबादी दस लाख से थोड़ी ही अधिक है। उत्तरी मिस्र को अपनी उत्पत्ति का मूल स्रोत मानने वाले एक समुदाय विशेष के लोग महिला खतना को अपनी परम्परा और पहचान मानते हैं। ये समुदाय इस्मायली शिया समुदाय का एक उप समुदाय है। पश्चिमी भारत और पाकिस्तान में भी बड़ी संख्या में रहता है। यही वजह है कि पश्चिमी भारत और पाकिस्तान के कुछ हिस्सों में स्त्रियों का खतना करने का रिवाज आज भी जारी है।