पतंजलि की बिक्री 10 फीसद घटी, सप्लायर को नहीं हो रहा पेमेंट
नई दिल्ली: करीब तीन साल पहले तक योगगुरु और व्यवसायी बाबा रामदेव की पतंजलि का कारोबार जहां बुलंदियों पर था, वहीं अब इसकी हालत खस्ता होते हुए नजर आ रही है। उपभोक्ता वस्तुओं का विशाल साम्राज्य जिसे योगगुरु ने सह-स्थापित किया, लोकसभा चुनाव पश्चात नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद हिंदू राष्ट्रवाद की लहर में बदल गया था। शुरुआत में लोगों ने पतंजलि के उत्पादों पर खूब भरोसा जताया। भारत में बने नारियल तेल और आयुर्वेदिक औषधियों जैसे स्वदेशी उत्पाद विदेशी कंपनियों के लिए बड़ी चुनौती बनकर उभरे थे।
साल 2017 में बाबा रामदेव ने घोषणा की थी कि उनकी कंपनी के टर्नओवर के आंकड़े बहुराष्ट्रीय कंपनियों को कपालभाति करने के लिए मजबूर कर देंगे। उन्होंने कहा था कि मार्च, 2018 तक पतंजलि की बिक्री दोगुना से अधिक बढ़कर 200 अरब रुपए हो जाएगी। हालांकि योगगुरु के दावे के उलट पतंजलि उत्पादों की बिक्री दस फीसदी घटकर 81 अरब रुपए रह गई। कंपनी की वित्त वार्षिक रिपोर्ट से इस बात की जानकारी मिली है।
कंपनी के सूत्रों और विश्लेषकों का कहना है कि विछले वित्त वर्ष में इसमें और अधिक गिरावट का अनुमान है। पंतजलि सूत्रों से मिली जानकारी के आधार पर अप्रैल में CARE रेटिंग ने बताया था कि अनुमानित डेटा 9 महीने में यानी 31 दिसंबर तक कंपनी के उत्पादों की बिक्री महज 47 अरब रुपए होने का संकेत दे रहे हैं। कंपनी के मौजूदा और पूर्व कमर्चारियों, सप्लायर्स, वितरकों, स्टोर मैनेजर्स और ग्राहकों संग साक्षात्कार में पता चला है कि पतंजलि के कुछ गलत कदमों की वजह से व्यापार को नुकसान हुआ। इन लोगों ने खासतौर पर उत्पादों की अस्थिर क्वालिटी की ओर इशारा किया मगर फिर भी कंपनी का विस्तार हुआ।
हालांकि कंपनी का कहना है कि इसके तेजी से विस्तार की वजह से शुरुआत में कुछ समस्याएं आईं, लेकिन उन्हें दूर कर लिया गया। कई अन्य व्यावसायियों की तरह साल 2016 में नोटबंदी और 2017 में जीएसटी लगने से कंपनी की आर्थिक गतिविधियां बुरी तरह प्रभावित हुईं। पतंजलि का कहना है कि उसके 3,500 वितरक हैं जो पूरे भारत में कुछ 47,000 रिटेल काउंटरों की आपूर्ति करते हैं। पतंजलि की दुकानें, जो ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में हैं, जोड़ों के दर्द को ठीक करने के लिए आम की कैंडी या आयुर्वेदिक उपचार जैसे स्नैक्स बेचती हैं।
कंपनी के तीन सप्लायर्स संग साक्षात्कार के मुताबिक भुगतान नहीं मिलने से कुछ सप्लायर कंपनी से मुंह मोड़ रहे हैं। हफिंगटन पोस्ट में छपी खबर के मुताबिक एक कैमिकल सप्लायर ने बताया, ‘पतंजलि ने 2017 में भुगतान में एक या दो महीने की देरी शुरू कर दी थी। 2018 में भुगतान मे देरी 6 महीने तक बढ़ गई।’
मुंबई में लीडिंग इंडियन रेटेलर्स और अन्य शॉप के मैनेजर्स ने बताया कि लड़खड़ाती मांग के कारण पंतजलि के केवल कुछ ही उत्पादों को स्टॉक में रखा गया है। पतंजलि ने अपने विज्ञापन खर्च में भारी कमी की है। ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल इंडिया के आंकड़ों के अनुसार साल 2016 में कंपनी जहां भारत की तीसरी सबसे बड़ी विज्ञापनदाता थी, वहीं तीसरे साल यह टॉप 10 में भी यह अपना स्थान नहीं बना सकी। हालांकि पतंजलि की प्रमुख विज्ञापन एंजेसी Vermmillion ने मामले में प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया।