अलीगढ़ में मासूम बच्ची की हत्या के पीछे का पूरा सच
नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ ढाई साल की बच्ची की बेरहमी से हत्या के मामले की जांच के लिए एसआईटी का गठन कर दिया गया है. साथ ही इस केस में पॉक्सो एक्ट लगाया गया है. गौरतलब है कि महज़ दस हज़ार के लिए एक नन्हीं बच्ची का गला घोंट कर हत्या कर उसके शव को कूड़े के ढेर पर फेंक दिया गया था. 30 मई को गायब हुई बच्ची का शव बाद में घर के पास के कूड़ाघर में 2 जून को सड़ी गली हालत में मिला. लापरवाही बरतने के आरोप में इंस्पेक्टर समेत पांच पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया है. इस ख़ौफ़नाक वारदात से पैदा ग़म और गुस्सा अलीगढ़ और उसके बाहर तक पसरा हुआ है. सिनेमा और राजनीति से जुड़ी शख़्सियतों का गुस्सा सोशल मीडिया पर दिख रहा है. इस मामले में दो लोगों को गिरफ्तार किया गया है. पुलिस ने मुताबिक़ एक आरोपी ज़ाहिद ने जुर्म क़बूल कर लिया है. उसने बताया कि 10,000 रुपये को लेकर उसका परिवार से विवाद चल रहा था जो उस पर बकाया था. वहीं दूसरे आरोपी की भूमिका अभी तक साफ़ नहीं है. लेकिन ये बात सामने आई है कि उस पर अपनी ही बेटी के साथ रेप का आरोप है. पुलिस ने दोनों को रासुका के तहत गिरफ़्तार किया है.
पुलिस ने इस मामले में सोशल मीडिया पर चल रही अफ़वाहों को भी दूर करने की कोशिश की है. साफ़ किया है कि बच्ची के साथ रेप नहीं हुआ है और न ही उसकी आंखें निकाली गई हैं. शव बुरी तरह क्षत-विक्षत है, इसलिए ऐसा लग रहा है. पांच पुलिसवालों को निलंबित भी कर दिया है.
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने कहा कि बच्ची की पहचान उजागर करना पॉक्सो कानून,2012 की धारा 23 और जेजे कानून,2015 की धारा 74 के तहत दंडनीय अपराध है. परामर्श में कहा गया है, 'प्रशासन और पुलिस इस संबंध में उचित कार्रवाई कर रही है. मीडिया संगठनों को रिपोर्टिंग करते समय बहुत ही सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है ताकि बच्ची की पहचान उजागर न हो, क्योंकि यह दंडनीय अपराध है.'