इलेक्टोरल बॉन्ड को सुप्रीम कोर्ट ने बताया ब्लैक मनी को व्हाइट करने का तरीका
नई दिल्ली: इलेक्टोरल बॉन्ड्स पर मोदी सरकार को सुप्रीम कोर्ट में फजीहत का सामना करना पड़ा। शीर्ष अदालत ने बृहस्पतिवार को कहा कि सरकार की काले धन पर लगाम लगाने की कोशिश के रूप में इलेक्टोरल बॉन्ड्स की कवायद पूरी तरह से बेकार है।
कोर्ट ने कहा कि जिस तरह से इलेक्टोरल बॉन्ड्स की बिक्री को लेकर बैंकों को कोई जानकारी नहीं दी जा रही है, इससे लगता है कि यह ब्लैक मनी को व्हाइट करने का तरीका है। सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया। इस मामले में फैसला शुक्रवार को सुनाया जाएगा।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। जस्टिस गोगोई ने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से पूछा, क्या इलेक्टोरल बॉन्ड्स खरीदने वाले की जानकारी बैंक के पास है ? इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा, हां, केवाईसी के कारण ऐसा है। हालांकि, खरीदार की पहचान गोपनीय रखी जाती है और महीने के अंत में इसकी जानकारी केंद्रीय कोष को दी जाती है।
इस पर सीजेआई ने पूछा, ‘हम यह जानना चाहते हैं, जब बैंक एक इलेक्टोरल बॉन्ड्स ‘एक्स’ या ‘वाई’ को जारी करता है तो बैंक के पास इस बात का विवरण होता है कि कौन सा बॉन्ड ‘एक्स’ को और कौन सा बॉन्ड ‘वाई’ को जारी किया जा रहा है।’ इस पर अटॉर्नी जनरल ने ना में जवाब दिया। सीजेआई ने कहा कि यदि ऐसा है तो काले धन के खिलाफ लड़ाई लड़ने की आपकी पूरी कवायद व्यर्थ है।
वहीं, जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा, जिस केवाईसी की आप बात कर रहे हैं वह सिर्फ खरीददार की पहचान है। यह पैसे की वास्तविकता का सर्टिफिकेट नहीं है कि यह धन काला है या सफेद।
220 में 210 करोड़ रुपये इलेक्टोरल बॉन्ड्स भाजपा कोः एडवोकेट प्रशांत भूषण ने कहा, इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम में काले धन पर अंकुश लगाने के लिए कुछ भी नहीं है। राजनीतिक दलों को गुमनाम रूप से पैसे देने का यह एक नया चैनल है। प्रशांत भूषण ने कहा कि अब कैश में भी राजनीतिक दलों को चंदा दिया जा सकता है। उन्होंने कहा कि 220 करोड़ के इलेक्टोरल बॉन्ड में 210 करोड़ रुपये सत्ताधारी पार्टी को मिले हैं।