पहले चरण की 8 लोकसभा सीटों पर महागठबंधन का हो सकता है दबदबा ?*
लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी
राज्य मुख्यालय लखनऊ।देश की जनता और सियासी दल अगले दो महीने चुनावी मोड़ में रहेंगे इस चुनावी मोड़ में वैसे तो सभी राज्य रहेंगे लेकिन इसमें सबसे ज़्यादा यूपी की सियासत में उथलपुथल रहने की चर्चा है क्योंकि केन्द्र की ताजपोशी में इस राज्य की अहम भूमिका रहती है यही वजह है कि यहाँ हर दिन सियासी हलचल बदलती रहती है।यूपी की ज़्यादातर लोकसभा सीटों पर BSP , SP व RLD का गठबंधन मोदी की भाजपा के लिए बहुत बड़ी चुनौती बनकर सामने खड़ा दिखाई दे रहा है।यूपी का सियासी मैदान सज चुका है 2014 में 73 सीटें जीतने वाली मोदी की भाजपा को 2019 के चुनाव में 20 से 25 सीटें जीतना भी मुश्किल हो रहा है राजनीतिक विश्लेषको का मानना है कि मोदी की भाजपा जितना यूपी लूज़ करेगी उतना ही केन्द्र की सत्ता से दूर हो जाएगी और ऐसा यूपी के सियासी परिदृश्य में कही नज़र नही आ रहा है कि मोदी की भाजपा के बारे में ये कहा जा सके कि यूपी में मोदी की भाजपा एक बार फिर 2014 के परिणाम दोहराने जा रही हो।जिस भी सीट पर नज़र दौड़ाई जाए तो लगता है कि हर तरफ़ नुक़सान ही नुक़सान हो रहा है बड़ी मुश्किल से यूपी की 80 सीटों में से 20 से 25 सीटें ही ऐसी लग रही है जहाँ मोदी की भाजपा जीत की और दिखाई दे रही है और ये सीटें भी सिर्फ़ इस लिए मिल रही है क्योंकि सेकुलर दलों के महागठबंधन में कांग्रेस शामिल नही है जिसकी वजह से त्रिकोणीय मुक़ाबले का फ़ायदा मिल रहा है अगर कांग्रेस भी शामिल हो जाए तो मुश्किल तमाम एक दो सीट ही मिल पाए ये भी हो सकता है कि वाराणसी से नरेन्द्र मोदी भी हार जाए लेकिन कांग्रेस इसमें शामिल न हो नरेन्द्र मोदी सरकार इस काम पर पूरा ज़ोर लगा रही है कि किसी भी सूरत में महागठबंधन में काँग्रेस शामिल न हो इसके लिए वो पूर्व की भाँति सरकारी तोतों का इस्तेमाल कर रही है जैसे सीबीआई ,ईडी ,आयकर विभाग इसके बावजूद भी मोदी की भाजपा की राह आसान नही है।अब बात करते है ऐसी सीटों की जहाँ मोदी की भाजपा के लिए जीतना कठिन हो रहा है उनमें सीट नंबर एक सहारनपुर की बात करते है जहाँ बसपा गठबंधन के तौर पर बहुत मजबूत चुनाव लड़ रही है हालाँकि पिछला चुनाव यहाँ कांग्रेस बहुत अच्छा लड़ी थी उसकी वजह नरेन्द्र मोदी की बोटी-बोटी के बयान से सुर्ख़ियो में आए इमरान मसूद मुसलमानों के सभी वोट लेने में कामयाब हो गए थे लेकिन इसका नुक़सान भी हुआ था इस सीट पर तो हिन्दू वोट मोदी की भाजपा के साथ गया ही था साथ ही यूपी सहित अन्य प्रदेशों में भी मोदी की भाजपा को इमरान मसूद के उस बयान का फ़ायदा हुआ था और मोदी की भाजपा ने भी इसको चुनाव में मुद्दा बना लिया था इस बार भी कांग्रेस ने इमरान मसूद को ही प्रत्याशी बनाया है और वो सोच रहे है इस बार भी मुसलमान कांग्रेस को ही पंसद करेगा उनका सोचना ग़लत भी नही क्योंकि मुसलमान ने हर बार इमरान मसूद को भरपूर वोट दिया फिर भी वो जीत नही पाता है उसकी बहुत बड़ी वजह है उसको हिन्दु वोट नही मिल पाता जिसकी वजह से मुसलमान का वोट ख़राब हो जाता है इस बार के चुनाव में क्या सच में ही मुसलमान हार की तरफ़ रूख करेगा जिसकी संभावना न के बराबर है वैसे भी ये चुनाव दलित-मुस्लिमों के लिए अलग की तरह का चुनाव माना जा रहा है वह कुछ भी बर्दाश्त करेगा मगर उसकी स्ट्रेटेजी मोदी को हराने की रहेगी यही सियासी उसूल भी है पहले अपने दुश्मन को मारे व्यक्ति विषेश की पूजा तो बाद में हो जाएगी।2014 के आमचुनाव में बसपा और सपा अलग-अलग लड़ी थी और इस बार दोनों का गठबंधन हो जाने के बाद सहारनपुर सीट पर गठबंधन का पलढा भारी नज़र आ रहा है इस सीट पर वोटो के ऐतबार से अगर देखे तो साफ तौर पर कहा जा सकता है कि गठबंधन ही इस सीट पर मोदी की भाजपा को हराने में सक्षम है इमरान मसूद के साथ जाने का मतलब मोदी की भाजपा को जीतने से कोई नही रोक पाएगा क्योंकि उसके पास पूरा मुसलमान भी चला जाए तब भी इमरान मसूद नही जीत सकता है ऐसा भी नही है मुसलमान ने उसको पूरा वोट नही दिया एक बार नही कई बार दिया परन्तु वो जीत ही नही पाते और ऐसा मुसलमान नही चाहेगा कि मोदी की भाजपा जीते क्योंकि गठबंधन का प्रत्याशी तीन लाख दलित वोटो को साथ लेकर चलेगा छह लाख से ज़्यादा मुसलमान वोट है इस लिहाज़ से गठबंधन का प्रत्याशी नौ लाख वोटो में खड़ा है इन दोनों के कुल मिलाकर साढ़े सात लाख वोट पोल होगे जिसकी हार लगभग तय है यानी कांग्रेस के इमरान मसूद की उसके साथ कितने मुसलमान जाएँगे और जो जीतने वाला प्रत्याशी है यानी गठबंधन प्रत्याशी के साथ कितने मुसलमान जाएँगे दलित तो पहले ही गठबंधन के साथ खड़ा है दलितों के कुल वोटो में से दो लाख चालीस हज़ार से ज़्यादा वोट पोल होने की संभावना है जो गठबंधन के खाते में जाएगा और रही बात मुसलमानों के वोटो की उनके भी पाँच लाख से कुछ कम वोट पोल होने की संभावना है जिसके साढ़े चार लाख वोट गठबंधन के साथ जाने की संभावना व्यक्त की जा रही रही है इस हिसाब से गठबंधन का प्रत्याशी साढ़े छह लाख से सात लाख वोट लेकर जीत सकता है रही बात मोदी की भाजपा की वो पाँच लाख से ज़्यादा नही जा सकती है इस सीट पर मोदी की भाजपा की ये स्ट्रेटेजी रहेगी कि काँग्रेस के इमरान मसूद मुसलमानों के ज़्यादा से ज़्यादा वोट लेने में कामयाब रहे जैसे मेयर के चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी शशि वालिया 78 हज़ार वोट ले गए और बसपा के हाजी फजलुर्रहमान कुछ ही हज़ार से चुनाव हार गए थे कांग्रेस को मिले मतों में मुसलमानों के 70 हज़ार वोट थे हाजी फजलुर्रहमान हारे मात्र कुछ हज़ार से ऐसा ही अब हो तब ही वो यहाँ से जीत सकती है नही तो किसी भी सूरत में मोदी की भाजपा इस बार सहारनपुर की सीट नही जीत पाएगी।अब बात करते है कैराना लोकसभा सीट की वहाँ भी गठबंधन का प्रत्याशी मजबूत स्थिति में है उपचुनाव में भी यहाँ के मुसलमानों दलितों व जाटों ने मिलकर मोदी की भाजपा को हरा दिया था यही समीकरण इस बार भी है वैसे इस बार गठबंधन के प्रत्याशी को और अधिक मजबूत माना जा रहा है उसकी वजह रालोद के अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह का मुज़फ़्फ़रनगर से लड़ना रहेगा उनका कहना है ये चुनाव उनका आख़री चुनाव होगा जिसकी वजह से जाट जाति अपने नेता की मज़बूती के लिए ख़ूब मेहनत करेगी जिसका फ़ायदा गठबंधन को होगा।बागपत से छोटे चौधरी के पुत्र जयंत चौधरी चुनाव लड़ेंगे वहाँ भी गठबंधन मजबूत रहेगा।रही बात मेरठ में हाजी याकूब व बिजनौर में इक़बाल ठेकेदार की यहाँ भी गठबंधन की स्थिति मजबूत मानी जा रही है वजह यहाँ भी तीन दलों के वोटबैंक के एक साथ आने को माना जा रहा है ग़ाज़ियाबाद व गौतमबुद्ध नगर यहाँ मोदी की भाजपा कुछ लड़ती दिख रही है यूपी के पहले चरण की आठ सीटों में से छह सीट गठबंधन आसानी से जीतता दिख रहा है जिनमें सहारनपुर , कैराना , मुज़फ्फरनगर , मेरठ , बिजनौर , व बागपत सीट शामिल है बची दो सीट ग़ाज़ियाबाद व गौतमबुद्ध नगर यहाँ गठबंधन की मोदी की भाजपा से लडाई होती नज़र आ रही है ये गठबंधन जीत भी सकता है और हार भी सकता है कुल मिलाकर आठ में से छह सीट गठबंधन जीत रहा है और दो सीट पर मुक़ाबले में है जीत भी सकता है और भी सकता है।