चुनाव घोषित होेते ही मुस्लिम परस्त राजनीति का चेहरा बेनकाब
मृत्युंजय दीक्षित
आगामी लोकसभा चुनावों के लिये चुनाव आयोग ने केंद्र सरकार व सभी राजनैतिक दलों , राज्य सरकारों के साथ तथा देषभर के तमाम राजनैतिक दलों के साथ लम्बी चर्चायें करने के बाद अंततः चुनाव तारीखों का ऐलान कर दिया है और इसके साथ ही अगली सरकार चुनने के लिये अब राजनैतिक गहमागहमी खूब जोरों से षुरू हो गयी है । चुनाव आयोग सभी लोगों के साथ लम्बे विचार विमर्ष के बाद चुनावों की तारीखों का ऐलान करता है। इस बार भी उसी प्रकार हुआ है। लेकिन भारत के तथाकथित बयान बहादुर राजनेता और सभी राजनैतिक दलों ने चुनावों की तारीखों को लेकर जिस प्रकार की मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करने के लिये रमजान के पवित्र माह को आधार मानकर मतदान की तारीखें बदलने की मांग कर डाली है वह काफी हैरतअंगेज व बेहद षर्मनाक है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि राजनैतिक दलों ने यह मांग विभिन्न पंचांगों में की गयी भविष्यवाणियों व एयरस्ट्राइक के बाद जो चुनावी सर्वे आ रहे हैं उससे घबराकर यह मांग कर डाली है और अपनी भारी फजीहत करवाने के साथ अब उनके पास कोई भी मुददा नहीं रह गया है जिसके आधार पर वह बीजेपी को हरा सकंे इसलिये यह बयान जारी किये जा रहे हैं।
यदि लोकसभा चुनावों के आरम्भिक दिनों में देखा जाये तो यह साफ हो रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाला एनडीए तैयार हो चुका है जबकि मुस्लिम तुष्टीकरण व पाकिस्तानी पे्रम मेें बुरी तरह से पागल महाविलावटी ग्रुप अभी केवल कागजों व बयानों में ही सिमटा रह गया है। महाविलावटी ग्रुप किसी न किसी प्रकार से साजिषें रचना चाह रहा है। उसे किसी भी संस्था पर कतई विष्वास नहीं रह गया है। अगर अभी कहीें किसी कारणवष या फिर मान लीजिये सीमा पर भारत -पाक तनाव के कारण ही चुनावांे को टाल दिया जाता या फिर टल जाते , तो फिर यही दल एक बार फिर केंद्र की मोदी सरकार और चुनाव आयेग पर एक से बढ़कर एक गंभीर आरोप ही लगाते तथा कहते -फिरते कि देष की सभी संवैधानिक संस्थाओं को मोदी सरकार ने बर्बाद कर दिया है।
मुस्लिम तुष्टीकरण में पूरी तरह से अंधे हो चुके सभी राजनैमिक दलांे को कडा सबक सिखाने के लिये हिंदू जनमानस के पास यह एक बहुत बड़ा हथियार हाथ लग गया है तथा हिंदू जनमानस को पूरी तरह से एकजुट होकर मतदान करना चाहिये और मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करने वाले सभी दलों पर और भी अधिक कड़ी मतदान की स्ट्राइक करके जवाब देना चाहिये ताकि यह सिरफिरे राजनैतिक दल फिर से इस प्रकार की आवाजें उठाने के काबिल ही न रह सकंे।
विपक्षी दलांें ने चुनाव की तारीखों पर बहुत ही सोच समझकर एक रणनीति के ही तहत सवाल खड़े कर दिये हैं जिसका चुनाव आयोग ने बहुत ही सख्ती के साथ अपना रूख भी स्पष्ट कर दिया है। अगर देखा जाये तो चुनाव प्रक्रिया के बीच में ही होली ,नवरात्र है तथा कई प्रकार परीक्षाओं का भी मौसम होगा । चुनावों के ही दौरान उत्तर प्रदेष जैसे बड़े राज्य सहित अधिकांषत: उत्तर भारत में भी हिंदू जनमानस में वैवाहिक कार्यक्रमों का भी तूफानी दौर षुरू हो जायेगा। किसी हिंदूवादी संगठन व अन्य किसी नेता ने 110 करोड़ की आबादी वाले हिंदू जनमानस के होने वाले विभिन्न आयोजनों का उल्लेख क्यों नहीं किया -क्या वह इस देष का मतदाता ही नहीं है? रमजान के पवित्र माह की आड़ में इन सभी दलों ने जिस प्रकार से चुनावों की तारीखों पर प्रष्नचिन्ह लगाया है यह बहुत ही आपत्तिजनक है तथा यह इस बात का प्रबल संकेत है कि आगे आने वाले दिनों में यह तथाकथित दल किस प्रकार से चुनाव आयोग को धमकाने का तथा निष्पक्ष चुनाव न हो सके रोज नये टकराव वाले बेसिरपैर के मुददे उठाते रहेंगे।
आम आदमी पार्टी के बगावती नेता योगेंद्र यादव जिनको अब कोई कहीं पूछ नहीं रहा है ने ही सबसे पहले चुनावों की तारीखों का विष्लेषण कर डाला। उनकी भाषा षैली बहुत ही विकृत तथा आपत्तिजनक हैं। संजय सिंह कहते हैं कि, क्या मोदी जी ने अपने चुनाव प्रचार की तारीखें चुनाव आयोग को भेजीं और चुनाव आयोग ने उनके हिसाब से चुनाव की तारीखें घोषित कीं? कभी सुना है बंगाल में सात फेज में चुनाव ? तो वहीं टीएमसी ने भी रमजान में मतदान को लेकर सवाल खड़े किये हैं? इन बयानांें से साफ पता चल रहा है कि यह सभी लोग लोकसभा चुनावांे में जनहित व राष्ट्रवाद जैसे मुददोें से जनता का ध्यान भटकाना चाहते हैं। इन सभी दलों की षह पाकर ही लखनऊ के मौलाना फिरंगी महली ने भी अपना बयान जारी किया है जो बेहद आपत्तिजनक है तथा जिस पर धर्म के आधार पर कार्यवाही भी की जा सकती है। उनका कहना है कि मुस्लिम समाज से पूछकर ही चुनाव आयोग को अपना कार्यक्रम घोषित करना चाहिये था। मौलाना फिरंगी महली को यह अच्छी तरह से ध्यान रखना चाहिये कि देष की सभी संवैधानिक संस्थाएं पूरी तरह से स्वतंत्र हैं। जब चुनाव आयोग चुनावों की तारीखों का ऐलान करने से पहले जब सभी के साथ विचार-विमर्ष कर रहा था तब आप लोग कहा थें। यह देष व देष की संस्थाएं अब पूरी तरह से आजाद भारत की था न्यू इंडिया की संस्थाएं हैं। यह संस्थाएं किसी एक विषेष विचारधारा या राजनैतिक दलांेे की गुलाम नहीं है। देष के सभी राजनैतिक दलों के नेताओं को अपनी हैसियत में ही रहना चाहिये। इन सभी लोगोें को जिन्होंने चुनाव आयोग की तारीखों पर सवाल खड़े किये हैं उनको अपना इतिहास अच्छी तरह से याद रखना चाहिये। यह सभी दल किस प्रकार से चुनावों को मैनेज व प्रभावित करते रहे हैं।
योगेंद्र यादव व आम आदमी पार्टी के नेताओं को आज बंगाल की बड़ी चिंता हो रही है कि वहां पर सात चरणों में चुनाव क्यों हो रहे हैं ? वह इसलिये कराये जा रहे हैं ताकि बंगाल में ममता बनर्जी और वामपंथी दलों के गंुडे अपनी करतूतांे से बंगाल को लहुलूहान न कर सकें और चुनाव प्रक्रिया षांतिपूर्ण व निष्पक्ष संपन्न हो सकें। यह लोग पूरे देष में चुनावों के दौरान बंगाल व केरल जैसी अराजकता का नंगा नाच पूरे भारत में देखना चाह रहे है। इस प्रकार की मांगें करने वाले दलों से केंद्र सरकार , चुनाव आयोग व चुनाव की प्रक्रिया में षामिल सभी एजेंसियों को सतर्क हो जाना चाहिये। यह मांग चुनाव टलवाने की एक बहुत बड़ी व गहरी साजिष के रूप में नजर आ रही है। अब भारतीय जनता पार्टी व उसके सहयोगी दलों सहित राष्ट्रीय स्वयंसवेक संघ सहित सभी हिंदू संगठनों को भी बेहद सतर्क रहना होगा। जिस प्रकार से चुनाव आयोग ने इन लोगों की मांग को खारिज कर दिया है , अब यही लोग किसी तरह से चुनाव टलवाने के लिये किसी छोटी सी भी वारदात को अंजाम देकर दंगे तक करवा सकते हैं। चुनावों के दौरान समस्त हिंदू जनमानस को बहुत ही अधिक सतर्क व जागरूक रहकर मतदान करने की आवष्यकता आ गयी हैं। रमजान की आड़ में चुनाव टलवाने की मांग धार्मिक आधरपर की गयी मांग हैं। चुनाव आयोग को धर्म के आधार पर की गयी इस मांग का स्वतः संज्ञान लेना चाहिये और नोटिस जारी कर देना चाहिये। चुनाव आयोग पूरी तरह से स्वतंत्र संवैधानिक संस्था है और इन सभी महाविलावटी दलों ने देष की संस्थाओं को खूब धमकाने व उनको फुटबाल की तरह उपयोग करने का असफल प्रयास किया है। अब इनको सजा देने का समय आ गया है। कांग्रेस व विपक्ष की मांग पूरी तरह से धर्म पर आधारित है तथा चुनाव आयोग को यह विषय स्वतः संज्ञान में लेना चाहिये। रही बात ममता बनर्जी की सात चरणों में चुनाव कराने का विरोध करने की तो उन्हें पहले अपने बंगाल की राजनीति का पूरा इतिहास पढ़ना चाहिये क्योंकि बंगाल में पहले भी पांच चरणांे में चुनाव हो चुके है। ममता दीदी अपनी राजनीति चमकाने के लिये देष की जनता की आंखों में धूल झोंक रहीं हैं।
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